- डॉ. किशोर पँवार
यदि आपसे कोई पूछे की पालक क्यों खाते हैं, तो शायद आपका जवाब यही होगा कि पालक में आयरन बहुत होता है। इसे खाने से खून बढ़ता है। मैंने तो यह भी देखा है कि पालक खाने वाले इसे लोहे की कड़ाही में बनाते हैं और तब तक पकाते हैं जब तक कड़ाही का लोहा पालक को और काला न कर दे। मेरे मामाजी ऐसे ही लोगों में से हैं। सवाल यह भी है कि कड़ाही से उतरा लोहा हमारे शरीर में कितना अवशोषित होता है और क्या वाकई फायदेमंद है? रासायनिक रूप से यह क्या है? शायद कोई भस्म बनती हो।
पालक खाने से ताकत भी मिलती है- 'पोपाई दी सेलर' को देखें तो यही लगता है कि इधर पालक का रस पिया और बन गए सुपरमैन। यदि पालक खाने से वाकई एकदम इतनी ताकत आती है तो फिर ग्लूकोज क्यों पिया जाए? कहीं तो कुछ गड़बड़ है। पालक में या ग्लूकोज में। सोचने वाली बात तो यह भी है कि आखिर ये ताकत किस बला का नाम है। विज्ञान की भाषा में बोलें तो ताकत यानी ऊर्जा। हम जो खाना खाते हैं उससे शरीर के दैनिक क्रियाकलापों के लिए ऊर्जा मिलती है।
कहते हैं कि ताकत तो दालों में ज्यादा होती है। वह भी उड़द की दाल में और ज्यादा। यह भी सुना है कि चिकनी चीजों में ताकत ज्यादा होती है जैसे गोंद, अरबी और भिण्डी आदि। पर इनमें तो म्यूसिलेज (चिकना पदार्थ) होता है जो एक प्रकार का कार्बोहाइड्रेट ही है। पोषण वैज्ञानिकों के अनुसार सबसे ज्यादा ताकत वसा खाने से मिलती है। उसके बाद प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट का नंबर आता है। यदि बराबर मात्रा ली जाए, तो कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन की अपेक्षा वसा में दो गुना ऊर्जा होती है।
चुस्त और दुरुस्त रहने के लिए डॉक्टर समुचित मात्रा में सब्जियों और मौसमी फल खाने की सलाह देते हैं। इनसे हमें खनिज लवण, विटामिन्स और एंटीऑक्सीडेन्ट्स मिलते हैं। ऊर्जा के हिसाब से भारतीय पोषण संस्थान हैदराबाद द्वारा प्रकाशित 'न्यूट्रीटिव वैल्यू ऑफ इंडियन फूड' में ऊर्जा, प्रोटीन, वसा और कार्बोहाइड्रेट के आधार पर खाद्य पदार्थों के पांच समूह बनाए गए है। पहला अनाज, दूसरा दाल एवं फलियां तीसरा दूध एवं मांस, चौथा फल एवं सब्जियां और पांचवां वसा एवं शर्करा। इनमें चार के सामने तो ऊर्जा लिखा है। परन्तु फल एवं सब्जियों को ऊर्जा का स्रोत नहीं माना गया है। ये विटामिन, कैल्शियम, केरोटीनॉइड्स, लौह एवं रेशे के स्रोत हैं।
तो फिर ताकत के विचार से पालक कहां है। कहीं यह भ्रम तो नहीं है हमारा। पालक में खूब सारे विटामिन्स, खनिज लवण, एंटीऑक्साडेन्टस और रेशा पदार्थ तो हैं पर शायद ताकत नहीं। और लोहा कितना? चलिए, यह पता लगाने के पहले थोड़ी पालक की जानकारी ले लें कि यह क्या है और इसका पता ठिकाना क्या है?
