1. टी-20 की सीरीज अनवरत
- कान्ता रॉय
वह क्रिकेट की दीवानी
थी।जैसे ही क्रिकेट लीग व टूर्नामेंट शुरू होता कि दिन भर की धमाचौकड़ी बंद। फिर
तो कहीं और नज़र ही नहीं आती, बस बैठ जाती टी वी के आगे। महेंद्र सिंह धोनी, विराट कोहली और गौतम गम्भीर ,बस ,दूसरा कुछ सूझता ही नहीं था उसे। सोफे पर चिप्स , कुरकुरे के ढेंरो पैकेट और दोस्तों की टोली, कहती क्रिकेट में दोस्तों के साथ हो तभी मजा
आता है।
पिछली बार तो
कितने सारे पॉपकार्न के पैकेट मँगाकर माँ को थमा दिएथे। उफ्फ! यह लड़की भी ना! माँ
के पल्ले ना तो क्रिकेट,ना ही
इसके तामझाम समझ में आते।
जवानी की दहलीज
पर पैर रखते ही बहुत अच्छे घर से रिश्ता आ जाना, वह भी बिना दहेज के, पिता तो मानों जी उठे थे।
"अजी, क्या इतनी सी उम्र में बिट्टो को व्याह दोगे? अभी तो बारहवीं भी पूरी नहीं हुई है। क्या वह
पढ़ाई भी पूरी ना करें!" माँ लड़खड़ाती आवाज में कह उठी। अकुलाई-सी माँ बेटी
के बचपने को शादी की बलि नहीं चढ़ाना चाहती थी।
"देखती
नहीं भागवान, वक्त कितना
बुरा चल रहा है, बेटी
ब्याह कर, निश्चिंत हो, गंगा नहाऊँ।कल का क्या भरोसा फिर ऐसा रिश्ता
मिले ना मिले।" एक क्षण रुक, कहते-कहते
पिता के नयन भी भर आए थे। हर बात में लड़ने झगड़ने वाली ऐसी चुप हुई कि आज तक मुँह
में सहमी उस जुबान का इस्तेमाल नहीं किया।
बाबुल के घर से
विदा होकर आए पिछले एक महीने में उसने एक बार भी मैच नहीं देखा है। उससे तीन साल
बड़ी ननद देखती है क्रिकेट अपने भाइयों के साथ।
और वह क्या
करती है? यहाँ तो उसकी
जिंदगी क्रिकेट का मैच बनी हुई लग रही थी।
ससुराल का यह
चार कमरों का घर बड़ा-सा क्रिकेट का मैदान दिखाई देता है उसे, जहाँ उसकी गलती पर कैच पकड़ने के लिए चारों ओर
फिल्डिंग कर रहे परिवार के लोग।
विकेट कीपर
जेठानी, सास अंपायर बनी
उसके इर्द-गिर्द ही नज़र गड़ाए रहती है।
ननद, देवर,जेठ और ससुर जी सबके लिए वह बल्ला लेकर पोजीशन
पर तैनात।
पति बॉलर की
भूमिका में चौकस, और वह!
बेबस, लाचार-सी
बल्लेबाज की भूमिका में पिच पर, हर बॉल
पर, रन बनाने को
मजबूर। गलती होने पर कमजोर खिलाड़ी का तमगा और हूटिंग मिलती। आऊट होने पर भी बल्ला
पकड़कर पिच पर बैटिंग करने को मजबूर।
दूर-दूर तक
कहीं कोई चीयर्स लीडर नहीं।
कई दफा आँखें रोते-रोते
लाल हो जाती है। आज भी नजरें बार-बार पवेलियन की ओर उठ जाया करती है, काश इस मैच में भी पवेलियन होता और उसे
माता-पिता के पास लौटना संभव होता!
2.खटर-पटर
ये दोनों
पति-पत्नी जब भी बन-ठन कर घूमने निकलते तो कितने सुखी लगते हैं। एक-दूसरे से बेहद
जुड़े हुए, बिना कहे एक
दूसरे की मन को समझने वाले, फिर भी
कभी-कभी इनके घर इतनी लड़ाई शुरू हो जाती है कि पूरे मोहल्ले में आवाज़ गूँजती है।
जाने ये कैसे लोग है! अलगनी से सूखे कपड़े उतार, उसपर गीले कपड़े डालने लगी कि तभी सामने से आज वह अकेली आती
दिखाई दी।कल रात भी खूब हंगामा मचा था उनके घर,
मन में क्या सूझा एकदम से पूछ बैठी, "नमस्ते शीलू जी, कैसी हैं?"
