आयो नवल बसंत सखी...
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ज्योतिर्मयी पंत
जनमानस को नयी स्फूर्ति, उमंग ऊर्जा
से भर देते हैं त्योहार;इसीलिए विश्व में त्योहार मनाने की
परंपरा बनी होगी.हमारे देश में हर क्षेत्र में विविध पर्व और त्योहार मनाये जाते हैं। इनमें होली इकलौता ऐसा पर्व है जिसके नाम से ही मन उमंग और उल्लास से भरने लगता है। यों तो होली
पूरे देश में ही मनाई जाती है परन्तु उत्तराखंड की होली अति विशिष्ट है।इसे अन्य स्थानों की तरह कुछ दिन ही नहीं अपितु एक लम्बी
अवधि तक मनाने की परम्परा है।
कुमाऊँ क्षेत्र में बसंत
पंचमी से ही होली का आरम्भ हो जाता है और शिव रात्रि के बाद दिनों दिन
उत्साह बढ़ता जाता है और फाल्गुन की एकादशी से तो पूर्ण रूप से होली मनाई जाती है।
फाल्गुन शुक्ल एकादशी या आमलकी एकादशी के दिन ‘चीर बंधन’ किया जाता है ।एक वृक्ष विशेष की बड़ी सी शाखा को काटकर एक
सुनिश्चित स्थान पर विधिपूर्वक गाड़ दिया जाता है।मोहल्ले के घरों के सदस्य इसमें
लाल और सफ़ेद कपड़े की चीर बाँधते हैं।होली पर्यंत इसकी रक्षा की जाती है ।यहीं पर
धूनी सी जलाकर लोग रात भर नाचते गाते हैं।
चीर बाँधते समय भी प्रश्नोत्तर रूप में गीत
गाते हैं-
कैले(किसने ) बाँधी चीर हो
रघुनन्दन राजा
गणपति बाँधी चीर हो ...इस तरह सभी देवताओं का
नाम लिया जाता है.बाद में परिवार के सभी सदस्यों का नाम की इन इन लोगों ने चीर
बाँधी।
ज्योतिषीय गणना के आधार पर भद्रा रहित मुहूर्त
में देवी देवताओं पर रंग छिड़का जाता है और सभी सदस्यों के लिए लाए गए सफ़ेद कपड़ों
पर भी रंग के छींटें दिए जाते हैं।इसके बाद तो घर –घर में होली की बैठकों की धूम
मच जाती है।
होली की बैठकों में भी पहले देवताओं -गणेश,
शिव शंकर ,विष्णु भवानी की स्तुति वाले
फाग गीत गाये जाते हैं ।
सिद्धि को दाता विघ्न विनाशन
होली खेलें गिरिजापति नंदन ।
.............................................
ऊँचे भवन पर्वत पर बस रही
अंत तेरा नहीं पाया मैया
........................................
शिव शंकर आज खेले होरी
.......... फिर राम और कृष्ण के जीवन पर आधारित
गीत।
गायन शैली के आधार पर यहाँ दो तरह की होली होती
है ।ठाड़ी यानी खड़ी होली;जिसमें पुरुष और कहीं स्त्रियाँ भी खड़े होकर गोलाकार घूमते हुए
नाचते हैं गीत के बोलों के अनुसार क़दमों की ताल और गति बदलती जाती है.ढोलक ,मंजीरे ,हुड़का, दमुआ की थाप पर सभी बच्चे बूढ़े थिरकने
लगते हैं।
बैठकी या बैठी होली अधिकतर
शास्त्रीय राग रागिनियों पर आधारित होती है ये महफ़िलें अक्सर शाम से शुरू होती हैं
।हारमोनियम, तबला,ढोलक, बाँसुरी, मंजीरे की संगत के साथ गायन होता है, एक गायक गाता है और सभी मन्त्र मुग्ध होकर
सुनते हैं, या एक गायक के गीत की पंक्ति पूरी होते ही दूसरे गायक की गायकी शुरू होती है ।कई बार तो एक ही गीत कई घंटों तक चलता रहता है
और लोग तल्लीन होकर झूमने लगते हैं। कुछ ही गीतों में रात बीत जाती है ...
आयो नवल बसंत सखी ऋतुराज कहायो
और
कौन गली गए श्याम...जैसे गीत तो निरंतर
चलते रहते हैं।
गीतों का विषय और क्रम भी नियम से ही होता है .पहले सभी देवी देवताओं की स्तुति
वाले होली गीत फिर धीरे धीरे जोश और उमंग में शृंगार
रस पूर्ण....कृष्ण की रासलीला के गीत और हँसी ठिठोली
वाले गीत गाये जाते हैं. जिनमें देवर भाभी, जीजा साली और पति पत्नी की नोंक -झोंक प्रदर्शित होती है.विरहिणी नायिकाओं
के गीत भी गाए जाते हैं जो पक्षियों के माध्यम से प्रिय को सन्देश भेजती हैं....
