मैं अक्सर ही अपने
अतीत के जीवन को याद करता हूँ और अपनी
युवावस्था के अनुभवों से मिले सबक मुझे उन अच्छे-बुरे दिनों की याद दिलाते हैं
जिन्होंने मेरे व्यक्तित्व और चरित्र का निर्माण किया। काश मैं किसी टाइम-मशीन में
बैठकर बीस साल पीछे जा सकता और जवानी में कदम रखते अपने प्रतिरूप को कुछ सलाह और
चेतावनियाँ दे पाता! लेकिन आज मैं अपने जीवन से खुश हूँ और यह मानता हूँ कि जो होता है अच्छे के लिए होता है।
अपनी पढ़ाई पूरी
करने के बाद मैंने भी दूसरे नौजवानों की तरह नौकरी खोजने की जद्दोजहद की। मुझे कई
तरह के काम करने के मौके मिले। मैं जिस तरह का व्यक्ति था उसे देखते हुए कई काम
चुनौतियों से भरे थे। मैं अकाडमिक टाइप का लड़का था जो पढ़ने-पढ़ाने में रूचि लेता
था लेकिन मैंने छोटे कस्बों और दूसरे शहर में रहकर मार्केटिंग की, प्रेस में काम किया, घर-घर
जाकर ट्यूशन दी, कॉलेज में पार्ट-टाइम पढ़ाया, और भी बहुत कुछ मैंने करके देखा। इन बीस वर्षों में दुनिया और मैं खुद
बहुत बदल चुका हूँ। अब मैं पब्लिक सेक्टर में फुल-टाइम काम करता हूँ और जब मैं छोटे बच्चों अपने कैरियर के बारे में
गंभीरता से सोचते देखता हूँ, तो मुझे बहुत खुशी होती है कि किशोरवय
युवक-युवतियाँ अपने कैरियर के विकल्पों के बारे में बहुत जानकारी रखते हैं। वे
अपने माता-पिता की इच्छाओं को ही नहीं बल्कि अपने सपनों को पूरा करने के लिए भी
मेहनत करने के लिए तैयार और दृढ़-निश्चयी हैं।
मैं कैरियर से
संबंधित सलाह माँगनेवाले हर
नवयुवक से कहना चाहता हूँ कि वह ज़िंदगी
से मुझे मिले इन सबक से प्रेरणा लेते हुए आगे बढ़े। स्थायी
नौकरी में आने से पहले लगभग 10 साल के दौरान मेरी ज़िंदगी ने
मुझे जो कुछ भी सिखाया, वह हर उस व्यक्ति के काम आ सकता है
जो सफलता, समृद्धि, संतुष्टि और
परफ़ेक्शन की कामना करता है। ये हैं वे सबकः
1. ज़िंदगी
कभी भी तय प्लान के हिसाब से नहीं चलती
इसे ज़िंदगी की
खूबसूरती कह लें या विसंगति, ज़िंदगी अपने यूनिवर्सल पैटर्न पर चलती है। वह हमारी परवाह नहीं करती। जब
हम बड़े हो रहे होते हैं तो यह उम्मीद करते हैं कि ज़िंदगी में चीज़ें हमारे
मुताबिक हों; लेकिन ऐसा बहुत कम ही होता है। ऐसे में अनासक्ति के नियम के अनुसार चलने वालों को निराशा नहीं होती। यह
नियम कहता है कि व्यक्ति को उस दिशा में जाना चाहिए जहाँ
जीवन ले जा रहा हो और अपना कर्म करते रहना चाहिए। वह काम करते रहना चाहिए, जो सही है। कर्म करते रहना चाहिए और यह उम्मीद करनी चाहिए कि उनका परिणाम
अच्छा होगा। लेकिन यदि परिणाम हमारे प्रतिकूल हो तो हार नहीं माननी चाहिए।
2. जीवन
में सहजता-सरलता होनी चाहिए
बचपन में मेरी पसंद
की चीज़ें जैसे खिलौने और कॉमिक्स वगैरह मुझे खुशियाँ मिलने का जरिया थीं। जो कुछ
भी मुझे खुश कर सकता था वह कोई-न-कोई कंक्रीट ऑब्जेक्ट था, कोई चीज़ थी। स्कूल छोड़ने के बाद मुझे यह
अहसास हुआ कि मुझे सबसे अधिक खुशी अपने दोस्तों के साथ घूमने और शानदार व्यक्तियों
