वह अपने घर से निकला। सड़क पर पहुंच रुक गया।
फैसला करना था किधर जाए। दाएँ या बाएँ। सड़क में डिवाइडर पड़ा नहीं था। दाई तरफ जाने
वालों की तादाद अधिक थी और रफ्तार भी तेज़। जैसे कोई विशेष प्राप्ति हो रही हो। बाई
तरफ लोग चाहे कम थे, परन्तु सहज व अपनी गति से जा
रहे थे।
उसे ख्याल आया कि भीड़ को दूर से देखा जा सकता है, उसका हिस्सा नहीं बना जा सकता। वह अपने स्वभाव मुताबिक सहजता का पक्षधर था
और उसी तरफ चल दिया।
चलते -चलते, वह एक चैराहे
पर आ पहुँचा।
चौराहे को देख वह असमंजस में पड़ गया। सवाल उठा, अब किधर? वह सोच ही रहा था कि उसे चौराहे के बीचों-
बीच एक व्यक्ति नज़र आया। लोग उसके पास जाकर कुछ पूछते और फिर अपने-अपने रास्ते पर चल देते। वह वहीं रुका, सात दिन इस दृश्य को निहारता रहा।
अँधेरा होते ही, वह
व्यक्ति वहाँ से चला गया। पता नहीं थक गया या छुप गया। लोगों की संख्या भी कम होने
लगी।
वह वहीं बैठ गया। एक राहगीर उसके पास आया और
किसी रास्ते के बारे में पूछा। उसने सहजता से कहा, ‘‘मैं
तो खुद तुम्हारी ही तरफ हूँ, भटका हुआ।’’
दोनों रात भर बतियाते रहे। सुबह होते ही चौराहे
में वह व्यक्ति फिर से नज़र आया।
राहगीर ने उसे कहा, ‘‘धन्यवाद आप का, जो तुमने मुझे इस डरावनी अँधेरी रात
गुजारने में मदद की।’’
उसने कहा, ‘‘अरे नहीं
भाई, तुम्हारा धन्यवाद, जो तुमने मुझे
अँधेरे की भयावहता से अवगत करवाया।’’
उस राहगीर ने चौराहे वाले व्यक्ति से बात की और
अपने रास्ते पर पड़ गया।
वह सोचता रहा और दिनचर्या को निहारता रहा। शाम
ढलने पर,
वह चौराहे के बीच पहुँचा और कहने लगा, ‘‘ये
चारों रास्ते किस- किस तरफ जाते हैं?’’
चौराहे के व्यक्ति ने पूछा, ‘‘आप को किस तरफ जाना है?’’
उसने कहा, ‘‘कहीं
नहीं।’’
व्यक्ति बोला, ‘‘तो
फिर जिज्ञासा क्यों?’’
उसने कहा, ‘‘रात ढलने को
हो, तुम चले जाओगे, अँधरे में भटकने
वाले राहगीरों को मैं रास्ता बताऊँगा।’’
1 comment:
बहुत सुंदर
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