धुएँ की ज़हरीली चादर
-प्रमोद भार्गव
सर्वोच्च
न्यायालय ने दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को आपातकाल की संज्ञा दी है। साथ ही दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश की
राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर पूछा है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के
प्रदूषण का स्तर चिन्ताजनक है, इससे निपटने के लिए इन
राज्यों की सरकारें क्या पहल कर रही हैं?
इस
समय दिल्ली में पराली जलाए जाने, वाहनों की बढ़ती संख्या और
कारखानों की चिमनियों से धुआँ उगलने के कारण दिल्ली के ऊपर जहरीले धुएँ की चादर
बिछ गई है, जो दिखाई तो सबको दे रहा है, लेकिन इससे निपटने का कारगर उपाय किसी के पास दिखाई नहीं दे
रहा है। क्योंकि वायु प्रदूषण कुलीन लोगों की सुविधा, लाचार किसानों की मजबूरी और कारखानों में काम कर रहे लोगों
की आजीविका से जुड़ा मुद्दा भी है। इसलिए इस समस्या का हल एकांगी उपायों के बजाय
बहुआयामी उपायों से ही सम्भव हो सकता है।
दिल्ली
ही नहीं देश में बढ़ते वायु प्रदूषण को लेकर रोज नए सर्वे आ रहे हैं। इनमें कौन सा
सर्वे कितना विश्वसनीय है, एकाएक कुछ कहा नहीं जा सकता
है। लेकिन इन सर्वेक्षणों ने दिल्ली समेत पूरे देश में वायु प्रदूषण की भयावहता को
सामने ला दिया है। इस प्रदूषण को देश में कुल बीमारियों से जो मौतें हो रही हैं, उनमें से 11 फीसदी की वजह वायु प्रदूषण माना गया है। मानव
जीवन की उम्र के बहुमूल्य वर्ष कम करने के लिए भी इस प्रदूषण को एक बड़ा कारक माना
गया है।
यह
सर्वे केन्द्र सरकार ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान परिषद (Indian Council of Medical Research) और गैर सरकारी संगठन ‘हेल्थ ऑफ द नेशन्स स्टेट्स’ (Health
of the Nations States)के साथ मिलकर किया है। इसके अनुसार राष्ट्रीय राजधानी
क्षेत्र दिल्ली में वायु प्रदूषण से पीड़ित जो एक लाख मरीज़ अस्पतालों में पहुँचते
हैं, उनमें से 3469, राजस्थान में 4528, उत्तर प्रदेश में 4390, मध्य प्रदेश में 3809, और छत्तीसगढ़ में 3667 रोगियों की मृत्यु हो जाती है।
वायु
प्रदूषण के जरिए भारतीयों की औसत आयु में 3.4 वर्ष कम हो रहे है। इण्डियन
इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटरोलॉजी (Indian Institute
of Tropical Meteorology) और नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रिसर्च, कोलाराडो (National Center
for Atmospheric Research, Colorado) की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में व्यक्ति की उम्र कम होने
का असर सबसे ज्यादा है। यहाँ 6.3 वर्ष उम्र कम हो रही है। दिल्ली के बाद बिहार में
5.7, झारखण्ड में 5.2, उत्तर प्रदेश में 4.8, हरियाणा-पंजाब में 4.7, छत्तीसगढ़ में 4.1, असम में 4.4, त्रिपुरा में 3.9, मेघालय में 3.8 और महाराष्ट्र में 3.3 की दर से उम्र कम हो
रही है।
कश्मीर
में केवल 6 महीने की उम्र कम होती है, वहीं हिमाचल में उम्र कम
होने का आँकड़ा 14 महीने का है। देश में अब तक अलग-अलग बीमारियों के कारणों की
पड़ताल की जाती रही है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर सभी राज्यों और सभी
प्रमुख बीमारियों को शामिल करने वाला यह पहला अध्ययन हैं। इस अध्ययन के निष्कर्षों
