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Mar 1, 2022

दो कविताएँ- 22 मार्च विश्व जल दिवस

  
-डॉ. कविता भट्ट

1. हाँ स्त्री समुद्र है

हाँ, स्त्री समुद्र है- उद्वेलित और प्रशान्त

मन के भाव ज्वार-भाटा के समान

विचलित और दुःखी करते हैं उसे भी

हो जाती है जीवमात्र कुछ क्षणों के लिए।

किन्तु; पुनः स्मरण करती है; कि

वह है- प्रसूता, जननी और पालनहार

पुरुष- अपने अस्तित्व के लिए भी

निर्भर है सूक्ष्म जीव सा- इसी समुद्र पर

दोहराता रहता है- भूलें-अपराध-असंवेदनाएँ

प्रायश्चित नहीं करता, किन्तु फिर भी

विश्राम चाहता है- स्त्री के वक्षस्थल में

विशाल हृदया स्त्री क्षमादान देती है

समेट लेती है- सब गुण-अवगुण

समुद्र के समान- प्रशान्त होकर

और चाहती है कि ज्वार-भाटा में

सूक्ष्म जीव का अस्तित्व बना रहे।

2. स्त्री व पानी 

कितनी समानता है- स्त्री व पानी में

दोनों तरल, नर्म और आकारहीन हैं।

ढल जाते हैं प्रत्येक निर्धारित साँचे में,

निरपेक्ष बुझाते प्यास, विकारहीन हैं।

खींचते लकीरें जब बहें प्रबल धार में।

पत्थर चीरें, लोग कहते संस्कारहीन हैं।

रस-छन्द-अलंकार-व्याकरण है इनमें

छले जाते; किन्तु दोनों व्यापारहीन हैं।


7 comments:

Anima Das said...

अत्यंत उत्कृष्ट एवं हृदयस्पर्शी रचना है... स्त्री मन की एक संवेदनशील छवि 🥰💐🌹बधाई mam 🌹🙏

rameshwar kamboj said...

दोनों कविगाएँ गहन भावबोध से संपृक्त हैं। हार्दिक बधाई

Sati Shankar said...

सुन्दर

शिवजी श्रीवास्तव said...

स्त्री पानी की भाँति तरल है,समुद्र की भाँति गम्भीर और विशाल है,स्त्री की इन्हीं विशिष्टताओं को रेखांकित करतीं सुंदर कविताएँ।डॉ. कविता भट्ट जी को बधाई।

Sudershan Ratnakar said...

बहुत सुंदर। नारी की विशेषताओं का सटीक विश्लेषण। बधाई कविता जी।

नीलाम्बरा.com said...

हार्दिक आभार आप सभी का

dr.surangma yadav said...

बहुत सुंदर।