करता सदा विनाश
- डॉ.पूर्णिमा राय
आज सबसे बड़ी सामाजिक
समस्या मुँह खोले खड़ी है- युवाओं का नशे के चंगुल में फँसना। श्री गुरु नानक देव जी ने लिखा है-
भाँग
मछली सुरापान,जो -जो प्राणी
खाए।
धर्म- कर्म सब
किये ते,सभी रसातल जाए।।
नशे के सेवन से इंसान का यह
अनमोल जीवन समय से पहले ही मौत का शिकार हो जाता है।देश के कर्णधार 90 प्रतिशत युवा आज सबसे ज्यादा नशे के शिकार हैं। देश की
उन्नति में अपनी ऊर्जा
लगाने के स्थान पर वह अपनी अमूल्य शारीरिक और मानसिक सामर्थ्य चोरी, लूट-पाट और हत्या जैसे जघन्य अपराधों में व सामाजिक
कुरीतियों में नष्ट कर रहे है। जब से बाजार में गुटका पाउच का प्रचलन हुआ है, तबसे नशे की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। आज बच्चे से लेकर
बुज़ुर्ग भी
गुटका पाउच की चपेट में है।
घर -गृहस्थी सँभालने वाली नारी भी अब इससे दुष्कर्म से अछूती नहीं रही। यह
अत्यंत दु:खद है कि नशा करने वाला हर व्यक्ति जानता है कि नशे की आदत
उसके लिए नुकसानदेह है, बावजूद इसके इस प्रवृत्ति में लगातार बढ़ोतरी देखी जा सकती
है।
यह ठीक है कि जहाँ तकनीकी
विकास हुआ है, वहीं नशे
के सेवन में भी नये ढंग, उपाय
अस्तित्व में आए हैं। एक
समय था जब युवा वर्ग शराब और हेरोइन जैसे मादक पदार्थो का नशा ही करता था; लेकिन अब वह कुछ दवाओं का इस्तेमाल नशे के रूप
में करने लगा है। वह इन घटिया व सस्ती दवाओं को आसानी से प्राप्त कर लेता है ; क्योंकि
धन पाना व सुविधाओं को हासिल करना आज हर व्यक्ति के जीवन का लक्ष्य बन गया है।
मादक पदार्थों का सेवन उसे विनाश के मार्ग की ओर ले जा रहा हैं। वह अपने स्वयं का, परिवार का, समाज
का, देश व राष्ट्र को विनाश के
गर्त में धकेल रहा है...
नशा पाप का मूल है, करता सदा विनाश
शून्य जीवन जी रहे, खेलें दिन-भर ताश।
विवेकहीनता से सरोबार युवा
पथभ्रष्ट होकर दिशा की तलाश में भटकता है पर अफसोस सर्वत्र घृणा के उसे कुछ हासिल
नहीं होता। व्यसनी युवा का यही ध्येय होता है कि वह उचित -अनुचित
साधनों से अपने नशे की प्राप्ति के लिए धन एकत्र करे। धन की बर्बादी के साथ साथ वह अपना स्वास्थ्य
भी खो देता है।
गुटका, बीड़ी, पान
से, कौन हुआ आबाद?
खाकर मुख छाले पड़े, सेहत हो बर्बाद।।
महात्मा बुद्ध ने कहा है-
शराब से भयभीत रहना,क्योंकि
यह पाप और अत्याचार की जननी है।
मनु ने मनुस्मृति में मदिरा
को महापातक बताया है। कौरव व पाण्डव मद्य के कारण ही जुए के अभ्यस्त हुए तथा राष्ट्रीय कर्तव्य को भूल गए।
नशा बुद्धि का लोप कर देता
है। यथा-
बुद्धिं लुम्पति यद् द्रव्यं मदकारी
तदुच्युते।
रक्त में जैसे जैसे शराब की
मात्रा का स्तर बढ़ता जाता है वैसे- वैसे मादक द्रव्य का असर अधिक होता जाता है-
मन की परिवर्तन तर्क शक्ति कम हो जाती है, निर्णय -क्षमता का हनन होना व नशे में प्रतिक्रिया करना, नियंत्रण के स्तर में
गिरावट आना, संतुलन
बिगड़ जाना, विचारों
के तालमेल और समन्वय में कठिनाई खड़ी होना, इधर- उधर झूमने लगना, संवेदना में कमी, अनिश्चित भावनाओं का विकास, सचेत ना रहना, अर्ध चेतना , शून्य हो जाना तथा
फिर अन्त में मृत्यु का ग्रास बन
