मौसम है रंगीन सुहाना
पुलकित मन है पुलकित गात
आज प्रकृति संवरी कुछ ऐसी
सृष्टि बनी मधुऋतु की रात।
सपने सारे उमड़ पड़े हैं ,
इच्छाएं सब जाग पड़ी हैं ,
भाव उमड़ते उर -अंतर में
कविता -सरिता फूट पड़ी है।
फूट चले हैं रस के निर्झर
हृदय - सरोवर फूट चला है
दिग्दिगंत आनन्द आपूरित
भवबंधन सब टूट चला है।
सुख का मेला सज़ा हुआ है,
लहरायित है हिय का सागर
आज कल्पना होरी गाती,
भरी जगत री रीती गागर।
प्रकृति - सुन्दरी रूप अलौकिक,
लालस ललक पड़ी है
जिधर दृष्टि जाती है मेरी
सुन्दरता बस रची खड़ी है।
माया मनहर रूप दिखाती
रूप दीवाना होता हूँ
रूपदृश्य के पार ज्योति का
परवाना होता हूँ।
प्रकृति सुहानी लगती है
रूप लुभाना लगता है
रूपदृश्य के परे है जो भी
और सुहाना लगता है।
जिसको देखा वह है सुन्दर
जो अनदेखा वह अति सुन्दर
दृश्य जगत के पार है देखो,
सुन्दरतम का बहा समंदर।
द्वारा- डॉ. अजय कुमार ओझा, फ्लैट 10, नीलकमल अपार्टमेंट, देसू रोड, मेहरौली, नई दिल्ली : 110030, मो : 96437 38481
1 comment:
सुंदर रचना... सुंदर भाव 🌹💐🙏
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