"अच्छी
हूँ, आप सब कैसे हैं?"
आँखों में काजल
लगाए उनके चेहरे पर रौनक छाई थी। झगड़े के वक्त कल भी इनकी आवाज़ सबसे अधिक थी।
"आप
परेशान हैं क्या?" मन को
जबर करके पूछा मैंने।
"नहीं
तो! मैं तो कभी परेशान नहीं होती हूँ।"
"लेकिन
मुझे लगा कि...!"
"क्या
लगा, जरा खुलकर
कहिए!"
"आप कहती
हैं कि आपके पति बहुत अच्छे हैं, तो फिर
आप दोनों की लड़ाई क्यों होती है?"
"अरे
वो!" कहते-कहते वह जोर-जोर से हँसने लगी। मैं अकबकाई उसको पागलों जैसी हँसते
देखती रही। मुझे लगा यह दुख की हँसी है...बस अब जरूर रोएगी..! लेकिन वह हँसती हुई
कह पड़ी, "हम
पति-पत्नी कभी नहीं लड़ते हैं, हमारी
बॉन्डिंग मजबूत है।"
"लेकिन वह
चीख-चिल्लाहट से भरी झगड़े की आवाज़ तो अक्सर सुनती हूँ।
"हाँ, होती है। लेकिन हमारे घर लड़ाई हम पति-पत्नी की
नहीं बल्कि मर्द और औरत में होती है।" कहते हुए महकती-सी गुज़र गई। मेरे सूखे
कपड़ों पर गीले कपड़े बिछ जाने की वजह से पूरे कपड़े गीले हो गए। मैंनें अलगनी पर
सूखने के लिए सबको छोड़ दिया।
अब मुझे एक नया
मेनिया हो गया है, अब जब
किसी जोड़े से मिलती हूँ तो उस खुशहाल पति-पत्नी में छुपे मर्द-औरत को तलाशने लगती
हूँ।
लेखक परिचयः जन्म दिनांक-
२० जुलाई, १९६९ जन्म
स्थान- कोलकाता, शिक्षा-
बी. ए., लेखन की विधाएँ
- लघुकथा , कहानी, कविता और आलोचनाएँ, सामाचार
सम्पादक: सत्य की मशाल (राष्ट्रीय मासिक पत्रिका), प्रकाशन : घाट
पर ठहराव कहाँ (लघुकथा संग्रह), पथ का
चुनाव (लघुकथा संग्रह)
4 comments:
दोनों लघुकथाएं लघुकथा लेखन की नई दिशा तय करती है
बेहतरीन कथाएं।क्रिकेट की दीवानी का सामाजिक भय से समय पूर्व ही विवाह उसे घर मे ही शोषण का शिकार बना देता है।संयुक्त परिवार में एक बहू की दुर्दशा पर T-20 मैच के माध्यम से करारा कटाक्ष।उसे भी निश्चित समयावधि में अनेक कार्य कुशलतापूर्वक सम्पन्न करने पड़ते हैं।पति पत्नी के संबंधों में कोई हलचल (खटर-पटर) होना भी आवश्यक है।
बेहतरीन कथाएं।क्रिकेट की दीवानी का सामाजिक भय से समय पूर्व ही विवाह उसे घर मे ही शोषण का शिकार बना देता है।संयुक्त परिवार में एक बहू की दुर्दशा पर T-20 मैच के माध्यम से करारा कटाक्ष।उसे भी निश्चित समयावधि में अनेक कार्य कुशलतापूर्वक सम्पन्न करने पड़ते हैं।पति पत्नी के संबंधों में कोई हलचल (खटर-पटर) होना भी आवश्यक है।
T-20 मैच के माध्यम से ससुराल में बहू की दयनीय स्थिति को दर्शाती उम्दा लघुकथा। काश इस मैच में भी पवेलियन होता ....! दिल को छू गई।
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