जाते हैं। मादक पदार्थो की अधिकता कैंसर जैसे रोगों को जन्म देती है। वह केंद्रीय
तंत्रिका तंत्र की प्रतिक्रियाओं को धीमा कर देता है। नशे के दौरान मूर्च्छित होना
संभावित है। एक व्यक्ति का रक्तचाप, नाड़ी, संचार
और नर्वस सिस्टम के रूप में और श्वसन में कमी आ जाती है। बीमारी से लडऩे की क्षमता
कमजोर पड़ जाती है तथा रक्त में पोषक पदार्थों की कमी हो जाती है।
निम्न पंक्तियाँ ऐसे मानव
की दशा का चित्रण करती हैं-
मुरझाए मुखड़े दिखे, लगता कैंसर रोग।
सूखी टहनी तन दिखे,दर-दर भटकें लोग।।
इस बुराई के सबसे बड़े जिम्मेदार हम, आप, अभिभावक, पारिवारिक माहौल, सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था है। आज की चकाचौंध भरी
जिंदगी में, आधुनिकता
की दौड़ में लोग स्वार्थी हो गए। उनकी सोच मैं तक सीमित हो गई है। एकल परिवार, टूटते रिश्ते, वैयक्तिक स्वार्थ जहाँ नशे की ओर अग्रसर करने वाले बीज हैं; वहीं मानवीय इच्छा, धन की भूख, सामाजिक
व राजनीतिक व्यवस्था तथा मुँह खोलती दिन प्रतिदिन बढ़ रही समस्या- बेरोजगारी, महँगाई, जनसंख्या
वृद्धि आदि नशे के बीज को पनपने व विकसित करने में अहम् योगदान दे रहे हैं।
राज्य शासन द्वारा विगत छह जून को नशामुक्ति
महारैली का आयोजन किया गया था, जिसमें
प्रदेश के 18 जिले के 146 विकासखंड और उससे सम्बन्धित गाँवों के जनप्रतिनिधियों ने भाग लिया, वहीं शैक्षिक संस्थाएँ, महिला स्व-सहायता समूह और जनसामान्य ने बड़ी संख्या में
सम्मिलित होकर इसे सफल बनाया था। शासन के सहयोग से स्वैच्छिक संस्थाओं द्वारा
राजधानी रायपुर में संकल्प व्यसन मुक्ति केंद्र तथा माँ डिंडेश्वरी नशा मुक्ति
केंद्र बिलासपुर के नज़दीक सिरगिट्टी में संचालित है जो नि:शुल्क लोगों का उपचार
करते हैं। अब तो हरेक राज्य में नशा
मुक्ति केन्द्र सक्रिय भूमिका निभा रहें हैं। नशा निवारणी सभाएँ स्थापित की गई
हैं। जो अपने स्तर पर लोगों में नशे के विरूद्ध चेतना पैदा करती हैं। गुजरात जैसे
प्रान्त से प्रेरणा लेनी चाहिए वह नशा मुक्ति में सबसे आगे है। कहते है मानव वही कार्य
बार-बार करता है जो वर्जित हो,जो
अनुचित हो। इसलिए ऐसे
विज्ञापनों पर पाबन्दी हो जो नशे को बढ़ावा देते हो। नशे की रोकथाम में किए जाने वाले प्रयासों को मीडिया, समाचारों, रेडियो
पर बताया जाना चाहिए; ताकि सकारात्मक झुकाव एवं नजरिया बन सके। यह ठीक है कि हर
साल विश्व स्तर पर नशा मुक्ति दिवस 26जून को मनाया जाता है व नशे के दुष्प्रभाव से अवगत करवाकर
जागृति पैदा की जाती है। जब तक आत्म-नियन्त्रण नहीं होता, जब तक युवा मन की शक्ति को एक सही दिशा नहीं मिलती तब तक सब
प्रयत्न निष्फल हैं ।
अन्त में यही कहूँगी-
नशा पाश इससे बचें, खुशियाँ हों दिन-रैन।।
कलह-क्लेश सब ही मिटे, घर
में हो सुख-चैन।
सिर्फ़ एक ही
कामना, नशा मुक्त संसार।
पढ़े-लिखें बच्चे सभी, मिट जाए अँधियार।।
सम्पर्क: ग्रीन ऐवनियू घुमान रोड, तहसील बाबा बकाला,
मेहता चौंक 143114, अमृतसर- (पंजाब), 7087775713,Email-drpurnima01.dpr@gmail.com
3 comments:
बहुत ही खूब लेखन पूर्णिमा जी
बहुत बढ़िया सार्थक आलेख
वर्तमान समस्या पर बहुत उपयोगी जानकारी
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