- अशोक
मिश्र
(राष्ट्रीय
पुरस्कार प्राप्त पटकथा लेखक व नाटककार)
पुस्तक – मेरा ओर न छोर (कविता संग्रह), कवि- अरूण शेखर, प्रकाशक- इंडिया नेटबुक्स, नई दिल्ली, मूल्य– ₹250
पुस्तक – मेरा ओर न छोर (कविता संग्रह), कवि- अरूण शेखर, प्रकाशक- इंडिया नेटबुक्स, नई दिल्ली, मूल्य– ₹250
अरुण शेखर के पहले काव्य संग्रह ‘मेरा कोई ओर न छोर’ की कविताएँ, कविता
जगत में तपती गर्मी के बाद बारिश की फुहार जैसी प्रतीत होती हैं। कवि युवा है लेकिन
उसकी कविताएँ वयस्क। उनकी युवा कलम में
बहक जाने, भटक जाने की भावुक चंचलता नहीं बल्कि भावों,विचारों का एक अनुशाषित संसार है। उन्हें मालूम है क्या कहना है और किन
शब्दों में कहना है। उनकी नजर साफ़ है। संग्रह की ज्यादातर कवितायें आकार में छोटी
और अर्थ में बड़ी हैं। वो समय जैसे अमूर्त को संग्रह की पहली कविता में ही मूर्त
रूप देते हैं- 'समय कभी कभी ऐसे सरकता है/ कि जैसे पाँव में बाँध लिए हो पत्थर/ और
कभी-कभी ऐसे फुर्र हो जाता है/ जैसे अभी पलक झपकी/जैसे कोई पत्ता हिला/ जैसे किसी
ने कहा हो, अरे!'
अरुण प्रकृति से
सन्दर्भ लेते हैं और उसमें कविता का रसायन डाल के एक परचित-अपरिचित संसार सहज भाव
से रचने में कामयाब होते दीखते हैं। ‘घुमड़ते बादल’, ‘कीचड़’, ‘कड़कती बिजली’ , ‘सुरमई साँझ’ , ‘मुंडेरों पर चाँदनी’, ‘ओस की बूँदें’ ‘मचलती हुई बारिश’ , ‘चिड़िया’,
तितली’ जैसे परिचित इमेजरी के साथ वो ‘लहराते
हुए गेसू’ और उनसे ‘मोतियों की सुंदर
झालर’ बनाते हैं और इन सबको अपरिवर्तनीय बनता देखते हैं , लेकिन जानते हैं कि
‘तुम्हारे जाने से कुछ नहीं बदलेगा’ और फिर एक अफ़सोस के साथ कहते हैं, ‘बस, अब इन पर कोई कविता नहीं लिखेगा।’ तो पाठक के मन
में भी एक तरह का अफ़सोस जगाते हैं और कविता के सीमित होते दायरे पर प्रश्न चिह्न खड़े करते हैं।
वो ‘एक दिन अपना
दुःख पोटली में बाँध कर खूँटी पर टाँग देते हैं और उस पर खिलखिलाता हुआ इमोजी
चिपका कर भालू नचाने वाले का खेल देखने बच्चों कि भीड़ के साथ चल पड़ते हैं। और फिर
खूँटी पर टँगी दुःख की पोटली को उतार लेते हैं।'
अहा कितना सुंदर, मनोरंजक दृश्य संसार रचता है कवि!
एक जगह वो बताते कि
‘कैसे बनती है बड़ी कविता! प्रेम में पगने से,आग में तपने से, या कि ज़िन्दगी में जूझने से!’
