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Dec 28, 2011

ऑनलाइन जुबान पर ताला

- लोकेन्द्र सिंह राजपूत

आईटी एक्ट में कुछ ऐसे नियम जोड़ दिए हैं, जिनके बाद देश में इलेक्ट्रोनिक, मोबाइल और इंटरनेट समेत संचार साधनों पर सरकारी निगरानी हद से ज्यादा बढ़ गई है। यानी सरकार ने तो इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले करीब 10 करोड़ हिन्दुस्तानियों की ऑनलाइन जुबान पर पहले ही ताला लगाने की व्यवस्था कर ली थी।
केन्द्रीय संचार एवं सूचना मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा है कि सरकार इंटरनेट और सोशल वेबसाइट्स पर प्रकाशित होने वाली आपत्तिजनक सामग्री को नियंत्रित करने के लिए जरूरी दिशा- निर्देश तैयार करेगी। मंत्री महोदय या तो चालकी से झूठ बोल गए या फिर बोलने की आजादी पर लगाम लगाने की उनकी मंशा अभी पूरी नहीं हो सकी है। वे हिन्दुस्तानियों को पूरी तरह गूंगा करना चाहते हैं। दरअसल, 11 अप्रैल 2011 को भारत सरकार के सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने गुपचुप तरीके से सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधित) कानून- 2008 में कांग्रेस की मंशानुरूप फेरबदल कर दिए हैं। विभाग ने आईटी एक्ट में कुछ ऐसे नियम जोड़ दिए हैं, जिनके बाद देश में इलेक्ट्रोनिक, मोबाइल और इंटरनेट समेत संचार साधनों पर सरकारी निगरानी हद से ज्यादा बढ़ गई है। यानी सरकार ने तो इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले करीब 10 करोड़ हिन्दुस्तानियों की ऑनलाइन जुबान पर पहले ही ताला लगाने की व्यवस्था कर ली थी। सिब्बल साहब अब बता रहे हैं या कह सकते हैं वे ऑनलाइन अभिव्यक्ति की आजादी पर और मजबूत ताला लगाना चाहते हैं क्योंकि गूगल, फेसबुक और अन्य वेबसाइट्स ने सरकार के आदेश को पूरी तरह मामने से इनकार कर दिया है। वेबसाइट्स ने कहा कि सिर्फ विवादित होने पर वे किसी भी सामग्री को नहीं हटाएंगे। हालांकि आईटी एक्ट (संशोधित)-2008 के नए नियम 43-ए और 79 के मुताबिक सरकार किसी भी कंपनी के पास एकत्रित किसी भी व्यक्ति का डाटा हासिल कर सकती है। इसके लिए उसे किसी से इजाजत लेने की जरूरत नहीं होगी। साथ ही सरकार कथित आपत्तिजनक सामग्री प्रसारित करने पर किसी भी वेबसाइट, होस्ट वेबसाइट, सर्च इंजन और सोशल साइट को ब्लॉक कर सकती है। यह दीगर बात है कि अब तक गूगल और अन्य सोशल नेटवर्किंग साइट ने सरकार के निर्देशों का सौ फीसदी पालन नहीं किया।
अब तक आप अपने ब्लॉग, फेसबुक पेज, वेबसाइट या अन्य सोशल साइट पर तर्कों और सबूतों के आधार पर सरकार की नीतियों की आलोचना कर सकते थे। सरकार के खिलाफ आंदोलन को समर्थन दे सकते थे। भ्रष्ट मंत्रियों या अफसरों के खिलाफ लिख सकते थे। मंत्रियों- नेताओं के भड़काऊ बयानों के खिलाफ प्रतिक्रिया जाहिर कर सकते थे। लेकिन, अब यह उतना आसान नहीं रहेगा। खासकर 'सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा निवारण अधिनियम-2011Ó तैयार करने वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद और कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और इस्लाम की गलत नीतियों का विरोध नहीं किया जा सकता। मंत्री कपिल सिब्बल ने सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह और पैगंबर के खिलाफ इंटरनेट परप्रसारित सामग्री को ही आपत्तिजनक माना है। इसीलिए सरकार ने गूगल, फेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट और याहू के अधिकारियों से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पैगंबर से जुड़ी कथित अपमानजनक सामग्री को हटाने को कहा था। बाकि किसी के बारे में कोई कुछ भी लिखे- छापे वह आपत्तिजनक नहीं। कांग्रेस के नेता- कार्यकर्ता हिन्दुत्व को गरियाएं, आतंकवादियों