के बाद अब केन्द्र एवं राज्य सरकारों का दायित्व बनता है कि वे इस अध्ययन के
अनुरूप विकास योजनाएँ बनाएँ और जो नीतियाँ तय करें उन्हें सख्ती से अमल में लाएँ।
इन
देशव्यापी अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि दिल्ली में धुआँ और धुंध के जो बादल गहराए
हुए हैं, उनका प्रमुख कारण पराली को जलाया जाना नहीं है। अकेले पंजाब
में करीब 2 करोड़ टन धान की पराली निकलती है। इन अवशेषों को ठिकाने लगाने के लिए ही
दो हजार करोड़ रुपए से अधिक की रकम की जरूरत पड़ेगी। साफ है, पराली की समस्या से निजात पाना राज्य सरकारों को आसान नहीं
है। हाँ, इस समस्या का हल गेहूँ और धान से इतर अन्य फसलों के उगाने
से हो सकता है, लेकिन इसके लिए किसानों को प्रोत्साहित करना
होगा। उन्हें बहुफसलीय खेती के लिए अनुदान भी देना होगा। किसानों के साथ इस तरह के
व्यावहारिक विकल्प अपनाए जाते हैं तो उनकी आजीविका भी सुरक्षित रहेगी और दिल्ली एक
हद तक पराली के धुएँ से बची रहेगी।
2015
में जब केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने मध्य प्रदेश के ग्वालियर को भारत के
11 शहरों में इसे सबसे प्रदूषित शहर बताया था तब लोग चौंक गए थे कि 10 लाख की
आबादी वाले ग्वालियर की यह स्थिति है तो इससे ऊपर की आबादी वाले शहरों की क्या
स्थिति होगी? ग्वालियर की तरह ही दिल्ली, मुम्बई, पुणे, कोलकाता, लखनऊ, कानपुर, अमृतसर, इन्दौर और अहमदाबाद जैसे शहरों में प्रदूषण खतरनाक स्तर की
सीमा लाँघने को तत्पर है। उद्योगों से धुआँ उगलने और खेतों में बड़े पैमाने पर
औद्योगिक व इलेक्ट्रॉनिक कचरा जलाने से भी इन नगरों की हवा में जहरीले तत्त्वों की
सघनता बढ़ी है। इस कारण दिल्ली दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शामिल है।
वैसे भी दुनिया के जो 20 सर्वाधिक प्रदूषित शहर हैं, उनमें भारत के 13 शामिल हैं।
बढ़ते
वाहनों के चलते वायु प्रदूषण की समस्या दिल्ली में ही नहीं पूरे देश में भयावह
होती जा रही है। मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ के लगभग सभी छोटे शहर प्रदूषण की चपेट में
हैं। डीजल व घासलेट से चलने वाले वाहनों व सिंचाई पम्पों ने इस समस्या को और
विकराल रूप दे दिया है। केन्द्रीय प्रदूषण बोर्ड देश के 121 शहरों में वायु
प्रदूषण का आकलन करता है। इसकी एक रिपोर्ट के मुताबिक देवास, कोझिकोड व तिरुपति को अपवाद स्वरूप छोड़कर बाकी सभी शहरों
में प्रदूषण एक बड़ी समस्या के रूप में अवतरित हो रहा है। इस प्रदूषण की मुख्य वजह
तथाकथित वाहन क्रान्ति है।
विश्व
स्वास्थ्य संगठन का दावा है कि डीजल और केरोसिन से पैदा होने वाले प्रदूषण से ही
दिल्ली में एक तिहाई बच्चे साँस की बीमारी की गिरफ्त में हैं। 20 फीसदी बच्चे
मधुमेह जैसी लाइलाज बीमारी की चपेट में हैं। इस खतरनाक हालात से रुबरू होने के
बावजूद दिल्ली व अन्य राज्य सरकारें ऐसी नीतियाँ अपना रही हैं, जिससे प्रदूषण को नियंत्रित किए बिना औद्योगिक विकास को
प्रोत्साहन मिलता रहे। इस नाते दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सरकारों को नोटिस जारी कर यह
पूछना तार्किक है कि वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए क्या उपाय अपनाए जा
रहे हैं।
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