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Mar 15, 2016

तीन नवगीत

                           
  -रमेश गौतम 

1
हमारे गाँव में
कब से
ठगों के काफिले ठहरे

नमन कर सूर्य को
जब भी
शुरू यात्राएँ  करते हैं
अजब दुर्भाग्य है
अपना
अँधेरे साथ चलते हैं

विसंगति सुन
नहीं सकते
यहाँ सब कान हैं बहरे

चिरागों से
खुली रिश्वत
हवाएँ रोज लेती हैं
सभाएँ रात की
दिन को
सजा-ए-मौत देती हैं

यहाँ दफ़ना
दिए जाते
उज़ाले अब बहुत गहरे

हथेली देखकर
कहना
बहुत टेढ़ी लकीरे हैं
सुना तक़दीर
के किस्से
कलेज़े रोज़ चीरे हैं

निकल सकते
नहीं बाहर
बड़े संगीन हैं पहरे।

2

देवदूत
कैसे उपलब्ध हो
छाँव तनिक
राजा के छत्र की
जप-तप-व्रत

मंत्र-तंत्र
पूजागृह- प्रार्थना
माथे न टाँक सके
उज्ज्वल संभावना
अधरों न धर पाईं
सीपियाँ
एक बूँद स्वाति नक्षत्र की

भूल गए कच्चे घर
गाँव, गली-गलियारे
बूढ़ी परछाईं के
साँझ ढले
तन हारे
एक-एक साँस
तके आहटें
परदेसी बेटे के पत्र की ।

फूल नहीं
खिलते हैं परजीवी बेल में
टूटी मर्यादाएँ
चौसर के खेल में

कौरव कुल समझेगा
क्या, भला
परिभाषा नारी के वस्त्र की।

चुन-चुनकर भेजा था
खोटे दिन जाएँगे
मरुथल की
गोदी में
बादल कुछ आएँगे
देख-देख टूटीं
सब भ्रांतियाँ
दृश्यकथा
संसद के सत्र की।

3
मान जा मन
छोड़ दे
अपना हठीलापन

बादलों को कब
भला पी पाएगा
एक चातक
आग में
जल जाएगा
दूर तक वन
और ढोता धूप
फिर भी तन

मानते
उस पार तेरी हीर है
यह नदी
जादू भरी ज़ंज़ीर है

तोड़ दे
प्रण
सामने पूरा पड़ा जीवन

मर्मभेदी यातना में
रोज मरना
स्वर्णमृग का
मत कभी
आखेट करना
मौन क्रंदन
साथ होंगे
बस विरह के क्षण।


लेखक के बारे में- शिक्षा- एम. ए. हिन्दी साहित्य, जन्म- 28 सितम्बर 1948, जन्म: जनपद पीलीभीत (उ.प्र.),अध्यापक पद से सेवा निवृत्त।  लेखन/ प्रकाशन: नवगीत, लघुकथा, बाल कविताएँ, विविध विषयों पर लेख, समीक्षा व पत्रकारिता लेखन, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन जिनमें उल्लेखनीय कथादृष्टि, लघुकथा फोल्डर अन्वेषण कविता फोल्डर, माया भारती पत्रिका, तितली (बालपत्रिका) आर्यपुत्र आदि। अनेक सम्मान एवं पुरस्कार। स्थायी निवास: रंगभूमि, 78- बी, संजय नगर, बाईपास, बरेली- 243005 (उ.प्र.) दूरभाष- 0581- 2303312, मो.- 09411470604

1 comment:

Sushil Kumar Agrawal said...

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