इस बार
लीक से हटकर
- डॉ. रत्ना वर्मा
गणतंत्र दिवस के अवसर पर, 1954 से आरंभ किए गए
विभिन्न पुरस्कारों जिसमें पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्मश्री शामिल है- देश भर से असाधारण और विशिष्ट कार्य करने वाले
व्यक्तियों को सम्मानित किया जाता है। इस
बार 75 लोगों को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। ये सभी पद्म पुरस्कार
पाने वाले हमारे देश का गौरव होते हैं। अपने- अपने क्षेत्र में एक मुकाम हासिल कर
वे देश की सेवा कर रहे होते हैं; जिनके कारण हमारा देश गौरवान्वित होता है। उनके
गौरव से हम देशवासी गौरव का अनुभव करते हैं और हमारा मस्तक गर्व से ऊँचा उठ जाता
है।
पिछले सालों की तुलना में इस साल के
ये पद्म पुरस्कार इसलिए उल्लेखनीय हैं; क्योंकि इस बार कुछ व्यक्तियों का चुनाव
लीक से हटकर किया गया है, जो सराहनीय है। अन्यथा सम्मान और
पुरस्कार हमेशा से ही विवादों के घेरे में रहा है। अब तक वही व्यक्ति यह सम्मान
पाते रहे हैं,
जो हमेशा चर्चा में रहते हैं या फिर
उनका काम सबको लगातार नज़र आता है या जिनका नाम पुरस्कार के लिए लॉबिंग करके भेजा
जाता है। बहुत लोग इसलिए असंतुष्ट होते हैं कि अमुख-अमुख ने क्या किया है; जो
उन्हें पद्म पुरस्कार मिल गया। फिर सिर्फ राजनीति और फिल्मों से जुड़े लोगों को ही यह पुरस्कार क्यों
? परंतु इस बार चयन -प्रक्रिया को ऑनलाइन करने के कारण 75 पद्मश्री पाने वालों में से कुछ ऐसे मनीषियों को भी सम्मानित किया
गया है; जो चुपचाप बरसों से अपना काम करते
चले जा रहे हैं। न समाचार पत्रों की सुर्खियाँ बनते हैं ,न मीडिया उन्हें हाथो-
हाथ लेता है, हाँ पद्मश्री मिलने
के बाद ज़रूर वे सब सुर्खियों में आ गए हैं, जिसके वे भागीदार भी हैं । हम सबको उनपर गर्व है। सबसे खास बात है इनमें से अधिकतर की उम्र 60 से लेकर 90 वर्ष तक की है-
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92 साल की भक्ति यादव गाइनकोलॉजिस्ट हैं।
लोग उन्हें डॉक्टर दादी के नाम से जानते हैं। वे इंदौर की पहली महिला हैं, जिन्हें एमबीबीएस की डिग्री मिली। डॉक्टर दादी पिछले 68 साल से (1948 से) अपने पेशेंट्स
का फ्री में इलाज कर रही हैं। अब डॉक्टर दादी को चलने-फिरने में तकलीफ़ होती है, लेकिन वे अंतिम साँस तक अपने मरीज़ों का इलाज करना चाहती हैं।
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केरल की रहने वाली मीनाक्षी अम्मा 76 साल की हैं। उन्हें भारत की सबसे उम्रदराज महिला तलवारबाज कहा जाता
है। वे भारतीय मार्शल आर्ट कलारीपयट्टू में एक्सपर्ट हैं। 7 साल की उम्र से उन्होंने मार्शल आर्ट्स की क्लास लेना शुरू कर
दिया था। वे 68 साल से ज्यादा समय से मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग दे रही हैं।
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68 साल के दरिपल्ली रमैया तेलंगाना के
रहने वाले हैं। रमैया ने 1 करोड़ पेड़ लगाए हैं। उन्हें वृक्ष-पुरुष
के नाम से जाना जाता है। उन्होंने भारत को हरा-भरा बनाने की ठानी है। रमैया घर से
निकलते वक्त बीज साथ लेकर चलते हैं और जहाँ भी उन्हें खाली ज़मीन दिखाई देती है, वो वहाँ प्लान्टेशन करते हैं।
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गुजरात के रहने वाले डॉ. सुब्रतो दास
को हाई-वे मसीहा के नाम से जाना जाता है। वे हाई-वे पर एक्सीडेंट में घायल होने
वालों को तुरंत मेडिकल सुविधा मुहैया कराते हैं। सुब्रतो दास एक बार खुद हादसे के
शिकार हुए तो अहसास हुआ कि हाइवे पर ऐक्सिडेंट होने पर घायलों को मिलने वाली
इमर्जेंसी सर्विस ठीक नहीं है। इसके बाद उन्होंने ‘लाइफ लाइन फाउंडेशन’ की शुरुआत
की, जिसका विस्तार अब महाराष्ट्र, केरल, राजस्थान और पश्चिम
बंगाल में 4000 किलोमीटर तक है। लाइफ लाइन फाउंडेशन की टीम्स हादसा होने पर 40 मिनट से कम वक्त में पहुँच जाती हैं। अब तक 1200 से ज्यादा घायलों को बचाया जा चुका है।