से मिलने पर होती थी। मैं दूसरों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहता था। मुझे इस बात
से भी बहुत खुशी मिलती थी कि मैं किसी के काम आ सकता था।
रोज़ ऑफ़िस
आते-जाते मैं अपने देश के गरीब लोगों को देखता हूँ तो वे मुझे खुश दिखते हैं। उनकी ज़िदगी में बहुत
कमियाँ हैं लेकिन वे संतुष्ट दिखते हैं। हमारे भीतर नई-नई चीजों को खरीदने और
आजमाने की जो इच्छा होती है वह हमारी मानसिक ऊर्जा को इस्तेमाल करती रहती है। यदि
हम हर समय भौतिक वस्तुओं के बारे में नहीं सोचें तो यह ऊर्जा क्रिएटिव काम मे लग
सकती है, यह हमारी प्रोडक्टिविटी को बढ़ा सकती है।
नवयुवकों के सामने
आज बहुत व्याकुलता हैं। उनके आसपास ऐसा बहुत कुछ है जो उनके ध्यान को हमेशा भटकाता
रहता है, उन्हें व्यस्त रखता है। यदि वे जीवन में
बहुत उन्नति करने के बारे में गंभीर हैं तो उन्हें सहजता और सरलता को अपनाना चाहिए।
3. ब्रह्मांड की
लय के साथ जुड़ना ज़रूरी है
मैं यह मानता हूँ कि एक सार्वभौमिक ऊर्जा होती है जो हमें हमेशा
उपलब्ध है, लेकिन हम अपने
भटकाव के कारण उसका चैनल ब्लॉक कर देते हैं। यह ऊर्जा हमें तब मिलने लगती है जब हम
खुद को सहजता के साथ प्रकृति के हाथों में सौंप देते हैं। प्रकृति के हाथों में
खुद को सौंपने का अर्थ यह है कि हम परिस्तिथियों और जीवन से लड़ें नहीं बल्कि उनके
प्रवाह को पहचान लें। जब हम प्रकृति का विरोध करना बंद कर देते हैं तो यह हमें
भावी जीवन की दिशा के बारे में गहराई से गाइड करने लगती है।
आप इसे चाहे लॉ ऑफ़
अट्रेक्शन कह लें या ईश्वर की इच्छा- प्रकृति के नियम जैसे कार्य-कारण, समय, अनासक्ति,
और कर्म हमें सही पथ से विचलित होने नहीं देते। इनका पालन करते हुए
धैर्यपूर्वक परिश्रम करनेवालों को वह सब मिलता है जो वे पाना चाहते हैं।
4. बुरी
घटनाएँ भी अच्छे अवसर उपलब्ध कराती हैं
जब हम किसी मुसीबत
में गले तक फँस जाते हैं तो
उससे छूट पाना बहुत कठिन हो जाता है। ऐसे में जीवन का वह दौर घोर निराशा और तनाव
से भर जाता है। मैं भी जीवन में ऐसे अनेक दौर से गुज़र चुका हूँ ।
लेकिन हर समस्या का
समाधान एक-न-एक दिन ज़रूर होता है। हर रात के बाद सूरज निकलता है। हम जीवन में हर
कठिनाई का सामना करते हैं और उससे सीख लेकर आगे बढ़ते हैं। जीवन में नई चेतना
जगाने के लिए यह ज़रूरी है कि कैरियर के शुरुआती दौर में ही हमें उतार-चढ़ाव का
सामना करने कै मौके मिल जाएँ ताकि भावी जीवन में हम उनसे घबराएँ नहीं। यदि मेरे
जीवन में निराशा के पल नहीं आते तो शायद मैं पर्सनल ग्रोथ नहीं कर पाता। हम सबके
जीवन में टर्निंग पॉइंट्स आते हैं और कई बार ऐसा भी होता है कि सब कुछ खो कर नए
सिरे से शुरुआत करनी पड़ती है। मुझे दुःख है कि कुछ नवयुवक इनका सामना नहीं कर
पाते और ज़िंदगी से हार मान लेते हैं। काश मैं उन्हें यह समझा पाता कि कोई भी
त्रासदी या यातना जीवन से बड़ी नहीं होती और सब कुछ खत्म हो जाने पर भी भविष्य बचा
रह जाता है।
5. अपनी
