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Oct 1, 2024

धरोहरः छत्तीसगढ़ में है माता कौशल्या का एकमात्र मंदिर

भगवान राम का ननिहाल ग्राम चंदखुरी 

हमारे देश में हर जगह भगवान राम के अनेक मंदिर हैं;  लेकिन उनकी माता कौशल्या का इकलौता मंदिर अगर कहीं देखने को मिलेगा, तो वह सिर्फ छत्तीसगढ़ में। कौशल्या माता का यह प्राचीन मंदिर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 27 किलोमीटर दूर ग्राम चंदखुरी में जलसेन तालाब के बीच स्थित है। 

इस स्थान को भगवान राम की माता कौशल्या की जन्मस्थली माना जाता है। प्रभु श्रीराम को गोद में लिये हुए माता कौशल्या की अद्भुत प्रतिमा इस मंदिर को दुर्लभ बनाती है। 1973 में  इस मंदिर का जीर्णोद्धार किए जाने की जानकारी मिलती है । अब पिछले वर्षों में तो माता कौशल्या का यह धाम और भी सुंदर और भव्य हो चुका है। इस प्राचीन मंदिर की खूबसूरती को देखने पर्यटक दूर- दूर से आने लगे हैं।  

माता कौशल्या का जन्मस्थान होने के कारण यह गाँव रामलला के ननिहाल के रूप में प्रसिद्ध है। यही वजह है कि दीपावली के अवसर पर कई दिनों तक ग्राम चंदखुरी  के साथ आस - पास के गाँवों में  घर- घर दिये जलाकर लंका पर विजय और राम जानकी की अयोध्या की वापसी का जश्न मनाते हैं।

भगवान राम की माता कौशल्या कोसल प्रदेश यानी छत्तीसगढ़ की राजकुमारी थी।   पद्म पुराण में उल्लेख है कि कौशल्या कोसलन राजकुमार की बेटी थीं। बाद के ग्रंथों में उन्हें दक्षिण कोसल के राजा सुकौशल और रानी अमृतप्रभा की बेटी बताया गया है। महाकौशल की पूरी प्रजा माता कौशल्या को बहन और भगवान श्रीराम को अपना भानजा मानते हैं। यही वजह है कि छत्तीसगढ़ के लोग इस रिश्ते को आत्मीयता के साथ निभाते हैं। यहाँ के मूल  निवासी अपने भानजे-भानजियों को भगवान का रूप मानकर उनका बहुत सम्मान के साथ आदर सत्कार करते हैं तथा उनके पाँव छूकर उनका आशीर्वाद लेते हैं। 

पुरातात्त्विक जानकारी के अनुसार इस मंदिर को 8वीं 9वीं शताब्दी में सोमवंशी राजाओं ने बनवाया था, जबकि लोककथाओं के आधार पर यहाँ के राजा को माता कौशल्या ने सपने में दर्शन देकर कहा था कि वे इस स्थान पर मौजूद हैं। तब राजा ने सपने वाली उस जगह पर खुदाई करवाई, तो उन्हें यह मूर्ति प्राप्त हुई।  बाद में राजा ने मंदिर बनवाकर मूर्ति की स्थापना की। 

छत्तीसगढ़ का यह गाँव कौशल्या माता के मंदिर के लिए तो प्रसिद्ध है ही, साथ ही यह छोटा- सा गाँव कभी 126 तालाबों के लिए भी मशहूर रहा है।  इस क्षेत्र में गाए जाने वाले एक गीत में  छह कोरी छह आगर तालाब होने का उल्लेख है। एक कोरी बराबर 20,  अर्थात् छह कोरी मतलब हुआ 120 और छह आगर यानी छह और। इस प्रकार कुल 126 तालाब हुए। 

विभिन्न शोधपत्रों, अभिलेखों में यह भी उल्लेख है कि भगवान श्रीराम ने अपना वनवास काल छत्तीसगढ़ के अनेक स्थानों पर व्यतीत किया था। श्री राम ने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ दंडकारण्य में 10 साल का लंबा समय व्यतीत किया।  राम सबसे पहले अयोध्या से 20 किलोमीटर दूर तमसा नदी के तट पर पहुँचे। तमसा नदी पार करने के बाद  दंडकारण्य (छत्तीसगढ़ ) के घने जंगलों में पहुँचे।  दंडकारण्य में वनवास के दौरान प्रभु श्रीराम छत्तीसगढ़ के कई जगहों से होकर गुजरे थे,  जिनमें सीतामढ़ी-हरचौका (कोरिया), रामगढ़, अम्बिकापुर (सरगुजा ), किलकिला (जशपुर ), शिवरीनारायण (जांजगीर -चांपा), तुरतिया वाल्मिकी आश्रम (बलौदा बाजार),चंदखुरी (रायपुर), राजिम (गरियाबंद), सिहावा सप्तऋषि आश्रम (धमतरी ),जगदलपुर (बस्तर ), रामाराम (सुकमा ) जैसे अनेक स्थलों में राम वनवास से जुड़ी अनेक स्मृतियाँ देखने को मिलती हैं।  इन साक्ष्यों को ही आधार मानते हुए अब क्षेत्र में राम वनगमन पथ को विकसित करने को लेकर बड़े पैमाने पर कार्य चल रहा है। इसके लिए 51 स्थलों को चिन्हित किया गया है। 

विश्वास है यह कार्य पूर्ण हो जाने के बाद संस्कारधानी छत्तीसगढ़ का नाम पर्यटन के क्षेत्र में प्रमुखता से लिया जाएगा। ( उदंती फीचर्स)

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