ये क्या हो गया
- विजय जोशी
कभी कभी सोचता हूँ
कि ये क्या हो गया
मेरा देश कहाँ खो गया.
वसंत आकर भी नहीं आता
पपीहा गीत नहीं गाता
और सावन
वह तो तरस गया झूलों को
नदिया के कूलों को
मौसम मिलावटी हो गया है
सूखे में बारिश
और बारिश में सूखा बो गया है
कभी कभी .........
आता तो है फागुन मास
पर खिलते नहीं पलास
स्कूल का बस्ता
बचपन निगल गया
होमवर्क के बोझ तले
बालक बिखर गया
पतंग उड़ाना
अब इतिहास हो गया
और पूरा देश
कौन बनेगा करोड़पति में खो गया
कभी कभी .........
पनघट और गौरी
माँ और लोरी
अंतहीन गुफा में खो गए
किट्टी पार्टी, ब्यूटी पार्लर
आधुनिकता हो गए
यौवन
खिजाब का मोहताज हो गया
और पूरा वतन
फैशन की भूलभूलौया में खो गया
कभी कभी .........
सम्पर्क: 8/सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास) भोपाल- 462023, मो. 09826042641, mail- v.joshi415@gmail.com
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