- डॉ. रत्ना वर्मा
खानपान की बात निकलते ही आजकल मन में जो सबसे पहला प्रश्न कौंधता
है कि हम जो कुछ आज खा रहे हैं ,वह कितना शुद्ध है? शुद्ध और पौष्टिक खाने की बात पर
बरबस गाँव की याद आती है। चाहे बात दूध, दही, मक्खन या घी की हो या फिर साग- सब्जी की। यही नहीं घर की चक्की से पीसा गया
गेहूँ का आटा और बिना पालिश वाले चावल और दाल की बात ही कुछ और होती थी। अब तो आलम
यह है कि नदी किनारे पैदा होने वाले तरबूज और खरबूजे खाते हुए भी डर लगता है,
क्योंकि जो मीठा खरबूज हम खा रहे होते हैं,
उसकी मिठास अब नकली हो गई है। जहरीला रंग और केमिकल इंजेक्ट करके उसे मीठा और लाल
बनाया जाता है।
सब्जी खरीदते समय हमें पता होता है कि परवल, कुंदरू, लौकी,
भिंडी खीरे के ऊपर जो हरापन नज़र आ रहा है वह खतरनाक जहरीला रंग है,
जिससे कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियाँ हो रहीं हैं,पर हम यह ज़हर खाने को मज़बूर हैं ;क्योंकि हमारे पास
और कोई विकल्प बचा ही नहीं है। मिलावटी वस्तु बेचने वालों को लेकर मेरे मन में
अक्सर एक विचार आता है कि खाद्य पदार्थों में मिलावट करके बेचने वाला भी तो अंततः
वही सब खाकर जिंदा रहता है, जो हम सब खाते हैं। मान लेते हैं
कि अगर वह दूध या तेल का व्यापार करता है और दूध या तेल में मिलावट कर मुनाफा
कमाता है, तब वह अपने और अपने परिवार के लिए शुद्ध दूध या
बिना मिलावट वाला तेल बचाकर रख लेता है, पर साग- सब्जी, अनाज जैसे अन्य खाद्य पदार्थों में भी तो मिलावट
है, तब वह किस-किस चीज़ की शुद्धता की जाँच कर पाता होगा,
वह क्या जान पाता होगा कि उसके बच्चे वह दूध या तेल नहीं ले रहे हैं, जिसमें उसने ज़हर मिलाया है। क्या मुनाफ़ा अपने और अपने परिवार के जीवन से
भी ऊपर होता है? खैर... यह तो भावनात्मक सवाल हो गया और
व्यापार में भावनाओं का क्या काम....
किसी भी खाद्य पदार्थ में मिलावट से स्वास्थ्य के लिएगम्भीर समस्या हो सकती
हैं। कुछ का असर तुरन्त, तो कुछ का बहुत धीमी गति से होता है जिसकी जानकारी बहुत
समय बाद होती है या कभी- कभी तो इनका पता ही नहीं चलता। अब प्रश्न यह उठता है कि
इसका इलाज क्यों नहीं हो पा रहा है। खाने में मिलावट को रोकने के लिए एक कानून है,
फूड एण्ड ड्रग नामक कमीशन भी है। शहरों में म्युनिसिपल अधिकारी यह
कानून लागू करते हैं। गाँव में राज्य सरकार द्वारा नियुक्त फूड इन्सपैक्टर यह काम
करते हैं। परन्तु इस कानून का क्रियान्वन इतना ढीला है कि बहुत ही कम मामलों में
ऐसा हो पाता है। दूसरी और यह कानून छोटे दुकानदारों को परेशान किए जाने का एक
जरिया भी बन गया है और बड़े पैमाने पर जो मिलावट करतेहैं, वे
घूस देकर बचने का तरीका अपना लेते हैं।
हालाँकि पिछले कुछ सालों में दोषसिद्धि दरों में कुछ सुधार देखने ज़रूर मिला
है। साल 2008-09 में येआँकंड़े 16 फीसदी थे , जबकि साल 2014-15 में यह 45 फीसदी दर्ज कि
गए हैं। इन आँकड़ों में तेजी से वृद्धि होने का एक कारण, फूड
सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई ) की स्थापना होना भी है।
एफएसएसएआई की स्थापना अगस्त 2011 में की गई है। खाद्य अपमिश्रण अधिनियम, 1954 , और कई नियमों के बदले खाद्य सुरक्षा अधिनियम
