मंजीत कौर 'मीत'
नया नही है कुछ भी इस में
फिर क्यूँ कहते साल नया
सूरज तारे चाँद वही है
आकाश धरा पाताल वही है
चार दिशाएँ वो ही
और ऋतुएँ चार वही हैं
चार वर्ण और चार जातियाँ
चारों वेद वही हैं
वही समय का चलता चक्कर
और दिन-रात वही हैं
वही नदी पहाड़ और झरने
चारों धाम वही हैं
फल-फूल और गाछ वही
पशु- पंछी और
पात वही
बोलो इसमें क्या बात नई
बोलो इसमें क्या बात नई
वही सोच-विचार वही
आपस की तकरार वही
वही घरों में तू-तू मैं-मैं
वही हैं खींचातानी
वही झूठ का जाल है फैला
भ्र्ष्टाचार वही है
राम-रहीम के झगड़े वो ही
फैला आतंक के वही है
वही काम वश होकर करना
व्यभिचार वही है
गरीबी, बेकारी
और लाचारी
फैली वही हुई है
काम, क्रोध और
लोभ वही
अहंकार और मोह वही
बोलो इसमें क्या बात नई
बोलो इसमें क्या बात नई
नया साल तो तब है मानो
जो बदले यह संसार
मानव को मानव से जोड़े
और रखें सद् विचार
कुदरत से सीखें हम कुछ
देने की प्रवृत्ति
तभी तो सच्चे अर्थों में
होगी
नए साल की अभिव्यक्ति
नए साल की अभिव्यक्ति|
सम्पर्क: मकान # 60, सेक्टर 5, गुरुग्राम
, 9873443678,
Email-manjeetkr69@gmail.com
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