मासिक पत्रिका वर्ष2, अंक 4, दिसम्बर 2011
हताश न होना ही सफलता का मूल है, और यही परम सुख है।
- वाल्मीकि
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अनकही: बढ़ती जनसंख्या के खतरे - डॉ. रत्ना वर्मा- वाल्मीकि
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नई दिल्ली के सौ साल: किलों और महलों का शहर - एम गोपालाकृष्णन
देसी और विदेशी संस्कृति का संगम- नौरिस प्रीतम
प्रेरक कथा: पत्थर सींचना
पर्यावरण: कुछ यूं कि आधा किलो डब्बे ....
मुद्दा: ऑनलाइन जुबान पर ताला -लोकेन्द्र सिंह राजपूत
श्रद्धांजलि: 20वीं सदी का सदाबहार नायक - विनोद साव
देव साहब और उनकी नायिकाएँ...
मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया...- कृष्ण कुमार यादव
सेहत: पालक का हाथ और पोई का दिल... - डॉ. किशोर पंवार
हाइकु: मेरे कृष्ण मुरारी - डॉ. जेन्नी शबनम -खेलों में उपयोगी हो सकता है लाल रंग
जीव- जंतु: गैंडों को मिलेगा नया घर लेकिन.... - देवेन्द्र प्रकाश मिश्र
वाह भई वाह
कहानी: विसर्जन - डॉ. परदेशीराम वर्मा
व्यंग्य: एक अलमारी सौ चिंतन - प्रमोद ताम्बट
लघुकथाएं - आलोक कुमार सातपुते
ग़ज़ल: दर्द आंसू में ..., नींद की मेजबानी - जहीर कुरेशी
पिछले दिनों
स्मरणः भला ऐसे भी कोई जाता है - डॉ दुष्यंत
श्रद्धांजलिः सारंगी के उस्ताद सुल्तान खान
दुनिया के सात नए आश्चर्य
2 comments:
डॉ जेन्नी शबनम के ताँका बहुत प्रभावशाली है। एक ही विषय पर केन्द्रित करके तांका लिखना कठिन है पर जेन्नी जी इन तांका में मता सिद्ध कर चुकी हैं। बढ़ती जनसंख्या के खतरे :डॉ रत्नावर्मा का लेख समसामयिक चिन्ता को उजागर करता है। पत्थर सींचना -जैसे प्रसंग हारे हुए व्यक्ति को भी ताकत देने वाले हैं । कृपया एक कॉलम इस प्रकार की कथाओं का बनाए रखिएगा । ज़हीर कुरैशी की ग़ज़ल , विनोद साव का लेख सभी रचनाएं महत्त्वपूर्ण हैं। उदन्ती प्रिन्ट मीडिया में भी एक ऐसी पत्रिका है , जिसे हिन्दी के सार्थक लेखन का उदाहरण कहा जा सकता है।
वेबसाईट पर आपकी पत्रिका पढकर बहुत बहुत खुशी हुई | बहुत अच्छा प्रयास है |मेरी शुभकामनाये |
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