विद्यादान से बड़ा और कोई दान नहीं हो सकता।
शिक्षा ही जिंदगी को बेहतर बनाने के रास्ते दिखाती है। पिछले दिनों समाचार पत्र में इसी से जुड़ी
एक खबर पढ़ने को मिली। मध्यप्रदेश के पन्ना
जिले में एक ऐसे थाना प्रभारी हैं, जिन्होंने पुराना थाना परिषद की
बिल्डिंग को क्षेत्र के बच्चों के लिए विद्यादान की पाठशाला (पुस्तकालय) में
परिवर्तित कर एक अनोखी पहल शुरू की है। थाना प्रभारी बखत सिंह ठाकुर कानून
व्यवस्था की जिम्मेदारी सँभालने के साथ- साथ स्थानीय छात्रों को प्रतियोगी परीक्षा
की तैयारी करवाते हैं। वे प्रतिदिन सुबह 7 से 10 बजे तक लगभग 300 छात्रों को पढ़ाने
में जुट जाते हैं। उनके इस जज्बे को देखकर उनके दो साथी आरक्षक भी पढ़ाने में उनकी
मदद करने लगे हैं। प्रसन्नता की बात है कि अब तक उनकी मेहनत से कई छात्र चयनित
होकर सरकारी अफसर और कर्मचारी बन चुके हैं।
थाना प्रभारी ठाकुर ने भी स्वयं के परिश्रम और
मेहनत से शिक्षा प्राप्त की है । शिक्षा
के बाद उन्होंने गाँव में प्रधान का पद और
फिर शिक्षक के दायित्व को बखूबी निभाया है। उसके बाद उन्होंने पुलिस की
तैयारी शुरू की और मध्य प्रदेश पुलिस विभाग में नौकरी ज्वाइन कर ली। उनका कहना है
कि चूँकि मेरी परवरिश ग्रामीण क्षेत्र में हुई है जहाँ शिक्षा ग्रहण करने के दौरान
काफी असुविधा हुई थी; इसीलिए मैंने जरूरतमंद होनहार छात्रों को पढ़ाने के बारे में विचार किया।
उनके इस सफर के शुरू होने की कहानी भी बड़ी
प्रेरक है। वे बताते हैं कि पन्ना से करीब 40 किमी दूर ब्रजपुर में वे जुलाई 2021 में पदस्थ हुए थे। उसी समय ब्रजपुर
पुलिस थाना परिसर में ही थाना की नई बिल्डिंग बन रही थी। पूरा थाना नए भवन में
शिफ्ट हो गया। तब पुराना थाना भवन खाली पड़ा था।
तभी मैंने सोचा क्यों न इसका ऐसा इस्तेमाल किया जाए कि आने वाली पीढ़ी का
भला हो सके। कोरोना के कारण बाहर पढ़ने के लिए गए बच्चे अपने अपने गाँव लौट आए थे
और पढ़ाई से दूर होते जा रहे थे। अनुमति लेकर मैंने पुराने थाना परिसर में ही विद्यादान नाम से
पुस्तकालय खोला, किताबें जुटाई और फर्नीचर लाकर दो क्लास रूम
भी बना दिए । समय लगा पर धीरे- धीरे बच्चे पुस्तकालय में पढ़ाई करने आने लगे ।
ऐसा नहीं है कि आनंद कुमार और ठाकुर ही इस
प्रकार से होनहार गरीब बच्चों को पढ़ाई में सहायता करके उनका भविष्य संवार रहे
हैं। देश में अनेक व्यक्त्ति और संस्थाएँ
हैं, जो इस प्रकार से बच्चों को आगे बढ़ने में
सहायता करते हैं; परंतु
इनकी संख्या इतनी कम है और जरूरतमंद बच्चों की संख्या इतनी ज्यादा कि लाखों बच्चे
काबिलियत होने के बाद भी आगे नहीं बढ़ पाते। ग्रामीण इलाकों में अच्छे स्कूलों की
कमी शिक्षा का निम्न स्तर और बेहतर
शिक्षकों की कमी आदि कई कारण हैं, जो दूर- दराज के इलाकों
में रहने वाले बच्चों को आगे बढ़ने में बाधाएँ उत्पन्न करते हैं। एक और प्रमुख कारण है अमीर और गरीब बच्चों में
भेदभाव। यदि कोई गरीब परिवार अपने बच्चे को अच्छे स्कूल में खर्च करके भेज भी देता
है, तो वहाँ के अलग वातावरण के कारण एक गरीब परिवार का बच्चा
हीन भावना का शिकार हो जाता है और दूसरे बच्चों के साथ तालमेल नहीं बिठा पाता।।
गरीब माता- पिता पढ़ाई में अच्छा होने के बाद भी अपने बच्चे को उच्च शिक्षा के लिए
बाहर नहीं भेज पाते। फलस्वरूप बच्चे का विकास रुक जाता है। ऐसे बहुत से कारण हैं,
जो एक बच्चे की उच्च शिक्षा में बाधक बनते हैं।
अब प्रश्न यह उठता है कि देश के प्रत्येक बच्चे को पढ़ाई का एक अच्छा वातावरण क्यों नहीं मिल पाता। देश के प्रत्येक बच्चे को एक समान शिक्षा पाने का अधिकार है; लेकिन निजी और सरकारी स्कूल के फेर में पड़कर लाखों- करोड़ों बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है। बड़े- बड़े शिक्षाविद् सुधार की बात तो बहुत करते हैं; पर निजी और सरकारी स्कूलों के अंतर को पाटने की बात को कभी गंभीरता से नहीं लिया जाता । निजी स्कूलों में भारी- भरकम पैसा लेकर फाइवस्टार की सुविधा दी जाती है। वहीं सरकारी स्कूलों में निःशुल्क पढ़ाई के साथ दोपहर का भोजन, किताबें, स्कूल यूनिफार्म सब मुफ्त है, फिर भी वहाँ के बच्चें पिछड़ जाते हैं ?
