माफ़ करना माँ
- सत्या शर्मा ‘कीर्ति’
पता है माँ
मेरी विदाई के वक्त
जो दी थी तुमने
अपनी उम्र भर की सीख
लपेटकर मेरे आँचल में।
चौखट
लाँघते वक्त
मैंने टाँग दिया उसे
वहीं तेरी देहरी पर
गवाह है
नीम का वो चबूतरा
तेरी बेवसी और
ख़ामोशी का
इसलिए मैं
चुराकर ले आई
तेरे टूटे और बिखरे
ख़्वाब
जिसमें मैं प्रत्यारोपित
कर सकूँ
उम्मीदों और हसरतों
की टहनियाँ ।
ताकि जब
मेरी बेटी विदा हो
मैं बाँध सकूँ
उसके आँचल में
आत्म सम्मान का
हल्दी -कुमकुम...
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2 comments:
मन छूती कविता
हार्दिक धन्यवाद रश्मि जी
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