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Dec 28, 2011

बढ़ती जनसंख्या के खतरे

बढ़ती जनसंख्या के खतरे
-डॉरत्ना वर्मा
साल के अंत में बीते दिनों की उपलब्धियों और नुकसान का लेखा- जोखा करने का एक रिवाज सा बन गया है, ताकि हम आने वाले साल को और बेहतर बना सकें। यूं तो हमने हर माह किसी न किसी समस्या और समाज के ज्वलंत मुद्दों को उठाया है, लेकिन साल के इस अंतिम माह में हम एक ऐसे मुद्दे को अपने पाठकों के साथ मिलकर उठाना चाहते हैं जो विश्व के लिए एक भयंकर समस्या के रूप में उभर कर सामने आ रही है- और वह है दुनिया भर में तेजी से बढ़ती जनसंख्या। हमें विश्वास है कि जनसंख्या को लेकर जिन समस्याओं की चर्चा जोर- शोर से मीडिया और समाज में इन दिनों की जा रही है उसके कारगर समाधान के लिए भी उतनी ही गंभीरता से चर्चा की जाएगी।
संयुक्त राष्ट्र संघ की घोषणा के अनुसार 31 अक्टूबर 2011 को विश्व की जनसंख्या 700 करोड़ हो गई है। इस आंकड़े को पंहुचाने वाली भारत में जन्मी किसान की बेटी नरगिस को सात अरबवाँ बच्चा घोषित किया गया है। बच्चों के अधिकारों के हित में काम करने वाली प्लान इंटरनेशनल संगठन के अनुसार भारत में कन्या भ्रूण- हत्या और असंतुलित लिंग अनुपात जैसी समस्याओं पर चेतना जागृत करने के लिये ही एक गरीब किसान की बेटी नरगिस को प्रतीकात्मक रूप से सात अरबवाँ बच्चा माना गया है।
जनसंख्या कोष ने जनसंख्या के सात अरब हो जाने का स्वागत तो किया है लेकिन चेतावनी भी दी है कि दुनिया के लिए इन परिस्थितियों में जीने के सीमित साधन उपलब्ध हैं। क्योंकि शताब्दी के अंत तक यह आंकड़ा दुगुना होने की सम्भावना है। किए गए आकलन के अनुसार भारत जैसे विकासशील देशों पर जनसंख्या का प्रभाव सर्वाधिक पड़ेगा। सन 2030 में आबादी के लिहाज से भारत विश्व का सर्वाधिक विशाल देश होगा और यह वृद्धि बेरोजगारी और निर्धनता को और अधिक बढ़ायेगी। जनसंख्या गणना 2011 के अनुसार भारत की आबादी 1210,193,422 (1.21 अरब) आंकी गई। भारत में हर एक मिनट में 51 बच्चों का जन्म होता है। नेशनल ज्योग्राफिक पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट में विश्व में प्रतिवर्ष आठ करोड़ बच्चों का जन्म हो रहा है। इसमें सबसे ज्यादा योगदान गरीब देशों का है। वर्ष 2001-11 के मध्य इसमें और अधिक वृद्धि दर्ज की गई है। 1960 में दुनिया की आबादी तीन अरब थी जो 1999 में छह अरब हो गई। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2025 तक यह जनसंख्या आठ अरब से अधिक होने का अनुमान व्यक्त किया है।
बढ़ती जनसंख्या न केवल भारत के लिए बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लिए चिंता का विषय है। देश गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी, अल्पपोषण व खाद्यान संकट की ज्वाला में धधक रहा है, जो आतंकवाद, गुण्डागर्दी, भ्रष्टाचार, कालाबाजारी, हेराफेरी व तस्करी जैसी अवांछनीय गतिविधियों के बढ़ावा देने के लिए भी जिम्मेदार है। गरीबी निवारण हेतु क्रियान्वित तमाम योजनाओं के बावजूद भी सच्चाई यह है कि देश की लगभग 42 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करती है।
बढ़ती जनसंख्या हमारे पर्यावरण को भी प्रभावित कर रही है जो दिन प्रतिदिन विकराल होती चली जा रही है। जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, मृदा प्रदूषण जैसी समस्याओं का कारण बढ़ती जनसंख्या ही है और यह प्रदूषण मानव, पशु, पक्षी व वनस्पति के लिए खतरनाक साबित हो रही है। इन सभी भयावह दुष्परिणामों को दृष्टिगत रखते हुए यह बहुत जरूरी हो गया है कि देश का प्रत्येक नागरिक जनसंख्या के बढ़ते तूफान को रोकने के लिए हरसंभव सहयोग व योगदान दे। परिवार नियोजन कार्यक्रम के प्रभावी क्रियान्वयन, शिक्षा व जागरुकता का प्रचार तथा गरीबी, रुढि़वादिता व अंध विश्वासों के निवारणार्थ कड़े कदम उठाए। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष ने भी अपने वार्षिक रिपोर्ट में शिक्षा, युवाओं के लिए रोजगार के अवसर, बुजूर्गों की देखरेख, जल संसाधन, योजनाबद्ध शहरी विकास और जनसंख्या पर नियंत्रण जैसे अहम क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की जरुरत बताई है। यह एक ऐसी विकराल समस्या है जिसका निवारण एक दिन या एक उपाय मात्र से नहीं किया जा सकता। पूरी दुनिया को संयुक्त रूप से इसके लिए प्रयास करने होंगे। अफसोस जनक बात यह है कि हमारे देश के कर्णधार इन दिनों देश की समस्याओं के निवारण में ध्यान देने के बजाय अपनी कुर्सी बचाने में ज्यादा ध्यान देते हैं।
फिर भी हम उम्मीद करते हैं कि आने वाले वर्ष में जनसंख्या के इस बढ़ते विस्फोट से जूझने के लिए ऐसे तमाम उपाय किए जाएंगे जिससे आने वाली पीढ़ी एक स्वस्थ और सुकून भरे वातावरण में सांस लेते हुए खुशहाल जिंदगी जी सके।

2 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत उम्दा और विस्तृत विवेचन ..इस समस्या के लगभग सभी पहलू समेटे .....

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

भारत में धर्म और जाति से परे हटकर हर नागरिक के लिए "एक संतान" की नीति को वैधानिकबाध्यता बनाया जाना चाहिये ।