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59 साल के बिपिन गनात्रा वालन्टियर फायर
फाइटर हैं,
जो पिछले 40 साल से कोलकाता में आग लगने वाली हर जगह पर मौजूद रहते हैं और
लोगों को बचाने में मदद करते हैं। एक हादसे में अपने भाई को खोने के बाद बिपिन ने
ऐसे लोगों की मदद का बीड़ा उठाया, जो आग लगने जैसे हादसों में फँस जाते
हैं।
- तेलंगाना के रहने
वाले 44 साल के चिंताकिंदी मल्लेशम की माँ पोचमपल्ली सिल्क की साडिय़ाँ
बनाती थीं। मेहनत के चलते उन्हें बहुत दर्द होता था, मल्लेशम माँ की यह
तकलीफ़ देख नहीं पाते थे। माँ का कष्ट दूर करने के लिए उसने लक्ष्मी एएसयू मशीन
बनाई। जिससे पोचमपल्ली सिल्क की साडिय़ाँ बनाने वाले कारीगरों की मेहनत और काम में
लगने वाला वक्त काफी घट गया। आज पोचमपल्ली सिल्क से साडिय़ाँ बनाने वाले 60प्रतिशत कारीगर इसी मशीन से काम कर रहे हैं।
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पुणे के डॉक्टर मापुस्कर जिन्हें
स्वच्छता दूत के नाम से जाना जाता है ने पुणे के देहू गाँव में 1960 से ही सफाई अभियान पर जोर दिया। पूरे गाँव को खुले में शौच करने
से रोका और सफाई के लिए जागरूक किया। 2004 में पूरे गाँव में
शौचालय बना दिए गए।
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प. बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले में रहने
वाले करीमुल हक को एम्बुलेंस दादा के नाम से भी जाना जाता है। करीमुल हक ने अपने
गाँव धालाबाड़ी में 24 घंटे की एम्बुलेंस सेवा शुरू की। वे
गरीब मरीजों को अपनी बाइक पर लेकर हॉस्पिटल पहुँचाते हैं और कई बार वो उन्हें
फस्र्ट ऐड भी देते हैं।
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सैकड़ों महिलाओं को मानव तस्करी एवं
वेश्यावृत्ति के चंगुल से छुड़ाने वाली नेपाल की अनुराधा कोईराला प्रथम विदेशी
महिला हैं; जिन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया है। उन्होंने सन् 1993 में निर्लाभ संगठन ‘माइती नेपाल’ की स्थापना की है जो यौन तस्करी के शिकार लोगों की मदद करता है।
संगठन के अनुसार भारत एवं अरबी देशों में प्रत्येक वर्ष करीब 5,000 नेपाली लड़कियाँ एवं महिलाएँ वेश्यावृति के लिए मजबूर की जाती
हैं। जिसमें पहला स्थान भारत का है।
इसके अलावा देश के दूरदराज के इलाकों
में सौ से अधिक सस्ते और टिकाऊ पर्यावरण अनुकूल संस्पेशन ब्रिज बनाने वाले एवं ‘सेतु बंधु’ के नाम से मशहूर कर्नाटक के गिरीश
भारद्वाज, स्वच्छ भारत मिशन शुरू होने से 5 दशक पहले से ही
सफाई अभियान में लगे महाराष्ट्र के स्वच्छता दूत डॉ. मापूसकर, पंजाब में सीवर प्रणाली के विकास के
लिए फंड जुटाने और कार्यकर्ताओं को आंदोलित करने वाले इको बाबा बलबीर सिंह सीचेवाल, गुजरात के सूखा प्रभावित जिलों में अनार का सर्वाधिक उत्पादन करने
वाले दिव्यांग किसान अनार दादा जेनाभाई दर्गाभाई पटेल, निःशुल्क मूक्स प्रणाली के जरिए हारर्वड और एमिटी विश्वविद्यालयों
के पाठयक्रमों को विभिन्न भाषाओं में दुनिया भर में फैलाने वाले भारतीय मूल के
अमेरिकी अनंत अग्रवाल। इन सबके साथ पिछले छह दशकों से आदिवासी लोक संगीत को
लोकप्रिय बनाने वाली कर्नाटक की गायिका सुकरी बोम्मागौडा, ओडिशा के लोकप्रिय लोक गायक जितेन्द्र हरिपाल और बाल साहित्य तथा
स्त्री विमर्श साहित्य को समर्पित असम की 81 वर्षीय लेखिका इली
अहमद को भी पद्म पुरस्कार के लिए चुना गया है.
इन सबकी जिंदगी हमारे लिए जीती जागती
मिसाल हैं। अब समय आ गया है कि इससे भी उच्च सम्मानों की चयन-प्रक्रिया में भी
बदलाव किया जाए ताकि सम्मान के हकदार को ही सम्मान मिले। ताकि हम अपने आने वाली पीढ़ी को उनके विशिष्ठ
कामों की मिसाल दे सकें। इन सबकी जिंदगी
ऐसी प्रेरक हैं जो बच्चो की पाठ्य पुस्तकों में शामिल की जानी चाहिए।
उदंती के सुधी पाठकों को नव वर्ष की
शुभकामनाओं के साथ-
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