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Nov 19, 2017

साँस लेना हुआ दूभर

साँस लेना हुआ दूभर
- डॉ.रवीन्द्र कुमार
प्रदूषण इन्सानी सेहत के लिए एक बहुत बड़ी समस्या बनता जा रहा है। उसके बहुत से कारण हैं। हवा में प्रदूषण का एक कारण कुदरती जरिया है उड़ती हुई धूल। कारखानों के परिचालन या जंगल की आग से तमाम किस्म के हानिकारक कण हवा में दाखिल हो जाते हैं, जिनसे पर्यावरण में प्रदूषण फैलता रहता है। जब जंगल में आग लगती है तो उससे जंगल जलकर राख हो जाते हैं और यही राख जब हवा में दाखिल होती है तो प्रदूषण फैलाती है। दूसरी सबसे बड़ी वजह आबादी का बढ़ना और लोगों का खाने-पीने और आने-जाने के लिए साधन उपलब्ध करवाना है जिसकी वजह से स्कूटर, कारों और उनके उद्योगों का बढ़ना, थर्मल पावर प्लाण्ट का बढ़ना, कारों की रफ्तार का बढ़ना, प्राकृतिक पर्यावरण में बदलाव का होना है।
आबादी बढ़ने से प्रदूषण भी काफी तेजी से बढ़ रहा है। प्रदूषण चाहे पानी की वजह से हो या हवा की वजह से, इसने इन्सान के स्वास्थ्य को तबाह कर दिया है। इस प्रदूषण की वजह से किसी को कैन्सर है तो किसी को शुगर या हृदय रोग। जब आबादी बढ़ती है तो यह आवश्यक है कि मानवीय जरूरतें पूरी की जायें।
प्रदूषण की खासतौर पर तीन किस्में होती हैं। जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण। लेकिन हम यहाँ पर वायु प्रदूषण और मानव जीवन के बारे में बताना चाहेंगे।
वायु प्रदूषण एक ऐसा प्रदूषण है जिसके कारण रोज-ब-रोज मानव स्वास्थ्य खराब होता चला जा रहा है और पर्यावरण के ऊपर भी इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है। यह प्रदूषण ओजोन की परत को पतला करने में मुख्य भूमिका निभा रहा है, जिसकी वजह से जैसे ही आप घर के बाहर कदम रखेंगे आप महसूस करेंगे कि हवा किस कदर प्रदूषित हो चुकी है। धुएँ के बादलों को बसों, स्कूटरों, कारों, कारखानों की चिमनियों से निकलता हुआ देख सकते हैं। थर्मल पावर प्लान्ट्स से निकलने वाली फ्लाई ऐश (हवा में बिखरे राख के कण) किस कदर हवा को प्रदूषित कर रहा है, कारों की गति रोड पर किस कदर प्रदूषण को बढ़ा रही है। सिगरेट का धुआँ भी हवा को प्रदूषित करने में पीछे नहीं है।
वायु प्रदूषण के कारण
जहाँ पर वायु को प्रदूषित करने वाले प्रदूषक ज्यादा हो जाते हैं, वहाँ पर आँखों में जलन, छाती में जकड़न और खाँसी आना एक आम बात है। कुछ लोग इसको महसूस करते हैं और कुछ लोग इसको महसूस नहीं करते लेकिन इसकी वजह से साँस फूलने लगती है। अन्जायना (एक हृदयरोग) या अस्थमा (फेफड़ों का एक रोग), या अचानक सेहत खराब होना भी वायु प्रदूषण की निशानी है। जैसे-जैसे वायु में प्रदूषण खत्म होने लगता है स्वास्थ्य ठीक हो जाता है। कुछ लोग बहुत ही नाजुक होते हैं जिनके ऊपर वायु प्रदूषण का प्रभाव बहुत तेज और जल्दी हो जाता है और कुछ लोगों पर अधिक देर से होता है। बच्चे, बड़ों की तुलना में अधिक नाजुक होते हैं इसलिए उनके ऊपर वायु प्रदूषण का प्रभाव अधिक पड़ता है। और वो बीमार पड़ जाते हैं। जिसकी वजह से बच्चों में वरम और ब्रोंकाइटिस (Bronchitis) जैसी बीमारियाँ हो जाती हैं। अधिक वायु प्रदूषण के समय बच्चों को घरों में ही रखना चाहिए, जिससे उनको वायु प्रदूषण से बचाया जा सके।
वायु प्रदूषण और उसकी बुनियाद
कार्बन मोनो ऑक्साइड: यह एक अधजला कार्बन है जोकि पेट्रोल डीजल ईंधन और लकड़ी के जलने से पैदा होता है। यह सिगरेट से भी पैदा होता है। यह ऑक्सीजन में कमी पैदा करता है जिससे हम अपनी नींद में परेशानी महसूस करते हैं।
कार्बन डाइ ऑक्साइड: यह एक ग्रीन हाउस गैस है। जब मानव कोयला ऑयल और प्राकृतिक गैस को जलाता है तो इन सबके जलने से कार्बन डाइ ऑक्साइड गैस पैदा होती है।
क्लोरो-फ्लोरो कार्बन: यह ओजोन को नष्ट करने वाला एक रसायन है। जब इसको एयर कन्डीशनिंग और रेफ्रीजरेटर के लिए उपयोग किया जाता है तब इसके कण हवा से मिलकर हमारे वायुमंडल के समताप मंडल (stratosphere) तक पहुँच जाते हैं और दूसरी गैसों से मिलकर ओजोन परत को हानि पहुँचाते हैं। यही ओजोन परत जमीन पर जीव-जन्तुओं तथा वनस्पतियों को सूर्य की नुकसान पहुँचाने वाली पराबैंगनी किरणों (Ultravoilet rays) से बचाती हैं। यही कारण है कि क्लोरो-फ्लोरो कार्बन मनुष्य और अन्य जैविक जगत के लिए बहुत बड़ा खतरा है।
सीसा (Lead) : सीसा, डीजल, पेट्रोल, बैटरी, पेंट और हेयर डाई आदि में पाया जाता है। लेड खासतौर से बच्चों को प्रभावित करता है। इससे दिमाग और पेट की क्रिया खराब हो जाती है। इससे कैन्सर भी हो सकता है।
ओजोन (Ozone) : ओजोन लेयर वायुमंडल में समताप मंडल (stratosphere) की सबसे ऊपरी परत है। यह एक खास और अहम गैस है। इसका काम सूरज की हानि पहुँचाने वाली पराबैंगनी किरणों को भूमि की सतह पर आने से रोकना है। फिर भी यह जमीनी सतह पर बहुत ज्यादा दूषित है और जहरीली भी है। कल-कारखानों से ओजोन काफी तादाद में निकलती है। ओजोन से आँखों में पानी आता है और जलन होती है।
 नाइट्रोजन ऑक्साइड : इसकी वजह से धुन्ध और अम्लीय वर्षा होती है। यह गैस पेट्रोल, डीजल और कोयला के जलने से पैदा होती है। इससे बच्चों में बहुत से प्रकार के रोग हो जाते हैं जोकि सर्दियों में आम होते हैं।
निलम्बित अभिकणीय पदार्थ (Suspended Particulate Matter : SPM) : यह हवा में ठोस, धुएँ, धूल के कण के रूप में होते हैं जो एक खास समय तक हवा में रहते हैं। जिसकी वजह से फेफड़ों को हानि पहुँचता है और साँस लेने में परेशानी होती है।
'सल्फर डाइ ऑक्साइड' :जब कोयला को थर्मल पावर प्लान्ट में जलाया जाता है तो उससे जो गैस निकलती है वो 'सल्फर डाइ ऑक्साइड' गैस होती है। धातु को गलाने और कागज को तैयार करने में निकलने वाली गैसों में भी 'सल्फर डाइ ऑक्साइड' होती है। यह गैस धुन्ध पैदा करने और अम्लीय वर्षा में बहुत ज्यादा सहायक है। सल्फर डाइ ऑक्साइड की वजह से फेफड़ों की बीमारियाँ हो जाती हैं।
वायु प्रदूषण से कैसे बचें