और फिर वो मजेदार
चुटकी लेते दिखते हैं, ‘पाँचवाँ
आदमी इसी फिक्र में मर गया कि चार लोग क्या कहेंगे / उन्हें जब से ये ख़बर लगी है , वो
पांचवें आदमी की तलाश में है।'
उनके लिखे खत आसुओं
में भीग जाते हैं लेकिन जिसके लिए ख़त लिखे उसने पता-ठिकाना ही बदल लिया है। एक टीस
सी जगा कर कवि कहीं और निकल पड़ता है। यह कहते हुए कि ‘चलो थोड़ा सा जी लिया जाए। किसी का दर्द पी
लिया जाए।’
कवि मुम्बई वासी हैं
सो अक्सर समुद्र की सैर करने निकल जाता है ‘समंदर किनारे रेत पर तुम्हारा चेहरा उभर आया था’ फिर सूरज को देख कहता है, ‘अब ये सूरज पिघल कर/ समंदर हो जाएगा/ दिन
भर जला है जो।’
संग्रह में समुद्र
पर अरुण की कई कविताएँ हैं और लगभग सब समुद्र के साथ इंसान के रिश्तों के विविध
आयामों और असर से पाठक को रूबरू कराते हैं।
कवि जब कभी अकेला
होता है तो कहता है, ‘तुम्हारे
साथ/केवल तुम होते/और कोई नहीं/छाया भी नहीं।’
अरुण राजनैतिक
दृष्टि सम्पन्न कवि हैं जो उनकी कविता ‘कुर्सी’ में मजेदार ढंग से नज़र आती है। ‘सब
कुर्सी के जुगाड़ में रहते हैं जीवन भर।'
अरुण शायद गणित के
अच्छे विद्यार्थी रहे हैं इसलिए उनकी एक कविता गणित के जोड़, भाग, गुना के ज़रिये
इन्सान की ज़िन्दगी को नये अंदाज़ में समझने की कोशिश करती है।
कवि की कलम से किसी
की यादें नये अंदाज़ में उभरती रहती हैं,
‘दुनिया बड़ी छोटी है / रास्ते घुमावदार हैं / किसी मोड़ पर हो सकता है
कोई याद सुस्ताती हुई मिल जाय / तुम्हारे थके कदमों को प्यास लगे/ तो यादों से हालचाल
पूछ लेना!’
अरुण अभिनेता हैं, रंगकर्मी हैं इसलिए उनकी कविताओं में किसम-किसम
के रंग और जीवन नाट्य उभरता रहता है, जीवन का एक बड़ा फलक
दिखाई देता है। कविताएँ पढ़िए , तो लगेगा प्रकृति और जीवन के
मंच पर कोई सरस नाटक देख रहे हैं। छोटी-छोटी कविताओं में कोई महा-काव्य कविता पढ़
रहे हैं।
बेहद सरस, बेहद सरल है अरुण का कविता संसार। वाकई
जिसका ‘ओर है न छोर!’
अगर आपने बहुत
दिनों से अच्छी कविताएँ नहीं पढ़ीं हैं तो मेरा आग्रह है अरुण शेखर को पढ़े। बधाई इस संभावनाओं
से भरे-पूरे कवि को!
13 comments:
बहुत बहुत शुक्रिया। उदंती।
बहुत अच्छा लिखा है सर। इस संग्रह की कविताएं बहुत अच्छी हैं।
अतिसुन्दर कविता संग्रह है गुरुजी सत्यता से परिपूर्ण मनमोहक पढ़कर बहुत अच्छा लगा 🙏🙏☺️☺️
Wah Sundar parikalpana maano jeewan swatah hi apne anubhavon ko sajha kar raha ho..
Wah Sundar parikalpana maano jeewan swatah hi apne anubhavon ko sajha kar raha ho..
बधाई हो अरुन शेखर जी
Badhai ho arunji !
ATI Sundar bilkul real
Badhai. Likhte rahiye. Panchvan aadmi ko zinda rakhna zaruri hai.
अरुण जी,
इस लेख के जरिए आपके सृजन संसार की एक झलक मिली। मन भर आया। सभी कविताओं को पढ़ने के लिए आतुर हूं।
अशोक मिश्र ने बढ़िया आकलन किया है। अरुण शेखर का काव्य संग्रह 'मेरा ओर न छोर' मैंने पढ़ा है। बहुत अच्छी कविताएं हैं। यह संग्रह अमेज़ॉन पर उपलब्ध है।
सभी कविताएं बहुत सुंदर हैं और सब में तरह-तरह का फ्लेवर है। कई बार तो ऐसा लगता है कि अरे इन पंक्तियों में तो कहीं ना कहीं मेरे ही अंतर्मन का बिंब झलकता है। और हर बार वही कविता आपकी मनस्थिति के अनुसार अलग-अलग भाव, अलग-अलग सुगंध दे जाती है।
आशा है आपकी लेखनी से और भी कविताएं निकलेंगी और दिलों को छू लेगी।
अरुण जी..
एक अच्छे अभिनेता तो हैं ही और मंच पर अपना जादू बिखरते रहे हैं, लेकिन उनकी लेखनी में भी जादू है.. ये यहां कुछ पंक्तियां पढ़कर पता चला..
अग्रिम शुभ कामनाएँ सर..
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