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Dec 28, 2011

देवानंद मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया...

- कृष्ण कुमार यादव

देवानंद के बारे में कहा जाता है कि वो कभी हार न मानने वाले लोगों में से थे और 88 वर्ष की उम्र में पूरे जोश के साथ नई फिल्म बनाने की तैयारी में लगे हुए थे। उनका सबसे बड़ा सशक्त पक्ष यह रहा कि उनकी उम्र कुछ भी रही हो, उन्होंने खुद को हमेशा युवा ही माना।
भारत के स्क्रीन लीजेंड्स की अगर कभी लिस्ट बनाई जाएगी तो उसमें हिंदी फिल्मों के सदाबहार अभिनेता और निर्माता-निर्देशक देवानंद साहब का नाम सबसे ऊपर शुमार होगा। वह सही मायने में बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे और अभिनेता, निर्देशक तथा निर्माता के रूप में उन्होंने विभिन्न भूमिकाएं निभाईं। भारतीय सिनेमा के सदाबहार अभिनेता देवानंद ने 1946 में फिल्मी दुनिया में कदम रखा था और 88 साल की उम्र में इस सदाबहार नौजवान का ग्लैमर की दुनिया में 65 साल काम करने के बाद 4 दिसंबर, 2011 को लंदन में दिल का दौरा पडऩे से इंतकाल हो गया। देवानंद के बारे में कहा जाता है कि वो कभी हार न मानने वाले लोगों में से थे और 88 वर्ष की उम्र में पूरे जोश के साथ नई फिल्म बनाने की तैयारी में लगे हुए थे। उनका सबसे बड़ा सशक्त पक्ष यह रहा कि उनकी उम्र कुछ भी रही हो, उन्होंने खुद को हमेशा युवा ही माना। सामाजिक मुद्दों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का कोई मुकाबला नहीं था तथा सिनेमा में भी उन्होंने जिन मुद्दों को उठाया उनसे समाज में नए मापदंड स्थापित करने में मदद मिली। देवानंद हमेशा अपनी शर्तों पर जिए। देवानंद ने जिंदगी को कितनी खूबसूरती के साथ जिया, इसका अंदाजा उनकी आत्मकथा के शीर्षक 'रोमांसिंग विद लाइफ' से पता चलता है। 438 पृष्ठों की उनकी इस आत्मकथा का विमोचन खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने किया था। देवानंद का मानना था की उनकी आत्मकथा 'रोमांसिंग विद लाइफ' में उससे भी ज्यादा है जितना जमाना जानता है। पुस्तक में देवानंद ने अपनी युवावस्था, लाहौर, गुरदासपुर, फिल्मी दुनिया के संघर्ष, गुरुदत्त के साथ मित्रवत रिश्तों और सुरैया के साथ अपने संबंधों का उल्लेख किया है। इसके अलावा देवानंद ने अपने भाई विजय आनंद और चेतन आनंद के संबंध में भी इस किताब में लिखा है। एक बार उन्होंने कहा था कि रोमांस का मतलब महिलाओं के साथ हमबिस्तर होने से ही क्यों लगाया जाता है। इसके मायने किसी के हाथ को अपने हाथ में लेना और बात करना भी हो सकते हैं। यह उनकी जिन्दादिली ही थी।
देवानंद का जन्म पंजाब के गुरदासपुर जिले में 26 सितंबर, 1923 को हुआ था। उनका बचपन का नाम देवदत्त पिशोरीमल आनंद था। उनके पिता जी पेशे से वकील थे। देवानंद ने अंग्रेजी साहित्य में अपनी स्नातक की शिक्षा 1942 में लाहौर के मशहूर गवर्नमेंट कॉलेज से पूरी की। इस कॉलेज ने फिल्म और साहित्य जगत को बलराज साहनी, चेतन आनंद, बी.आर.