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Aug 1, 2023

कविताएँः 1. सूरज को देना साक्ष्य

 -  सांत्वना श्रीकांत






सुनो-

मेरे माथे पर

एक सूरज उगा देना तुम,

टाँक देना चाँद भी

पलकों के बीच जाती

सूर्य सीधी रेखा पर,

उन आकाशगंगाओं में

कर देना स्थापित,

जो जन्म लेती हैं

तुम्हारे स्मरण मात्र से।

मेरे होंठों की उष्मा

अर्पित कर देना उसे।

सुनो-

मेरे फलक पर

सूरज उगा देना तुम।

सभ्यताओं के अंत में

जब खोजा जाएगा

प्रेम होने का अवशेष,

तुम सूर्य की रश्मियों को

साक्ष्य दे देना


कि हम वहीं थे,

रच रहे थे नई दुनिया।

मेरे माथे पर सूरज

उगा देना तुम,

पलकों के पार

चाँद खिला देना तुम।






 2.  दु:ख को  मुखाग्नि

दु:ख बहुत रोता है आजकल

तड़पता है/ सिसकता है,

इस कंधे से उस कंधे चढ़ता

मुखाग्नि देना चाहता है

स्वयं को

फफकता हुआ दुख।

चिढ़ता है मुस्कुराने से

सीने से लग कर अब

खत्म हो जाना चाहता है

बिलखता हुआ दु:ख।

सोख लेना मेरे दु:ख

गले लगकर

सोख लेना तुम

मेरे सारे दु:ख

अनिश्चितताओं की कटुता

मन में उठते ज्वार के

ठीक पहले का नैराश्य

मृत्यु के पूर्वाभास

से उपजी इच्छाओं का

कर लेना आलिंगन

मैंने पीठ टेक दी है

समय की तरफ

हथेलियों को

धरा है सपाट,

तुम मेरी हथेलियों पर

अपना हाथ रख,

और गले लगकर

सोख लेना मेरे दु:ख।

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