लागू किया गया है। इसका कार्यान्वयन राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है।
इन सबके बावजूद मिलावट का बाजार कितनी तेजी से फल-फूल रहा है यह इसी से
साबित होता है कि पिछले पाँच सालों में सरकार द्वारा किए गए खाद्य सुरक्षा परीक्षण
में मिलावटी दरों में खासी वृद्धि दर्ज की गई है। 2008 में यह आँकड़े 8 प्रतिशत थे
जबकि 2014 में 18 प्रतिशत दर्ज की गई है।
सबसे खतरनाक है देश में बच्चों को दूध के नाम पर सफेद जहर परोसा जाना। फूड सेफ्टी स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के
सर्वे में जो खुलासा हुआ है ,वह यह कि दिल्ली समेत देश के सभी 33 राज्यों
और केन्द्रशासित प्रदेशों में दूध के 68 सैंपल्स मिलावटी पाए गए हैं। केवल गोवा और
पांडीचेरी में दूध के सैंपल्स शुद्ध मिले हैं। संस्था के मुताबिक खुले और पैक्ड,
दोनों तरह के दूध में मिलावट मिली है। दूध में यूरिया, स्टार्च, खाने का सोडा और डिटर्जेंट मिलाए जाने की
बात सामने आई है।
तो अब सोचना यही है कि अगर अपने बच्चों के स्वास्थ्य को बेहतर रखना है, गम्भीर बीमारियों से बचाना है
तो हमें जागरूक बनना होगा। जीवित रहने के लिए हवा पानी और भोजन तीनों ज़रूरी है।
हवा तो प्रदूषित हो ही गई है, पानी भी शुद्ध नहीं रहा। रही
बात भोजन की ,तो यहाँ तो हम जो खा रहे हैं उसमें कौन सा
खतरनाक केमिकल घुला है ,यह पता ही नहीं चल पाता और हम यह सोच
कर खुश रहते हैं कि हम तो घर का बना हुआ शुद्ध खाना खा रहे हैं, हमें क्यों कोई बीमारी लगेगी।
पर वास्तविकता क्या है अब सब जान गए हैं इसलिए दोषियों को सजा मिले और खाने
की चीज़ों में मिलावट की समस्या से निपटा जा सके इसके लिए बड़े स्तर पर लोगों को
जागरूक होने की ज़रूरत है। मामला उजागर होने पर शासन प्रशासन को सख्त से सख्त
कार्यवाही करना होगा। नियम कानून का सख्ती से लागू किया जाना ,शासन प्रशासन की सबसे पहली
प्राथमिकता होनी चाहिए। सरकार जनता को फील गुड करवाना चाहती है ; पर जनता यदि बीमार रहेगी तो वह फील गुड कैसे महसूस कर पायेगी, तो सरकार से गुजारिश है कि वह युद्ध स्तर पर इस तरह के मिलावटखोरों के विरुद्ध
मुहिम चलाए और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाए ,ताकि दोबारा
फिर कोई जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने की हिम्मत न कर पाए।
इस मामले में हमें अपनी जिम्मेदारी
को भी बखूबी निभाना होगा- अगर आपको कभी भी खाने में मिलावट का वहम हो तो आप फूड
इन्सपैक्टर को इसकी सूचना दे सकते हैं। आप जिला स्वास्थ्य प्रयोगशालाएँ या
तहसीलदार से अपने क्षेत्र के फूड इन्सपैक्टर का पता लगा सकते हैं। आप निजी
स्वास्थ्य केन्द्रों को भी इनकी जानकारी दे सकते हैं। और अब तो मिलावट की जाँच के
नए नए तरीके इज़ाद हो चुके हैं, जिसके जरिए आप स्वयं घर पर ही जाँच च करके
पता लगा सकते हैं कि दूध में मिलावट है या तेल नकली है। तो जाग जाइए। जिस दिन
जागरूक जनता कमर कस लेगी, उस दिन मिलावट करने वाले पकड़े ही
जाएँगे।
1 comment:
सारगर्भित आलेख है |जानकारी भी सार्थक |लोगों में जागरूकता लाना आवश्यक है !!
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