को 'आप' और 'जी' लगाकर संबोधित करें। मैडम सोनिया गांधी गुजरात के मुख्यमंत्री को 'मौत का सौदागर' कहे। कथित कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तुलना आतंकवादी संगठन सिमीÓ से करें। नई-नई राजनीति सीखे कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी समाजसेवी अन्ना हजारे के चरित्र पर कीचड़ उछाले। यह सब आपत्तिजनक नहीं है। मंत्री महोदय ने हिन्दुओं के खिलाफ प्रसारित सामग्री और हिन्दुओं के देवी- देवताओं के अभद्र चित्रों को भी आपत्तिजनक सामग्री नहीं माना है। ठीक वही मामला है मकबूल फिदा हुसैन हिन्दू देवताओं के नग्न चित्र बनाए तो यह अभिव्यक्ति की आजादी है। कलाकार की मौलिकता है। वहीं पैगंबर का कार्टून बनाने पर भी बावेला मचा दिया जाता है। रामायण के पात्रों के बारे में ऊल- जलूल विश्वविद्यालय में पढ़ाने पर भी कोई हल्ला नहीं। हल्ला मचाया भी जाता है इस तरह के विवादित पाठ को कोर्स से हटाने पर। कांग्रेस को चाहिए पहले अपने आंगन की सफाई करें फिर आवाम से बात करे। इस देश की जनता ने कांग्रेस को सत्ता की चाबी इसलिए नहीं दी कि उसकी मर्जी जो आए करे। लेकिन, सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने यही किया। इससे जनता में आक्रोश है। उसकी नीतियों को लेकर, उसके नेताओं के आचरण को लेकर और यह आक्रोश बाहर निकलता है इंटरनेट और सोशल वेबसाइट पर। वेब मीडिया एक ऐसा साधन है जो जनता को अपनी बात कहने की पूरी आजादी देता है। इतना ही नहीं यहां से उसकी आवाज दूर तक भी जाती है। माहौल भी बनता है। यह हम बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के आंदोलन के दौरान देख चुके हैं। दरअसल, देखा जाए तो कांग्रेस और उसके नेताओं के खिलाफ ही इंटरनेट और सोशल साइट पर लिखा जा रहा है। संभवत: कांग्रेस इसी बात से डरी हुई है। इसलिए वह संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की आजादी को लगातार कुचलने के प्रयास करती दिखती है। कांग्रेसनीत यूपीए सरकार का बस चले तो वह पैदा होते ही हिन्दुस्तानियों के हलक में हाथ डालकर उनकी जुबान खींच ले।
आईटी एक्ट (संशोधित)-2008 के नए नियमों के मुताबिक अगर इंटरनेट पर किसी टिप्पणी, लेख या खबर पर सरकार को आपत्ति है तो उसे 36 घंटे के भीतर हटाना होगा। अन्यथा सरकार बिना नोटिस दिए संबंधित वेबसाइट के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है। इंटरनेट पर प्रसारित जनभावनाओं से डरी कांग्रेसनीत यूपीए सरकार अभी तक 11 वेबसाइट को बिना कारण बताए ब्लॉक करवा चुकी है। आईटी एक्ट में संशोधन से पहले जनवरी 2010 से दिसंबर 2010 तक विभिन्न वेबसाइट्स को हटाने के लिए सरकार ने गूगल को 30 आवेदन भेजे, इनमें से 53 फीसदी साइट्स बंद कर दी गईं या उनसे कथित आपत्तिजनक सामग्री हटा दी गई। वहीं साल 2009 में गूगल को सरकार ने 142 आवेदन भेजे इनमें से 78 फीसदी वेबसाइट्स को ब्लॉक कर दिया गया या कथित आपत्तिजनक सामग्री हटा दी गई।
फासीवादी नक्शे कदम पर कांग्रेस: कांग्रेस के इस कदम से लोगों में काफी रोष है। कई राजनीतिक विशेषज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता बताते हैं कि कांग्रेसनीत यूपीए सरकार की नीतियों को देखकर तो यही लगता है कि यह फासीवादी, तालीबानी और साम्यवादी नक्शेकदम पर चल रही है। मंत्री महोदय हमारा देश चीन, म्यांमार, थाइलैंड, पाकिस्तान, बांग्लादेश, ईरान, उज्बेकिस्तान, वियतनाम और सउदी अरब नहीं है। भारत में लोकतंत्र है यहां सबको अपनी बात कहने की आजादी है। यह अधिकार उन्हें संविधान ने दिया है। कृपाकर उसे छीनने का प्रयास न कीजिए।

संपर्क- गली नंबर-1 किरार कालोनी, एस.ए.एफ. रोड, कम्पू, लश्कर, ग्वालियर (म.प्र.) 474001
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