कोविड-19 के प्रकोप
और खौफ के चलते बाज़ार में तरह-तरह की दवाओं और एंटीडोट के साथ-साथ इम्यूनिटी बूस्टर
पदार्थों एवं दवाइयों की बाढ़-सी आ गई है। प्रोटीन जैसे सप्लीमेंट जो पहले मसल
पॉवर बढ़ाने की बात करते थे, वे अचानक इम्यूनिटी बूस्टर हो गए हैं। जिन दवाइयों का
विज्ञापन पहले शक्तिवर्धक के रूप में किया जाता था, वे ही अचानक बाज़ार को देखते हुए इम्यूनिटी बूस्टर हो गई हैं।
पत्र-पत्रिकाओं में
भी प्राकृतिक इम्यूनिटी बूस्टर फलों एवम पदार्थों की चर्चाएँ हैं। जैसे खट्टे फल,
नींबू, संतरा, अंगूर, लहसून, अदरक आदि। कोरोना के डर के चलते ग्रीन टी, पपीता, दही, कीवी, सूरजमुखी के बीज की माँग
बढ़ गई है। विटामिन सी से भरपूर खट्टे फलों के बारे में कहा जाता है कि ये श्वेत
रक्त कोशिकाओं को बढ़ाते हैं जो रोगकारकों से होने वाले संक्रमण से लडऩे का काम
करते हैं। इसी तरह हल्दी में उपस्थित करक्यूमिन को भी इम्यूनिटी बूस्टर और
एंटी-वायरल बताया जा रहा है। बचाव और सावधानी के लिए गोल्डन मिल्क आजकल खूब पिया
जा रहा है।
सवाल यह है कि आखिर
इम्यूनिटी है क्या, जिसे बूस्ट करने की ज़रूरत आन पड़ी है।
दरअसल शरीर की
प्रतिरक्षा प्रणाली या रोग-
रोधक क्षमता को ही इम्यूनिटी कहा जाता है। इससे बैक्टीरिया,
कवक, विषाणु जैसे संक्रमणकारी रोगजनक से लडऩे की हमारी शरीर की
क्षमता बढ़ती है। इन दिनों इम्यूनिटी बूस्टर के नाम पर सर्वाधिक चर्चा में जो
औषधियाँ हैं वे हैं तुलसी ड्रॉप्स और गिलोय वटी। आइए आज गिलोय के बारे में चर्चा
करते हैं।
डॉ. विजय नेगीहॉल
द्वारा लिखित पुस्तक हैंडबुक ऑफ मेडिसिनल प्लांट्स में इसके कई नाम दिए गए हैं। आप
और हम जिसे सिर्फ़ गिलोय के नाम से जानते हैं उसे आयुर्वेद में गुडुची के नाम
से जाना जाता है। वनस्पति शास्त्र में गिलोय का टीनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया है। आयुर्वेद की किताबों में गुणों के आधार पर
इस पौधे के कई नाम मिलते हैं। जैसे पत्तियों से शहद जैसा गाढ़ा रस निकलता है तो
नाम दे दिया मधुपर्णी। कटे हुए तने से फूटकर नया पौधा बन जाता है तो नाम हो गया
छिन्नरूहा। इसका एक और नाम तंत्रिका है जो बेल से नीचे की ओर लटकती हवाई,
तंतुनुमा, लम्बी पतली धागों जैसी जड़ों के कारण दिया गया है। एक और
नाम चक्रलक्षणिका है क्योंकि तने की आड़ी काट गाड़ी के पहियों जैसी नज़ऱ आती है। किसी ने तो इसे कान के कुंडल की तरह देखा और नाम दे
दिया कुंडलिनी।
अंत में सबसे खास
नाम है अमृता। किंवदंती है कि अमृत मंथन के बाद निकले अमृत की बूँदें पृथ्वी पर जहाँ-जहाँ गिरीं ,उन्हीं बूँदों से इस वनस्पति की उत्पत्ति हुई। अत: इसे नाम
दिया गया अमृता।
यह औषधीय महत्त्व
की एक बहुवर्षीय, आरोही लता है जो बड़े-बड़े पेड़ों पर चढ़कर उन पर छा जाती
है। यह मुख्यत: भारतीय उपमहाद्वीप का पौधा है और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया
जाता है। श्रीलंका और म्यांमार में भी मिलता है। यह तेज़ी से फैलने वाली झाड़ी है।
पत्तियाँ बड़ी-बड़ी 15 सेंटीमीटर तक की होती हैं। बेल खेतों की मेड़ों,
पहाड़ी चट्टानों और जंगलों में पेड़ों पर चढ़ी हुई पाई जाती
है। पौधे एकलिंगी होते हैं, अर्थात नर बेल अलग और मादा बेल अलग होती है। ग्रीष्म ऋतु
में पर्णहीन अवस्था में इस पर फूल आते हैं जो हरे पीले रंग के लंबी डंडियों पर
लगते हैं। नर फूल समूह में जबकि मादा फूल अकेले ही खिलते हैं। फल चटक लाल नारंगी
रंग के होते हैं जो 2 -3 के झुंड में लगते हैं। बीजों का फैलाव बुलबुल पक्षी के
माध्यम से होता है।
इस बेल की पत्तियों,
तने और जड़ में लगभग 29 प्रकार की एंडोफायटिक फफूंद पाई
जाती हैं जो पौधे को कोई हानि नहीं पहुँचातीं। इन एंडोफायटिक फफूंद का रस एक
बहुभक्षी पतंगे के नियंत्रण में बहुत उपयोगी पाया गया है।
इस औषधीय पौधे पर
वर्तमान में दुनिया भर में शोध चल रहा है। सोहम साहा और शामश्री घोष द्वारा 2012
