रसायन विज्ञान का
उपयोग
- नवनीत कुमार गुप्ता
- नवनीत कुमार गुप्ता
राष्ट्रीय हरित
प्राधिकरण यानी एनजीटी ने प्लास्टर ऑॅफ पेरिस (पीओपी) प्रतिमाओं पर प्रतिबंध लगाने
का सुझाव दिया है,
और देश के कई हिस्सों में इस पर प्रतिबंध भी है। इसके बावजूद इसका
व्यापक उपयोग चिंता का विषय है। इसलिए हमें इससे निपटने के वैकल्पिक तरीकों का
विकास करना होगा।
नागपुर स्थित राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी
अनुसंधान संस्थान (नीरी) ने पीओपी मूर्तियों के विसर्जन में अमोनियम बायकार्बोनेट
नामक एक पदार्थ को उपयोगी पाया है। अमोनियम बायकार्बोनेट के उपयोग से प्लास्टर ऑफ
पेरिस बहुत कम समय में विघटित हो जाता है।
अमोनियम बायकार्बोनेट प्लास्टर ऑफ
पेरिस के साथ अभिक्रिया करके कैल्शियम कार्बोनेट और अमोनियम सल्फेट में विघटित हो
जाता है। सबसे खास बात यह है कि विघटन के बाद बचे पदार्थों को दोबारा उपयोग किया
जा सकता है। अमोनियम सल्फेट एक जाना-माना उर्वरक है जिसका उपयोग खेतों में किया
जाता है। इस प्रकार प्लास्टर ऑफ
पेरिस के विघटन से प्राप्त अमोनियम सल्फेट का उपयोग खेतों में हो सकेगा।
विघटन के बाद अमोनियम सल्फेट जल की उपरी पर्त में
तैरने लगता है। इसका उपयोग मिट्टी की क्षारीयता को कम करने के लिए भी किया जाता
है। प्लास्टर ऑफ पेरिस
के विघटन से प्राप्त दूसरा पदार्थ कैल्शियम कार्बोनेट नीचे तली में बैठ जाता है
जिसका उपयोग सीमेंट उद्योग में दोबारा से किया जा सकता है।
नीरी ने इस वर्ष गणेश पूजा के दौरान प्रतिमाओं के
विसर्जन के लिए तीन टंकियाँ बनाई हैं जिनमें
से दो में इस तकनीक के उपयोग की तैयारी की जा रही है। इसके परिणामस्वरूप जो
प्रतिमाएँ गलने में बहुत दिनों का समय लेती थीं वे जल्द गल जाएँगी और उनके गलने पर
जो पदार्थ शेष बचेंगे उसमें से अधिकतर का उपयोग दोबारा से किया जा सकेगा। इस
प्रकार इस तकनीक के उपयोग से जहाँ जल प्रदूषित होने से बचेगा, वहीं विभिन्न पदार्थों को दोबारा से उपयोग किया जा सकेगा। इस प्रकार यह
तकनीक पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण साबित होगी।
नीरी द्वारा इस वर्ष प्रयोगात्मक आधार पर इस पद्धति
का उपयोग किया जाएगा। जब प्लास्टर ऑफ
पेरिस से बनी मूर्तियों को पानी में छोड़ दिया जाता है तो इसके गलने से मुक्त होने
वाली अनेक भारी धातुएँ पानी में पहुँचती हैं जो जलीय जीवन के लिए हानिकारक होती
हैं। इसके अलावा,
पानी में घुलित ऑॅक्सीजन के स्तर में कमी आती है और जलीय जीव
प्रभावित होते हैं। पिछले साल हैदराबाद और उसके आसपास के क्षेत्रों में ही करीबन
एक लाख से अधिक गणेश मंडल दर्ज किए गए थे। इन सभी मंडलों की मूर्तियाँ आसपास की 141 झीलों में विसर्जित की गईं थी। औसतन प्रत्येक झील में 500 मूर्तियाँ विसर्जित हुई होंगी। इतनी बड़ी संख्या में मूर्तियों के
विसर्जन के कारण जल स्रोत भी प्रदूषित हुए।
आजकल इको- फ्रेंडली तरीके से त्यौहार मनाने पर ज़ोर
दिया जा रहा है। ऐसे में हम सभी को पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से ऐसे ही तरीके
अपनाने चाहिए जो प्रदूषण को कम करते हों। (स्रोत फीचर्स)
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