वित्तीय बाजार में फ्यूचर्स वे अदृश्य उत्पाद होते हैं, जो भविष्य की किसी तय तारीख को पहले से तय दाम और शर्तों पर खरीदे और बेचे जाते हैं। इनमें शेयर भी हो सकते हैं और कोई और उत्पाद भी। आम आदमी की भाषा में कहें, तो इसमें किसी खेत में कपास की भविष्य में होने वाली फसल भी शामिल हो सकती है और भविष्य में किसी खदान से निकलने वाला लोहा या सोना भी हो सकता है। जब फ्यूचर्स का सौदा हो रहा होता है, तब वे दरअसल होते नहीं हैं। कब होंगे और कितने होंगे और होंगे भी या नहीं, इसके अंदाज से ही फ्यूचर्स के सौदे किए और निपटाए जाते हैं। इन्हें आप ब्लाइंड सट्टा भी कह सकते हैं।
भारतीय राजनीति में इन्हें कई नामों से जाना जाता है। सरकारों के बदलने के साथ इनके नाम बदलते रहे हैं। आजकल इनका सबसे प्रचलित नाम अच्छे दिन है। इन्हें विकास के नाम से भी जाना जाता है, तो कुछ लोग इन्हें गंगा की सफाई के नाम से या स्वच्छ भारत के नाम से भी जानते हैं। इन्हें आप सुविधानुसार शानदार रोज़गार, भ्रष्टाचार और काला धन के खिलाफ मुहिम जैसे नाम से भी पुकार सकते हैं। बस ये फ्यूचर्स की तरह दिखायी नहीं देते। होते भी नहीं हैं या नहीं, और कभी होंगे भी, इस बात की कोई गारंटी नहीं होती।
बस, ये फ्यूचर्स आज़ादी के बाद से हर सरकार बेचती आयी है और इन्हीं के बल पर बहुमत से जीतती भी आयी है। पिछली सरकार के समय पर इन्हें गरीबी हटाओ देश बचाओ के नाम से जाना जाता था। उस सरकार ने लंबे समय तक इन फ्यूचर्स का सौदा किया और अथाह धन कमाया। कुछ काला, कुछ सफेद।
1 comment:
बहुत सटीक व्यंग्य।
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