चोपड़ा और खुशवंत सिंह जैसे शख्सियतें दी हैं। पर बहुत काम लोगों को पता होगा कि देवानंद के कैरियर की शुरुआत चिट्ठियों के साथ हुई थी। जी हाँ, देवानंद साहब की उम्र जब बमुश्किल 20-21 साल की थी, तो 1945 में उन्हें पहला ब्रेक मिला और देवानंद साहब को सेना में सेंसर ऑफिस में पहली नौकरी मिली। इस काम के लिए देव आनंद को 165 रूपये मासिक वेतन के रूप में मिला करता था जिसमें से 45 रूपये वह अपने परिवार के खर्च के लिए भेज दिया करते थे। उस समय द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था। उनका काम होता था फौजियों की चिट्ठियों को सेंसर करना। सच में एक से एक बढ़कर रोमांटिक चिट्ठियाँ होती थी। एक चिट्ठी का जिक्र स्वयं देवानंद साहब बड़ी दिल्लगी से करते हैं, जिसमें एक मेजर ने अपनी बीवी को लिखा कि उसका मन कर रहा है कि वो इसी वक्त नौकरी छोड़कर उसकी बाहों में चला आए। बस इसी के बाद देवानंद साहब को भी ऐसा लगा कि मैं भी नौकरी छोड़ दूँ। बस फिर छोड़ दी नौकरी, लेकिन किस्मत की बात है कि उसके तीसरे ही दिन उन्हें प्रभात फिल्म्स से बुलावा आ गया और इस प्रकार देवानंद ने 1946 में फिल्मी दुनिया में कदम रखा और फिल्म थी -प्रभात स्टूडियो की 'हम एक हैं'। दुर्भाग्यवश यह फिल्म असफल ही रही। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।
वर्ष 1948 में प्रदर्शित फिल्म 'जिद्दी' देव आनंद के फिल्मी कॅरियर की पहली हिट फिल्म साबित हुई। इस फिल्म से वे बड़े अभिनेता के रुप में स्थापित हो गए। इसके बाद उन्हें कई फिल्में मिलीं। इस फिल्म की कामयाबी के बाद उन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रख दिया और नवकेतन बैनर की स्थापना की।
नवकेतन के बैनर तले उन्होंने वर्ष 1950 में अपनी पहली फिल्म 'अफसर' का निर्माण किया जिसके निर्देशन की जिम्मेदारी उन्होंने अपने बड़े भाई चेतन आनंद को सौंपी।
इस फिल्म के लिए उन्होंने उस जमाने की जानी मानी अभिनेत्री सुरैया का चयन किया जबकि अभिनेता के रूप में देव आनंद खुद ही थे। इसके बाद देवानंद ने कई बेहतरीन फिल्में की और अपने अभिनय का लोहा मनवाया। इन फिल्मों में पेइंग गेस्ट, बाजी, ज्वेल थीफ, सीआईडी, जॉनी मेरा नाम, टैक्सी ड्राइवर, फंटुश, नौ दो ग्यारह, काला पानी, अमीर गरीब, हरे रामा हरे कृष्णा और देस परदेस का नाम लिया जा सकता है। देवानंद केवल अभिनेता ही नहीं थे उन्होंने फिल्मों का निर्देशन किया, फिल्में प्रोड्यूस भी कीं। नवकेतन फिल्म प्रोडक्शन के बैनर तले उन्होंने 35 से अधिक फिल्मों का निर्माण किया।
देवानंद प्रख्यात उपन्यासकार आर.के. नारायण से काफी प्रभावित थे और उनके उपन्यास गाइड पर फिल्म बनाना चाहते थे। आर.के. नारायणन की स्वीकृति के बाद देव आनंद ने फिल्म 'गाइड' का निर्माण किया जो देव आनंद के सिने कॅरियर की पहली रंगीन फिल्म थी। इस फिल्म के लिए देव आनंद को उनके जबर्दस्त अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार भी दिया गया।
देवानंद को दो फिल्मफेयर पुरस्कार मिले। 1958 में फिल्म काला पानी के लिए और फिर 1966 में गाइड के लिए। गाइड ने फिल्मफेयर अवार्ड में पांच अवार्डों का रिकार्ड भी बनाया। इतना ही नहीं गाइड 1966 में भारत की तरफ से ऑस्कर के लिए नामांकित भी हुई थी। आगे चलकर देवानंद ने नोबल पुरस्कार विजेता पर्ल बक के साथ मिलकर अंग्रेजी में भी गाइड का निर्माण किया था।