ओहो मोहन गिरधारी
ऐसो अनारी चूनर गयो फारी
हँसी हँसी दे गयो गारी
चीर चुराय कदम्ब चढ़ी बैठो
और भिगो गयो सारी..
एकाकी नायिका तोते से कहती है की बागों में
बोलने से अच्छा ,वह पिया को सन्देश दे ....
हरा पंख मुख लाल सुआ
बोलिय झन बोले बागा में
कौन दिशा में बदल देखे कौन दिशा घनघोर
कहाँ सुखाऊँ पिया की पगारिया कहाँ सजाऊँ सेज.
होली के गीतों में कुमाऊँनी, ब्रजभाषा और
खड़ी बोली के गीत शामिल हैं ।
महिलाओं की होली बैठकें
अक्सर दिन में होती हैं ।नाच –गाना, हँसी-
मजाक, स्वांग आदि इसके विशेष अंग होते हैं; जहाँ महिलाएँ निःसंकोच होकर मस्ती भरी बातें कर लेती हैं और रोज की जिंदगी
के तनावों से मुक्त होकर ऊर्जा पाती हैं।
होली जहाँ एक और रंगों का
त्योहार है, वहीँ दूसरी और विशेष पकवानों का भी। इस अवसर पर गुजिया अवश्य बनाई
जाती है। सूजी का हलवा, आलू के गुटके (उत्तराखंड का विशेष व्यंजन ) पकौड़े व मिठाइयाँ, चाय,
पान-सुपारी आदि से सभी मेहमानों का स्वागत होता है। मस्ती के
आलम में ठंडाई, शरबत, पकौड़ों और
मिठाइयों में भाँग भी मिला दी जाती है, जिसे खाकर लोगों की हरकतें और हँसने- हँसाने का माध्यम बन जाते हैं।
फाल्गुन
पूर्णिमा की रात्रि को होलिका -दहन होता है। पहले दिन जो चीर बाँधी गई थी, उसीका दहन होता है।वहाँ भी हलवा आदि व्यंजन बनते हैं और हर घर में प्रसाद
के तौर पर बाँटा जाता है। अगले दिन ‘छरडी’ मनाई जाती है। होलियारों की टोलियाँ ढोल-मंजीरों के
साथ नाचती-गाती घर-घर में जाती है,जहाँ
रंगों से होली खेली जाती है,.खूब भीगा- भिगोया जाता है।
परम्परानुसार सबको जलपान कराया जाता है।
फिर आशीर्वचन किया
जाता है, जिसमें सभी देवी देवताओं, ग्राम
देवताओं, इष्ट देवताओं का स्मरण कर घर के प्रत्येक सदस्य
का नाम लेकर उसकी सुख समृद्धि, स्वास्थ्य और उज्ज्वल भविष्य
की शुभकामनाएँ दी जाती हैं यथा ....
हो हो होलक रे
बरस दिवाली बरसे फाग .हो हो
जो नर जीवे खेले फाग हो हो
आज का बसंत के का घरौ
फिर घर के सदस्य का नाम लेते हुए ....
आज का बसंत (अमुक)का घरौ..
सब परिवार जी वे लाखे बरी (बरस= वर्ष )
फिर प्रत्येक घर के लोगों को उनके अनुसार पास
होने, नौकरी पाने, शादी व्याह या वंश वृद्धि के आशीष दिए
जाते हैं और सभी घरों की ओर टोलियाँ जाती हैं। अपरिचित
लोगों से भी जान पहचान इस दिन हो जाती है। जिनसे किसी कारण अनबन हो गई हो,
उन्हें भी रंग लगा कर गले लगाया जाता है ‘भूल-चूक माफ़ होली मुबारक’ कहते हुए सभी से बिना भेद भाव
मिलजुल कर लोग दोपहर बाद ही अपने घर पहुँचते हैं और स्नान के बाद भोजन होता है।
इस तरह सारी बीती बाते भूल
नयी ऊर्जा से लोग फिर अपने काम में लग जाते हैं। बदलते समय का असर हमारे त्योहारों
पर भी पड़ा है, जहाँ एक ओर हम अपनी परंपरा से दूर हो रहे हैं ,नए पाश्चात्य त्योहारों की ओर अधिक आकर्षित हो रहे हैं।होली ऋतु आधारित
उत्सव है। सर्दी में जहाँ लोग घर में रहना पसंद करते हैं. बर्फ और शीत लहरों का
मुकाबला करना पड़ता है.बसंत आगमन के साथ प्रकृति का भी रूप निखर उठता है। धूप
गुनगुनी हो आती है, वृक्ष नव पल्लव धारण करते हैं। सरसों,
पलाश अन्य पुष्प भी रंगों की छटा बिखेर देते हैं पक्षी कलरव
करते हैं भँवरे गुंजन तितलियाँ नाचती हैं, तो ऐसे में मानव
मन शांत कैसे रह सकता है ? प्रकृति के उपहारों संग पर्व की
खुशियाँ मिलकर मनाएँ.
होली का रंग और उमंग भरा
त्योहार सभी को मुबारक.
Email- pant.jyotirmai@gmail.com
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