सर्दियों का पूरा मौसम नसरुद्दीन ने अपने बगीचे की देखरेख में बिताया। वसंत आते ही हर तरफ मनमोहक फूलों ने अपनी छटा बिखेरी। बेहतरीन गुलाबों और दूसरे शानदार फूलों के बीच नसरुद्दीन को कुछ जंगली फूल भी झाँकते दिख गए।
नसरुद्दीन ने उन फूलों को उखाड़कर फेंक दिया। कुछ दिनों के भीतर वे जंगली फूल और खरपतवार फिर से उग आए।
नसरुद्दीन ने सोचा क्यों न उन्हें खरपतवार दूर करनेवाली दवा का छिडकाव करके नष्ट कर दिया जाए। लेकिन किसी जानकार ने नसरुद्दीन को बताया कि ऐसी दवाएँ अच्छे फूलों को भी कुछ हद तक नुकसान पहुँचाएँगी। निराश होकर नसरुद्दीन ने किसी अनुभवी माली की सलाह लेने का तय किया।
“ये जंगली फूल, ये खरपतवार…”, माली ने कहा, “यह तो शादीशुदा होने की तरह है, जहाँ बहुत- सी बातें अच्छी होतीं हैं तो कुछ अनचाही दिक्कतें और तकलीफें भी पैदा हो जातीं हैं।”
“अब मैं क्या करूँ?”, नसरुद्दीन ने पूछा।
“तुम अगर उन्हें प्यार नहीं कर सकते हो, तो बस नज़रंदाज़ करना सीखो। इन चीज़ों की तुमने कोई ख्वाहिश तो नहीं की थी; लेकिन अब वे तुम्हारे बगीचे का हिस्सा बन गई हैं।” (हिन्दी ज़ेन से)
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