देवानंद अपने काले कोट की वजह से भी काफी चर्चा में रहे। देवानंद अपने अलग अंदाज और बोलने के तरीके के लिए काफी मशहूर थे। उनके सफेद कमीज और काले कोट के फैशन को तो युवाओं ने जैसे अपना ही बना लिया था और इसी समय एक ऐसा वाकया भी देखने को मिला जब न्यायालय ने उनके काले कोट को पहन कर घूमने पर पाबंदी लगा दी। वजह थी कुछ लड़कियों का उनके काले कोट के प्रति आसक्ति के कारण आत्महत्या कर लेना। दीवानगी में दो- चार लड़कियों ने जान दे दी। देवानंद के जानदार और शानदार अभिनय की बदौलत परदे पर जीवंत आकार लेने वाली प्रेम कहानियों ने लाखों युवाओं के दिलों में प्रेम की लहरें पैदा कीं लेकिन खुद देवानंद इस लिहाज से जिंदगी में काफी परेशानियों से गुजरे। देवानंद सुरैया को कभी भुला नहीं पाए और अक्सर उन्होंने सुरैया को अपनी जिंदगी का प्यार कहा है। वह भी इस हकीकत के बावजूद कि उन्होंने बाद में अभिनेत्री कल्पना कार्तिक से विवाह कर लिया था। वर्ष 2005 में जब सुरैया का निधन हुआ तो देवानंद उन लोगों में से एक थे जो उनके जनाजे के साथ थे। अपनी आत्मकथा में भी देवानंद ने सुरैया के साथ अपने संबंधों का उल्लेख किया है। जीनत अमान के साथ भी उनके प्यार के चर्चे खूब रहे। देवानंद ने 'हरे रामा हरे कृष्णा' के जरिए जीनत अमान की खोज की। अपनी आत्मकथा 'रोमांसिंग विद लाइफ' में उन्होंने लिखा कि वे जीनत अमान से बेहद प्यार करते थे और इसीलिए उन्हें अपनी फिल्म 'हरे रामा हरे कृष्णा' में अभिनेत्री बनाया था। लेकिन देवानंद का यह प्यार परवान चढऩे से पहले ही टूट गया, क्योंकि उन्होंने जीनत अमान को एक पार्टी में राजकपूर की बाहों में देख लिया था। गौरतलब है कि देवानंद ने कल्पना कार्तिक के साथ शादी की थी लेकिन उनकी शादी अधिक समय तक सफल नहीं हो सकी। दोनों साथ रहे लेकिन बाद में कल्पना ने एकाकी जीवन को गले लगा लिया। कई अभिनेत्रियों से उनके संबंधों को लेकर बातें उड़ीं, पर देवानंद अपनी ही धुन में मस्त व्यक्ति थे। टीना मुनीम, नताशा सिन्हा व एकता जैसी तमाम अभिनेत्रियों को मैदान में उतारने का श्रेय भी देवानंद को ही जाता है।
वर्ष 1970 में फिल्म प्रेम पुजारी के साथ देवानंद ने निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रख दिया। हालांकि यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से नकार दी गई बावजूद इसके उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उन पर फिल्माया गया गीत- 'मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया, हर फिक्र को धुंए में उड़ाता चला गया' उनके जीवन के भी बहुत करीब था। इसके बाद वर्ष 1971 में फिल्म हरे रामा हरे कृष्णा का भी निर्देशन किया जिसकी कामयाबी के बाद उन्होंने अपनी कई फिल्मों का निर्देशन भी किया। अभी सितम्बर 2011 में देवानंद जी की फिल्म चार्जशीट रिलीज हुई थी। फिल्मों में देवानंद के योगदान को देखते हुए उन्हें 1993 में फिल्मफेयर लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड दिया गया। उन्हें 2001 में पद्म भूषण और 2002 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी नवाजा गया। देवानंद साहब के जाने से हिंदी फिल्म जगत का एक महत्वपूर्ण युग खत्म हो गया...श्रद्धांजलि।
संपर्क: निदेशक डाक सेवाएँ, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, पोर्टब्लेयर-744101,Email- kkyadav।y@rediffmail.com Blog- http://kkyadav.blogspot.com/

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