आज प्रतिस्पर्धा के इस दौर में सभी बस अच्छी
नौकरी पाना चाहते हैं। गाँव में माता- पिता अपने बच्चों को पढ़ाना तो चाहते हैं और
वे उन्हें स्कूल भेजते भी हैं; परंतु उनको यह नहीं पता
होता कि उनके बच्चों को किसमें रुचि है , वे क्या बनना चाहते
हैं या उनमें कितनी काबिलियत है। ऐसे में यह सबसे महत्त्वपूर्ण है कि बच्चों को
पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम को ऐसा बनाना कि बच्चे रट्टू तोता बनने की बजाय ऐसी समझ
विकसित करें जो उनके उज्ज्वल भविष्य में सहयोगी बने, वे मशीन
की तरह जिंदगी बिताने की बजाय एक बेहतर इंसान की तरह देश के अच्छे नागरिक बनें।
संभवतः बखत सिंह ठाकुर और अनंद कुमार जैसे लोग बच्चों की इसी प्रतिभा को पहचानते
हैं और उन्हें सही दिशा देते हुए एक अच्छा
नागरिक बनाने में सहयोगी बनते हैं। तो
क्यों न देश में ऐसी शिक्षा व्यवस्था बने कि देश का हर बच्चा बेहतर शिक्षा पा सके
और अपने माता पिता के साथ देश का नाम भी रोशन करे।
11 comments:
आदरणीया,
भारतीय दर्शन में दान का एक महत्वपूर्ण अवयव विद्या दान भी है, किंतु कितनों ने इसे ईमानदारी पूर्वक जीवन में स्वीकारा तथा अमल किया. दान का मार्ग साधन आधारित न होकर भाव आधारित है सामर्थ्य के अनुसार.
इस मायने में श्री बखत सिंह प्रशंसा ही नहीं, अपितु अनुकरणीय हैं.
आज के दौर में तो अभिभावकों का रोल भी मंहगे स्कूलों में प्रवेश के बाद समाप्त सा हो गया है. विडंबना है.
व्यवस्था या सरकार की तो बात ही बेमानी है. ऊपरी कमाई नहीं तो फिर क्या और क्यों करें.
टीचर्स लगे हैं कोचिंग की काली कमाई में.
फिर क्या होगा देश का भविष्य. चिंता का विषय है.
हर बार की तरह इस बार भी आपकी लेखनी ने एक बेहद ज्वलंत समस्या पर विचार साझा किये हैं. सो साधुवाद. सादर
हर बार की तरह ज्वलंत समस्या का समाधान प्रस्तुत करता प्रेरणादायी सम्पादकीय। शिक्षा के दान से बड़ा कोई दान नहीं।
श्री बखत सिंह से मिलाने का आभार। ऐसे व्यक्ति विश्वास बनाए रखते हैं हमारा अच्छाई और आदर्शों पर और प्रेरित तो करते ही हैं।
बहुत प्रेरणादाई और अनुकरणीय संपादकीय के लिए साधुवाद
प्रेरक लेख है। उत्तम और अनुकरणीय कार्य हेतु ठाकुर जी को साधु!
शुक्रिया नमिता जी 🙏
आपसे पूर्णतः सहमत हूँ जोशी जी। शुक्रिया आभार। 🙏
धन्यवाद 🙏
शुक्रिया करुणा जी 🙏
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार राजेंद्र जी 🙏
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