 1. सरकार को ऐसी नीतियाँ बनानी चाहिए कि कर्मचारी घर पर ही बैठकर काम करें। एक सप्ताह में सिर्फ एक दिन ही कार्यालय जायें। और अब सूचना तकनीक के आ जाने से यह सम्भव भी है। उदाहरण के तौर पर अमेरिका के कॉरपोरेट सेक्टर में काम करने वाले 35% लोग सप्ताह में केवल एक दिन कार्यालय जाते हैं। बाकी काम घर पर बैठकर करते हैं। जिससे उनका आने-जाने का खर्च भी नहीं होता और वायु में प्रदूषण भी नहीं बढ़ता। आने जाने में जो वक्त लगता है उसका इस्तेमाल वे लोग दूसरे कामों में करते हैं। जैसे- बागवानी।
2. अधिक से अधिक साइकिल का इस्तेमाल करें।
3. सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करें।
4. बच्चों को कार से स्कूल न छोड़ें बल्कि उनको स्कूल ट्रांसपोर्ट में जाने के लिए प्रोत्साहित करें।
5. अपने घर के लोगों को कारपूल बनाने के लिए कहें जिससे कि वो एक ही कार में बैठकर कार्यालय जायें। इससे ईंधन भी बचेगा और प्रदूषण भी कम होगा।
6. अपने घरों के आस-पास पेड़-पौधों की देखभाल ठीक से करें।
7. जब जरूरत न हो बिजली का इस्तेमाल न करें।
8. जिस कमरे में कूलर पंखा या एयर कन्डीशन जरूरी हों, वहीं चलाएँ, बाकी जगह बन्द रखें।
9. आपके बगीचे में सूखी पत्तियाँ हों तो उन्हें जलाएँ नहीं, बल्कि उसकी खाद बनायें।
10. अपनी कार का प्रदूषण हर तीन महीने के अन्तराल पर चेक करवाएँ।
11. केवल सीसामुक्त पेट्रोल का इस्तेमाल करें। बाहर के मुकाबले घरों में प्रदूषण का प्रभाव कम होता है; इसलिए जब प्रदूषण अधिक हो तो घरों के अन्दर चले जाएँ।
(पर्यावरण प्रदूषण: एक अध्ययन, हिंद-युग्म)

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