पालक राजगिरा कुल का एक वार्षिक शाकीय पौधा है जिसकी हाथ के आकार की पत्तियां सब्जी बनाने में काम आती है। इसकी उत्पत्ति प्राचीन पर्शिया (जिसे अब ईरान कहा जाता है) के आसपास हुई है। अरब व्यापारी इसे अपने साथ भारत ले आए। और यहां से यह नेपाल होते हुए चीन चला गया। जहां इसे ईरानी साग के नाम से जाना जाता है। संभवत: यह 647 ईस्वीं के आसपास नेपाल के रास्ते चीन पहुंचा। प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक इवन-अल-अवाम ने उसे हरी पत्तियों का सरदार कहा। तेरहवीं सदी में यह जर्मनी तक पहुंच चुका था। विश्व युद्ध में घायल फ्रेंच योद्धाओं, जो अत्यधिक रक्तस्त्राव के चलते कमजोर हो जाते थे, को पालक का रस मिली शराब परोसी जाती थी। पालक एन्टीऑक्सीडेन्टस, विटामिन ए, बी- 2, बी- 6, बी- 9, सी, ई और के का अच्छा स्रोत है। इसमें मैग्नीशियम, मेंगनीज, कैल्शियम, पोटेशियम और जिंक जैसे खनिज पदार्थ भी खूब मिलते हैं।
हाल ही में इसमेें रुबीस्कोलिन का भी पता चला है। परन्तु जब उसके लौह तत्व का मात्रात्मक विश्लेषण किया गया तो पता चला कि पालक में उतना लोहा नहीं है जितना एक समय माना जाता था। इस दिशा में हुई जांच पड़ताल बताती है कि पालक में लौह तत्व की मात्रा अन्य सब्जियों की तुलना में कोई अधिक नहीं है। लौह तत्व के हिसाब से पालक हमारी कई सब्जियों से उन्नीस तो क्या, सत्रह-अठारह भी नहीं है। बताते हैं कि पालक में प्रति 100 ग्राम केवल 1.7 से 2.7 मिलीग्राम लौह ही है। जबकि पहले यह मात्रा लगभग 35 मिलीग्राम मानी गई थी। पालक से ज्यादा लौह तो प्याज में है- 10 मिलीग्राम/ 100 ग्राम।
पालक की बात चली तो मुझे एक और पत्तेदार भाजी की याद आई। हालांकि इसे हम केवल बरसात के दिनों में पानी गिरने पर भजिए बनाने के लिए ही याद करते हैं। आप लोगों में से कई ने पालक के भजिए के साथ पोई के भजिए भी खाए होंगे। यह एक बेल है जो सदाबहार और बहुवर्षीय है। इसे कई नामों से जाना जाता है जैसे मलाबार स्पीनेच, रेड वाइन स्पीनेच, क्लाइंबिंग स्पीनेच और पोई भाजी। वनस्पति शास्त्री इसे बेसेला एल्बा कहना पसंद करते हैं। जबकि ईरानी पालक का वानस्पतिक नाम स्पिनेसिया ओलीरेसिया है। जहां पालक एमरेंथेसी कुल का सदस्य है, वहीं पोई को बेसेलेसी कुल में शामिल किया गया है। पोई की दो किस्में हमारे आसपास मिलती हैं एक हरी और दूसरी लाल। लाल किस्म की टहनियां लाल होती हैं और पत्तियों का निचला हिस्सा भी हल्का जामुनी, लाल होता है। ऐसा इसमें पाए जाने वाले एन्टीऑक्सीडेन्ट पदार्थ एंथोसायनीन के कारण होता है। इसका एक नाम देसी पालक (इंडियन स्पीनेच) भी है। जो पालक हम अधिकतर बाजार से खरीदकर खाते हैं वह तो पर्सियन साग यानी ईरानी पालक है। यह देश के सभी प्रांतों में घर आंगन के बगीचे में बोई जाती है या फिर आसपास अपने आप भी उग जाती है। इसका फैलाव चिडिय़ा, बुलबुलों की मदद से होता है जो इसके पके जामुनी फल खाते हैं और बीजों को यहां- वहां बिखेरते हैं। मैंने सोचा चलो आज खनिज तत्वों, विशेषकर लौह तत्व को लेकर जरा देसी- विदेशी पालकों की तुलना करें। इसके परिणाम से मुझे तो आश्चर्य हुआ ही और आपको भी होगा। क्योंकि इस मामले में यह देसी पालक जिसके पत्ते दिल के आकार के हैं, हाथ के आकार के पत्तों वाले पालक से कहीं बेहतर है।
