ये कथा आप सब जानते ही हैं कि किस तरह स्कूल में
पढ़ने वाले एक लड़के को पंद्रह अगस्त को होने वाली परेड की अगवाई करनी थी और उसे
स्कूल की तरफ से एक ही शाम पहले यूनिफोर्म की शर्ट और पैंट दी गई थी। जब उसने घर आ
कर पैंट पहन कर देखी, तो पता चला कि पैंट कम से कम
तीन इंच लंबी है और इसे पहन कर किसी भी तरह से टीम की अगवाई नहीं की जा सकती।
वह अपनी माँ के पास गया और उससे पैंट तीन इंच
छोटी कर देने के लिए कहा, ताकि वह पैंट धोकर प्रेस करके
अगले दिन के लिए तैयार रख सके। माँ ने अपने चारों तरफ फैले कामों का रोना रोया और
बच्चे से कहा कि वह अपनी बड़ी बहन से ठीक करा ले।
बड़ी बहन ने बताया कि कल ही उसे अपने स्कूल के
समारोह में समूह गीत गाना है और वह सहेलियों के घर प्रैक्टिस के लिए जा रही है।
हार कर वह दादी के पास गया कि वह ही उसकी मदद कर
दे। दादी ने बताया कि उसकी आँखें इतनी कमजोर हैं कि वह तो सुई में धागा ही नहीं
डाल सकती। पैंट कहीं गलत कट गयी तो सब अनर्थ हो जायेगा।
किस्सा ये कि जब सबके आगे गिड़गिड़ाने पर भी
किसी ने भी उसकी मदद नहीं की तो वह मास्टर जी के पास गया कि उसे सही साइज की पैंट
दी जाए,
नहीं तो वह परेड में हिस्सा नहीं ले पाएगा। मास्टर जी भले आदमी
निकले और उसे सही आकार की पैंट दे दी।
देर रात माँ को ख्याल आया कि बेटा दिन भर पैंट
ठीक कराने के लिए रोता फिर रहा था, बेचारे को
स्कूल में शर्मिंदा न होना पड़े। वह उठी और बेटे की पैंट तीन इंच छोटी करके सो गई।
यही नेक ख्याल बाद में बहन को और दादी को भी आया
और उन्होंने भी अपने अपने हिसाब से वही पैंट छोटी कर दी।
यह बताने की ज़रूरत नहीं है कि सकी मेहरबानी से
ठीक ठाक पैंट भी सुबह तक निक्कर में बदल चुकी थी।
हो सकता है आपके पास जो कहानी हो वह किसी और
तरीके से कही गई हो; लेकिन हुआ उसमें भी वही होगा जो
इस कहानी में हुआ है।
वक्त के साथ कथा बदल गई है। अब पतलून छोटी नहीं
की जाती,
बल्कि पहनी हुई पतलून ही उतारने के लिए शातिर लोग छटपटा रहे हैं।
डिस्क्लेमर: इस कहानी का उस देश से कुछ भी
लेना देना नहीं है जहाँ विकास के नाम पर आम आदमी की पहनी हुई और तार-तार हो रही
पैंट उतारने के लिए कभी रेलवे विभाग में तो कभी बैंकों में तो कभी दूसरे कमाऊ
विभागों में होड़- सी लगी हुई है। सब उसे हर हालत में नंगा करने की पुरजोर कोशिश
कर रहे हैं। सब यही कर रहे हैं।
आम आदमी समझ नहीं पा रहा कि वह अपने अंग ढके या
कुछ काम धाम भी करे।
9930991424, kathaakar@gmail.com
4 comments:
लाजवाब व्यंग , वाक़ई ये आज के समाज का सत्य है बहुत खूबसूरत कहानी ,आपको बहुत बहुत शुभकामनाएँ 🌺🙏
वाकई सटीक व्यंग्य
लाजवाब
सचमुच कितनी सटीक कथा है । आज के युग की सच्ची तस्वीर ।
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