में एनशिएन्ट साइंस ऑफ लाइफ में प्रकाशित 'वन प्लांट मैनी रोल्स’ के अनुसार इसमें एल्केलाइड्स, स्टेरॉयड्स, टरपीनॉइड्स और ग्लाइकोसाइड्स जैसे सक्रिय तत्व पाए गए हैं।
एंटीडायबेटिक और एंटीबायोटिक प्रभाव के कारण विभिन्न बीमारियों में इसका काफी
उपयोग किया जा रहा है।
गिलोय के
इम्यूनोमॉड्यूलेटरी गुण अच्छी तरह से ज्ञात है। मिथाइल पायरोलीडोन,
हाइड्रोक्सीमस्किटोन फार्माइल लेनोलेन जैसे सक्रिय तत्त्वों के प्रभाव प्रतिरक्षा तंत्र पर और
कोशिका-विष के रूप में दर्ज किए जा चुके हैं।
जर्नल ऑफ
एथ्नोफार्मेकोलॉजी में प्रकाशित शोध पत्र में इसमें सात इम्यूनोमॉड्यूलेटरी सक्रिय
पदार्थ रिपोर्ट किए गए। 2019 में प्रियंका शर्मा और अन्य द्वारा हैलियोन में
प्रकाशित केमिकल कांस्टीट्यूएंट्स एंड डायवर्स फार्मेकोलॉजिकल इम्पॉर्टेन्स ऑफ
टीनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया में 100 से अधिक सक्रिय तत्व पहचाने गए हैं। इनमें से कई
इम्यूनोलॉजिकली सक्रिय पदार्थ हैं।
श्रीलंका
विश्वविद्यालय एवं आयुर्वेद संस्थान के दिसानायके और सहयोगियों द्वारा 2020 में
प्रकाशित एक पर्चे इम्यूनोमॉड्यूलेटरी एफिशिएंसी ऑफ टीनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया अगेंस्ट
वायरल इंफेक्शन में बताया गया है कि इसमें ऐसे पदार्थ पाए गए हैं जो इम्यूनिटी को
बढ़ाते हैं। उन्होंने पाया कि पौधों के शुष्क तने में इम्यूनोमॉड्यूलेटरी प्रोटीन
पाया गया है जो मानव में इम्यूनोलॉजिकल क्रिया बढ़ाता है।
गिलोय के सक्रिय
पदार्थ कब तक असरकारी रहते हैं इस संदर्भ में शांतिकुंज हरिद्वार द्वारा प्रकाशित
पुस्तक जड़ी-बूटियों द्वारा स्वास्थ्य संरक्षण में अमृता के बारे में लिखा गया है
कि इसके सक्रिय तत्व 2 महीने से ज़्यादा उपयोगी नहीं रहते। घनसत्व को भी 2 महीने
से ज़्यादा सक्रिय नहीं माना जाता। अत: अच्छे लाभ के लिए ताज़े रस की ही सलाह दी
जाती है। वैसे छाया में सुखाए गए तने को 3 महीने के अंदर उपयोग में लेने की बात
कही गई है। तो यह शोध का विषय है कि फिर आयुर्वेदिक दवाइयों की एक्सपायरी डेट
दो-तीन साल तक कैसे हो सकती है?
कुल मिलाकर यह कहा
जा सकता है कि गिलोय में बहुत सारे सक्रिय तत्व हैं जिनका गहन परीक्षण करने की
ज़रूरत है। इसके औषधीय गुणों का जि़क्र चरक और भाव प्रकाश निघंटु में भी किया गया
है। इतनी उपयोगी इस बेल पर और गंभीरता से शोध की ज़रू
एक और महत्त्वपूर्ण
बात जो गिलोय के बारे में अक्सर पढ़ी-सुनी जाती है, वह यह कि नीम के ऊपर चढ़ी हुई गिलोय की बेल ज़्यादा औषधीय
महत्त्व की होती है। इस पर भी शोध की आवश्यकता
है। (स्रोत फीचर्स)
4 comments:
मै 7 महीने से गिलोय का प्रयोग कर रही हूँ मुझे बहुत फायदा हुवा है। हमारा पूरा परिवार भी लिया।
भारतीय आयु्विज्ञान पर रिसर्च की अनेानेक संभावनाएं हैं इस विज्ञान पर विश्वास तभी किया जा सकता है जब तथ्यों को प्रमाणित कर प्रकाशित तथा प्रकाशित किया जाएगा। कॉरोनिल दवा का दावा अभी तक पूर्ण रूप से विश्वसनीय क्यों नहीं बन सका? क्या दवाई में कोई कमी है? अगर नहीं तो दुनिया के लिए मिसाल क्यों नहीं बन सका, और अपने ही दावों से स्वयं ही हाथ पीछे क्यों कर रहा?क्या यहां पर भी राजनिति हो रही है?ये सब भी सोच एवम् शोध का विषय हो सकता है।
भारतीय आयु्विज्ञान पर रिसर्च की अनेानेक संभावनाएं हैं इस विज्ञान पर विश्वास तभी किया जा सकता है जब तथ्यों को प्रमाणित कर प्रकाशित तथा प्रकाशित किया जाएगा। कॉरोनिल दवा का दावा अभी तक पूर्ण रूप से विश्वसनीय क्यों नहीं बन सका? क्या दवाई में कोई कमी है? अगर नहीं तो दुनिया के लिए मिसाल क्यों नहीं बन सका, और अपने ही दावों से स्वयं ही हाथ पीछे क्यों कर रहा?क्या यहां पर भी राजनिति हो रही है?ये सब भी सोच एवम् शोध का विषय हो सकता है।
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