पालक में प्रति 100 ग्राम लौह तत्व 1.7 से 2.7 मिलीग्राम और पोई में 10 मिलीग्राम है। यही हाल फॉस्फोरस के भी हैं - 100-100 ग्राम पालक और पोई में क्रमश: 21 में 35 मिलीग्राम फॉस्फोरस है। पोई में विटामिन सी भी लगभग तीन गुना ज्यादा है। सवाल यह भी है कि जो कुछ मात्रा पालक में लौह तत्व की है वह हमारे शरीर को लगता कितना है। पता चला कि पालक में जो कुछ भी लौह है वह शरीर में बहुत कम (लगभग 10 प्रतिशत) ही अवशोषित होता है यानि 100 ग्राम पालक के लौह का 0.25 मिलीग्राम ही अवशोषित होता है। यह भी पता चलता है कि पालक में जो अधिक मात्रा में ऑक्जलेट है वह भी लौह अवशोषण की राह में रोड़ा है। यह ऑक्जलेट आयरन को फेरस ऑक्जलेट में बदल देता है जो शरीर के किसी काम का नहीं। वैसे कुछ अध्ययन कहते हैं कि भोजन में ऑक्जेलिक अम्ल का उपयोग करने से लौह का अवशोषण बढ़ता है। यदि यह सच है कि विटामिन सी लौह तत्व के अवशोषण को बढ़ाता है तो इस लिहाज से भी पोई पालक से कहीं ज्यादा बेहतर है। क्योंकि इसमें लौह और विटामिन सी दोनों अधिक मात्रा में है।
कहना यह है कि पालक को लोहे की आशा में नहीं बल्कि खनिज लवण, विटामिन्स एवं केरोटिनॉइड्स के लिए खाइए और पोई भी खाइए। पालक का हाथ और पोई का दिल दोनों मिलें तो फिर क्या मुश्किल। (स्रोत फीचर्स)
आप लोगों में से कई ने पालक के भजिए के साथ पोई के भजिए भी खाए होंगे। यह एक बेल है जो सदाबहार और बहुवर्षीय है। इसे कई नामों से जाना जाता है जैसे मलाबार स्पीनेच, रेड वाइन स्पीनेच, क्लाइंबिंग स्पीनेच और पोई भाजी।
पालक खाने से ताकत भी मिलती है- 'पोपाई दी सेलर' को देखें तो यही लगता है कि इधर पालक का रस पिया और बन गए सुपरमैन। यदि पालक खाने से वाकई एकदम इतनी ताकत आती है तो फिर ग्लूकोज क्यों पिया जाए? कहीं तो कुछ गड़बड़ है। पालक में या ग्लूकोज में। सोचने वाली बात तो यह भी है कि आखिर ये ताकत किस बला का नाम है। विज्ञान की भाषा में बोलें तो ताकत यानी ऊर्जा। हम जो खाना खाते हैं उससे शरीर के दैनिक क्रियाकलापों के लिए ऊर्जा मिलती है।
कहते हैं कि ताकत तो दालों में ज्यादा होती है। वह भी उड़द की दाल में और ज्यादा। यह भी सुना है कि चिकनी चीजों में ताकत ज्यादा होती है जैसे गोंद, अरबी और भिण्डी आदि। पर इनमें तो म्यूसिलेज (चिकना पदार्थ) होता है जो एक प्रकार का कार्बोहाइड्रेट ही है। पोषण वैज्ञानिकों के अनुसार सबसे ज्यादा ताकत वसा खाने से मिलती है। उसके बाद प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट का नंबर आता है। यदि बराबर मात्रा ली जाए, तो कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन की अपेक्षा वसा में दो गुना ऊर्जा होती है।
चुस्त और दुरुस्त रहने के लिए डॉक्टर समुचित मात्रा में सब्जियों और मौसमी फल खाने की सलाह देते हैं। इनसे हमें खनिज लवण, विटामिन्स और एंटीऑक्सीडेन्ट्स मिलते हैं। ऊर्जा के हिसाब से भारतीय पोषण संस्थान हैदराबाद द्वारा प्रकाशित 'न्यूट्रीटिव वैल्यू ऑफ इंडियन फूड' में ऊर्जा, प्रोटीन, वसा और कार्बोहाइड्रेट के आधार पर खाद्य पदार्थों के पांच समूह बनाए गए है। पहला अनाज, दूसरा दाल एवं फलियां तीसरा दूध एवं मांस, चौथा फल एवं सब्जियां और पांचवां वसा एवं शर्करा। इनमें चार के सामने तो ऊर्जा लिखा है। परन्तु फल एवं सब्जियों को ऊर्जा का स्रोत नहीं माना गया है। ये विटामिन, कैल्शियम, केरोटीनॉइड्स, लौह एवं रेशे के स्रोत हैं।
तो फिर ताकत के विचार से पालक कहां है। कहीं यह भ्रम तो नहीं है हमारा। पालक में खूब सारे विटामिन्स, खनिज लवण, एंटीऑक्साडेन्टस और रेशा पदार्थ तो हैं पर शायद ताकत नहीं। और लोहा कितना? चलिए, यह पता लगाने के पहले थोड़ी पालक की जानकारी ले लें कि यह क्या है और इसका पता ठिकाना क्या है?