नियति का निर्माता मैं ही हूँ
मैंने अपने संघर्ष
से भरे जीवन के दौर में अपनी परिस्तिथियों और समस्याओं के लिए हमेशा दूसरों को
जिम्मेदार ठहराया। मुझे खेद है कि मेरे माता-पिता को मेरी कटु उक्तियों का भरपूर
सामना करना पड़ा। वे मेरे लिए सबसे आसान शिकार थे। मेरे साथ होनेवाली हर बुरी बात
के लिए मैं उन्हें ज़िम्मेदार
ठहरा देता था।
इसी तरह मैं किसी
भी तरह की मानसिक और भावनात्मक चोट खाने पर दूसरों को जिम्मेदार ठहराता था।
बहुत-बहुत बाद में अंतःप्रेरणा जागने पर मैं यह महसूस कर पाया कि मुझे होने वाली
किसी भी प्रकार की अनुभूतियों के लिए मैं ही उत्तरदायी था। यह मेरे ही वश में था
कि मैं किन बातों पर कैसी प्रतिक्रिया देता।
आज मैं यह कह सकता
हूं कि मैं अपने जीवन, अनुभूतियों
और विचारों का स्वामी हूँ । कोई दूसरा व्यक्ति मेरी भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर
सकता। यदि मैं बुरा फ़ील नहीं करना चाहूँ तो दूसरा व्यक्ति मुझे बुरा फ़ील नहीं करा सकता।
दूसरे लोग मेरे मन-मस्तिष्क पर अपनी निगेटिविटी नहीं थोप सकते। मैं किसी भी बात के
लिए प्रतिक्रिया दूसरों की अपेक्षानुसार नहीं देता। मैं हमेशा अपने ही नियंत्रण
में रहता हूं।
6. मुझे
परवाह नहीं कि लोग मेरे बारे में क्या सोचते हैं
जब हम युवावस्था
में कदम रखते हैं तो चाहते हैं कि लोग हमें पसंद करें। यह मनोविज्ञान का बहुत रोचक
नियम है कि हम उन लोगों को सबसे अधिक इंप्रेस करना चाहते हैं जिन्हें हम खुद पसंद
नहीं करते और जो हमें पसंद नहीं करते। इस नियम का वास्तविक अनुभव मुझे बहुत देर से
हुआ और मैंने पाया कि मेरा बहुत सारा समय दूसरों के बारे में सोचने में व्यर्थ हो
गया था।
यह मुझपर ही निर्भर
करता है कि मैं दूसरों की चिंता किए बिना अपनी उस छवि का निर्माण करूँ जिसमें मेरे
चरित्र की सभी विशेषताएँ स्पष्ट हों। लेकिन मुझे ऐसा कोई प्रयास करने की ज़रूरत भी
नहीं है। क्योंकि मैं यह मानता हूँ कि मैं
किसी भी रूप में स्पेशल नहीं हूँ । हम हमेशा ही यह सोचते रहते हैं कि दूसरे
व्यक्ति हमारे बारे में सोचते होंगे लेकिन यह भी तो सच है कि वे लोग भी हमारे बारे
में यही सोचते होंगे! आज के स्मार्टफ़ोन-क्रेज़ी दौर में सभी अपनी-अपनी स्क्रीन
में डूबे हुए हैं और कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के बारे में कुछ सेकंड से
अधिक देर तक नहीं सोचता। दुनिया यथास्थिति से समझौता करनेवालों से भरी हुई है लेकिन
वही लोग दुनिया को बदल पाते हैं जो दूसरों की परवाह नहीं करते। यदि आप दुनिया में
अपनी जगह बनाना चाहते हैं तो दूसरी श्रेणी का व्यक्ति बनिए। अपना जीवन उस तरह
बिताइए जैसा आप चाहते हैं, उतना
ही निर्भय बनिए जितना आप बचपन में थे, और हमेशा सच के साथ
खड़े होइए।
7. कथनी
से अधिक करनी बोलती है
किशोरवय को पार
करके युवावस्था की दहलीज पर कदम रखने पर भी मैं छोटे बालक जितना सीधा-सादा व्यक्ति
था। मैं लोगों पर भरोसा करता था। जब मेरे दोस्त मुझे कहते थे कि वे हर परिस्तिथि
