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Aug 1, 2023

स्वामी विवेकानंद की दो कविताएँः

 अंग्रेजी से अनुवाद  -डॉ. कुँवर दिनेश सिंह







1. ईश्वर की खोज

पहाड़ी पर, पर्वत शृंखला के ऊपर, उपत्यका में

मंदिर में, गिरजाघर में और मस्जिद में,

वेदों में, बाइबिल में, अल कुरान में

मैंने व्यर्थ ही खोजा था तुम्हें।


बीहड़ जंगल में एक बच्चे की तरह खो गया

मैं रोया और अकेला रोया,

“तुम कहाँ चले गए, मेरे ईश्वर, मेरे प्रेम?”

प्रतिध्वनि ने उत्तर दिया, “चला गया।”


और फिर दिन-रात और सालों-साल बीत गए

एक अग्नि प्रज्वलित रही मस्तिष्क में,

दिन कब रात में बदल गया, पता ही नहीं चला,

दिल दो टुकड़ों में बँटा हुआ लग रहा था।


मैं पावन गंगा के किनारे लेट गया,

खुली धूप और बारिश की संपृक्ति में;

जलते आँसुओं से मैंने धूल बिछा दी और

हाहाकार करने लगा जल की गर्जना से।


मैंने सभी पवित्र नामों को पुकारा

प्रत्येक मौसम और आस्था से जुड़े।

“मुझे राह दिखाओ, दया करो, आप सभी

महान् लोग जो लक्ष्य तक पहुँच चुके।”


आर्त्त कराहटों में बरसों बीत गए,

हर एक पल एक युग समान लगा,

मेरे रोने और कराहने के बीच एक दिन

लग रहा था कोई मुझे बुला रहा है।

एक कोमल और सुरीली आवाज़

“मेरा बेटा”, “मेरा बेटा”, उसने कहा

वह मुझे रोमांचित कर रहा था ―

मेरी आत्मा के तारों के साथ एकात्म हुआ।


मैं अपने पैरों पर खड़ा हुआ और लगा खोजने

वह आवाज़ आई थी कहाँ से;

मैंने खोजा और मुड़ा देखने के लिए

अपने इर्द-गिर्द, आगे, पीछे,

एक बार फिर ऐसा लगा कि वह बोल रही है,

वही दिव्य आवाज़ मेरे लिए।

उत्साह में मेरी आत्मा नि:शब्द-स्तब्ध थी,

सम्मोहित-सी, आनंद में निमग्न थी, मुग्ध थी।


एक कौंध ने मेरी आत्मा को आलोकित कर दिया;

मेरे अन्तर का अन्तर पूर्ण रूप से खुल गया।

हे आनंद! हे आनंद! यह मैंने क्या पा लिया!

मेरे प्रेम, मेरे प्रेम, तुम यहाँ मेरे सम्मुख हो

मेरे प्रेम, मेरे सर्वस्व, तुम यहाँ हो, तुम यहीं हो!


और मैं तुम्हें खोज रहा था ―

अनंत काल से तुम वहाँ थे

ऐश्वर्य के सिंहासन पर विराजमान!

उस दिन से, मैं जहाँ भी भ्रमण करता हूँ,

मुझे लगता है कि तुम हो पास ही विद्यमान,

पहाड़ी पर, तलाई में, ऊँचे पहाड़ पर, और घाटी में,

बहुत दूर और बहुत ऊँचे।


चाँद की कोमल रोशनी में, बेहद चमकीले सितारों में,

दिन के गौरवमय प्रकाशचक्र सूर्य में,

वह इन सब में चमकता है;  इन सब में

उसकी ही सुंदरता का प्रकाश परावर्तित है ।

राजसी भोर, पिघलती हुई साँझ,

लहराता हुआ असीम सागर,

प्रकृति की सुंदरता में, पक्षियों के गीतों में,

मैं उन सभी में देखता हूँ―यह वही है।


जब घोर विपत्ति मुझ पर आ पड़े,

हृदय शिथिल होने लगता है,

सारी प्रकृति मुझे कुचलती हुई-सी लगती है,

हर उस नियम के साथ जो अकाट्य है ।

मुझे लगता है मैं तुम्हारा मीठा स्वर सुन रहा हूँ

मेरे प्रिय, "मैं पास हूँ", "मैं पास हूँ",

मेरा दिल मज़बूत हो जाता है। तुम्हारे साथ, मेरे प्रिय,

एक हज़ार बार भी आए मृत्यु, कोई भय नहीं।

तुम माँ के आँचल में स्वनित हो;

तुम बच्चों की आँखें मीचते हो;

जब मासूम बच्चे हँसते और खेलते हैं,

मैं देख रहा हूँ तुम ही तो पास खड़े हो।


जब पवित्र मित्रता हाथ मिलाती है,

वही उनके बीच भी खड़ा है;

माँ के चुम्बन में और बच्चे की प्यारी “माँ” में

वही तो अमृत घोलता है।


तुम ही मेरे परमेश्वर थे पुरातन ऋषियों में,

सारे धर्म-पंथ तुमसे ही विकसित हैं,

वेद, बाइबल और क़ुरान, सभी एक सुर में

तुम्हारी ही स्तुति गाते हैं।


"तुम्हीं हो", "तुम्हीं हो" आत्माओं की आत्मा

जीवन की सतत प्रवहमान धारा में।

"ओ३म् तत सत् ओ३म्" तुम मेरे परमेश्वर हो,

मेरे प्रेम, मैं तुम्हारा हूँ, तुम्हारा हूँ मैं।

2. ऐ मज़बूत दिल, 

अभी कुछ देर रुको

ऐ मज़बूत दिल, अभी कुछ देर रुको, 

जीवन-भर के जुए से अलग मत हो;


यद्यपि वर्तमान कुम्हलाया है, भविष्य अंधकारमय है।

और एक युग हो चला है जब से तुमने-मैंने शुरू किया

पहाड़ का ऊँचा-नीचा सफ़र। अबाध गति से करते

खेवन उन समुद्रों का जो दुर्लभ हैं―


तुम मेरे निकटतर होकर, मेरे स्वयं से भी अधिक―

करते हो उद्घाटित मन के आवेगों को!

तुम्हारी नब्ज मेरी नब्ज़ के साथ, लयबद्ध, तुम 

मेरे सच्चे प्रतिबिम्ब हो― कितना स्पष्ट― 

तुम मेरे विचारों का सही सुर हो,

क्या अब हम जुदा हों, अभिलेखक, कहो?


तुमसे अभिन्न मित्रता है, तुम में अक्षुण्ण विश्वास है,

क्योंकि जब बुरे विचार उठ रहे थे, चेताया तुमने ,

और हालांकि, खेद है, तुम्हारी चेतावनी को भुलाया,

फिर भी तुम बने रहे ― हमेशा अच्छे और सच्चे!

*

अनुवादक: कवि-कथाकार-समीक्षक एवं  अनुवादक (हिन्दी-अँग्रेज़ी) एसोशिएट प्रोफ़ेसर (अँग्रेज़ी)  एवं सम्पादक: हाइफ़न सम्पर्कः #3, सिसिल क्वार्टर्ज़, चौड़ा मैदान, शिमला- 171004 हिमाचल प्रदेश। ईमेल: kanwardineshsingh@gmail.com , मोबाइल: +91 94186 26090


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