पालक राजगिरा कुल का एक वार्षिक शाकीय पौधा है जिसकी हाथ के आकार की पत्तियां सब्जी बनाने में काम आती है। इसकी उत्पत्ति प्राचीन पर्शिया (जिसे अब ईरान कहा जाता है) के आसपास हुई है। अरब व्यापारी इसे अपने साथ भारत ले आए। और यहां से यह नेपाल होते हुए चीन चला गया। जहां इसे ईरानी साग के नाम से जाना जाता है। संभवत: यह 647 ईस्वीं के आसपास नेपाल के रास्ते चीन पहुंचा। प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक इवन-अल-अवाम ने उसे हरी पत्तियों का सरदार कहा। तेरहवीं सदी में यह जर्मनी तक पहुंच चुका था। विश्व युद्ध में घायल फ्रेंच योद्धाओं, जो अत्यधिक रक्तस्त्राव के चलते कमजोर हो जाते थे, को पालक का रस मिली शराब परोसी जाती थी। पालक एन्टीऑक्सीडेन्टस, विटामिन ए, बी- 2, बी- 6, बी- 9, सी, ई और के का अच्छा स्रोत है। इसमें मैग्नीशियम, मेंगनीज, कैल्शियम, पोटेशियम और जिंक जैसे खनिज पदार्थ भी खूब मिलते हैं।
हाल ही में इसमेें रुबीस्कोलिन का भी पता चला है। परन्तु जब उसके लौह तत्व का मात्रात्मक विश्लेषण किया गया तो पता चला कि पालक में उतना लोहा नहीं है जितना एक समय माना जाता था। इस दिशा में हुई जांच पड़ताल बताती है कि पालक में लौह तत्व की मात्रा अन्य सब्जियों की तुलना में कोई अधिक नहीं है। लौह तत्व के हिसाब से पालक हमारी कई सब्जियों से उन्नीस तो क्या, सत्रह-अठारह भी नहीं है। बताते हैं कि पालक में प्रति 100 ग्राम केवल 1.7 से 2.7 मिलीग्राम लौह ही है। जबकि पहले यह मात्रा लगभग 35 मिलीग्राम मानी गई थी। पालक से ज्यादा लौह तो प्याज में है- 10 मिलीग्राम/ 100 ग्राम।
पालक की बात चली तो मुझे एक और पत्तेदार भाजी की याद आई। हालांकि इसे हम केवल बरसात के दिनों में पानी गिरने पर भजिए बनाने के लिए ही याद करते हैं। आप लोगों में से कई ने पालक के भजिए के साथ पोई के भजिए भी खाए होंगे। यह एक बेल है जो सदाबहार और बहुवर्षीय है। इसे कई नामों से जाना जाता है जैसे मलाबार स्पीनेच, रेड वाइन स्पीनेच, क्लाइंबिंग स्पीनेच और पोई भाजी। वनस्पति शास्त्री इसे बेसेला एल्बा कहना पसंद करते हैं। जबकि ईरानी पालक का वानस्पतिक नाम स्पिनेसिया ओलीरेसिया है। जहां पालक एमरेंथेसी कुल का सदस्य है, वहीं पोई को बेसेलेसी कुल में शामिल किया गया है। पोई की दो किस्में हमारे आसपास मिलती हैं एक हरी और दूसरी लाल। लाल किस्म की टहनियां लाल होती हैं और पत्तियों का निचला हिस्सा भी हल्का जामुनी, लाल होता है। ऐसा इसमें पाए जाने वाले एन्टीऑक्सीडेन्ट पदार्थ एंथोसायनीन के कारण होता है। इसका एक नाम देसी पालक (इंडियन स्पीनेच) भी है। जो पालक हम अधिकतर बाजार से खरीदकर खाते हैं वह तो पर्सियन साग यानी ईरानी पालक है। यह देश के सभी प्रांतों में घर आंगन के बगीचे में बोई जाती है या फिर आसपास अपने आप भी उग जाती है। इसका फैलाव चिडिय़ा, बुलबुलों की मदद से होता है जो इसके पके जामुनी फल खाते हैं और बीजों को यहां- वहां बिखेरते हैं। मैंने सोचा चलो आज खनिज तत्वों, विशेषकर लौह तत्व को लेकर जरा देसी- विदेशी पालकों की तुलना करें। इसके परिणाम से मुझे तो आश्चर्य हुआ ही और आपको भी होगा। क्योंकि इस मामले में यह देसी पालक जिसके पत्ते दिल के आकार के हैं, हाथ के आकार के पत्तों वाले पालक से कहीं बेहतर है।
पोई की दो किस्में हमारे आसपास मिलती हैं एक हरी और दूसरी लाल। लाल किस्म की टहनियां लाल होती हैं और पत्तियों का निचला हिस्सा भी हल्का जामुनी, लाल होता है। ऐसा इसमें पाए जाने वाले एन्टीऑक्सीडेन्ट पदार्थ एंथोसायनीन के कारण होता है।
कहना यह है कि पालक को लोहे की आशा में नहीं बल्कि खनिज लवण, विटामिन्स एवं केरोटिनॉइड्स के लिए खाइए और पोई भी खाइए। पालक का हाथ और पोई का दिल दोनों मिलें तो फिर क्या मुश्किल। (स्रोत फीचर्स)
No comments:
Post a Comment