में मेरे साथ खड़े होंगे तो मैं उनपर यकीन करता था। कभी किसी ने मुझपर प्यार जताया
तो मैं यह मान बैठा कि वे वाकई मुझसे प्रेम करते थे। मेरे कामकाज की सराहना करने
वालों को मैं अपना हितैषी मानता था लेकिन उन्होंने मुझे अप्रत्यक्ष रूप से हानि
पहुँचाने के प्रयास किए। लंबे समय तक ठोकरें,
चोट और धोखे खाने के बाद मुझे इस कीमती बात का ज्ञान हुआ कि अधिकांश
लोग बाहर से कुछ होते हैं और भीतर से कुछ और। वे आपके सामने भले बने रहते हैं और
पीठ पीछे आपकी जड़ें काटते हैं।
बचपन से ही में
लोगों के व्यवहार से उनके चरित्र का आकलन करता था। लेकिन उनसे मिले अनेक कटु
अनुभवों ने मुझे इस सीमा तक कठोर बना दिया कि मैं लोगों से सिर्फ़ काम का मेलजोल
रखने लगा। अब मैं सम्बन्धों को प्रोफ़ेशनल रखने पर यकीन करता हूँ । मैं किसी से भी
इस गहराई से नहीं जुड़ता कि उनसे अलग होने का मुझे अफ़सोस हो। ठोकरों और ठुकराव ने
मुझे सिखाया है कि लोगों में निहित अच्छाई और बुराई उनका जन्मजात स्वभाव है जिसे
वे बदल नहीं सकते। हमें ही उनसे डील करते वक्त इस बात का ध्यान रखना चाहिए।
8. बीत रहा यह क्षण ही सबसे महत्त्वपूर्ण है
मैं हमेशा आनेवाले
कल की बेसब्री से राहत तकता था; क्योंकि वही मुझे अपने वर्तमान से बाहर निकाल सकता था। जब परिस्तिथियाँ
मेरे काबू से बाहर हो जाती थीं तब मैं सारे प्रयास छोड़कर यह उम्मीद करने लगता था
कि भविष्य में सब कुछ ठीक हो जाएगा।
जब कभी हमें कोई
बुरा अनुभव होता है तो हम उस अनुभव से नहीं बल्कि उससे मिलनेवाली पीड़ा से पीछा
छुड़ाना चाहते हैं। लेकिन आप पीड़ा की परवाह करना तब बंद कर देते हैं जब आप यह जान
लेते हैं कि दुःख अवश्यंभावी है लेकिन पीड़ा वैकल्पिक है। यह जान लेने पर आप
वर्तमान क्षण में जीना सीख लेते हैं। इसके अलावा और भी कई उपाय हैं जो हमें
वर्तमान क्षण में जीना सिखाते हैं। वे हैं- मिनिमलिस्टिक जीवनशैली का पालन करना, मुस्कुराना, परिस्तिथियों
के घटित होने के मूल कारणों तक पहुँचना, पुरानी चोटों से उबर
जाना, अपने काम में दिल लगाना, बेहतर
कल के लिए खूब परिश्रम करना, अतीत की उपलब्धियों में डूबे
नहीं रहना, चिंता नहीं करना, पुरानी
समस्याओं के नए हल खोजना, और एडिक्शन से दूर रहना।
आज, अभी, इस क्षण में
हमारे भविष्य की कहानी लिखी जा रही है। हमारा हर विचार, हर
भावना और हर क्रिया उस कहानी को नया मोड़ दे सकती है। यह बीत रहा क्षण यदि सही काम
में व्यतीत होगा तो वह आने वाले दसियों वर्षों तक अपना पॉज़िटिव प्रभाव छोड़ता
रहेगा।
मनुष्य के जीवन की
सबसे बड़ी खूबसूरती यह है कि बहुत जटिल होने पर भी इसे किसी किताब के नए चैप्टर की
तरह शुरु से शुरु किया जा सकता है। जीवन के कैनवास को खराब हो जाने पर दुरुस्त
करके इसपर नया रंग भरा जा सकता है। अच्छी बात यह है कि इस काम के लिए जो साहस, संकल्प, और समर्पण
चाहिए वह सबके पास सुलभ हैं। ( हिन्दी ज़ेन से)
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