प्लास्टिक पर प्रतिबंध
लगना ही चाहिए
-हिमांशु भट्ट
प्लास्टिक न केवल इंसानो बल्कि
प्रकृति और वन्यजीवों के लिए भी खतरनाक है, लेकिन प्लास्टिक
के उत्पादों का उपयोग दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है, जिससे
प्लास्टिक प्रदूषण सबसे अहम पर्यावरणीय मुद्दों में से एक बन गया है। एशिया और
अफ्रीकी देशों में प्लास्टिक प्रदूषण सबसे अधिक है। यहाँ कचरा एकत्रित करने की कोई
प्रभावी प्रणाली नहीं है। तो वहीं विकसित देशों को भी प्लास्टिक कचरे को एकत्रित
करने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, जिस कारण
प्लास्टिक कचरा लगातार बढ़ता जा रहा है। इसमें विशेष रूप से ‘‘सिंगलयूज प्लास्टिक’’ यानी ऐसा प्लास्टिक जिसे केवल
एक ही बार उपयोग किया जा सकता है, जैसे प्लास्टिक की थैलियाँ,
बिस्कुट, स्ट्रॉ, नमकीन,
दूध, चिप्स, चॉकलेट आदि
के पैकेट। प्लास्टिक की बोतलें, जो कि काफी सहूलियतनुमा लगती
हैं, वे भी शरीर और पर्यावरण के लिए भी खतरनाक हैं। इन्हीं प्लास्टिक
का करोड़ों टन कूड़ा रोजाना समुद्र और खुले मैदानों आदि में फेंका जाता है। जिससे
समुद्र में जलीय जीवन प्रभावित हो रहा है। समुद्री जीव मर रहे हैं। कई प्रजातियाँ
विलुप्त हो चुकी हैं। जमीन की उर्वरता क्षमता निरंतर कम होती जा रही है। वहीं जहाँ-तहाँ
फैला प्लास्टिक कचरा सीवर और नालियों को चोक करता है, जिससे
बरसात में जलभराव का सामना करना पड़ता है। भारत जैसे देश में रोजाना सैंकड़ों आवारा
पशुओं की प्लास्टिकयुक्त कचरा खाने से मौत हो रही है, तो
वहीं इंसानों के लिए प्लास्टिक कैंसर का भी कारण बन रहा है। इसलिए प्लास्टिक के
उपयोग को कम करने के साथ ही ‘‘सिंगलयूज प्लास्टिक’’ पर प्रतिबंध लगाना अनिवार्य हो गया है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की
एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत से हर दिन करीब 26 हजार टन प्लास्टिक कूड़ा निकलता है,
जिसमें से आधा कूड़ा यानी करीब 13 हजार टन
अकेले दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और बेंगलुरु से ही निकलता है। इस प्लास्टिक कूड़े में से लगभग 10
हजार 376 टन कूड़ा एकत्र नहीं हो पाता और खुले
मैदानों में जहाँ-तहाँ फैला रहता है। हवा से उड़कर ये खेतों, नालों
और नदियों में पहुँच जाता है तथा नदियों से समुद्र में। जहाँ लंबे समय से
मौजूद प्लास्टिक पानी के साथ मिलकर समुद्री जीवों के शरीर में पहुँच रहा है। वर्ष 2015
में ‘साइंस जर्नल’ में
छपे आँकड़ों के अनुसार हर साल समुद्र में 5.8 से 12.7
मिलियन टन के करीब प्लास्टिक समुद्र में फेंका जाता है। उधर मैदानों
और खेतों में फैला प्लास्टिक कुछ अंतराल के बाद धीरे-धीरे जमीन के अंदर दबता चला
जाता है तथा जमीन में एक लेयर बना देता है। इससे वर्षा का पानी ठीक प्रकार से भूमि
के अंदर नहीं पहुँच पा रहा है और जो पहुँच भी रहा है उसमें माइक्रोप्लास्टिक के कण
पाए जाने लगे हैं, जिससे भूमि की उर्वरता प्रभावित हो रही
है। दरअसल अधिकांश प्लास्टिक लंबे समय तक नहीं टूटते हैं ;बल्कि
ये छोटे छोटे टुकड़ों में बँट जाते हैं, जिनका आकार 5 मिलीमीटर या इससे छोटा होता है।
ग्रीन हाउस गैसों का करते हैं उत्सर्जन
अधिकांश प्लास्टिक पॉलीप्रोपाइलीन से
बना होता है, जिसे पेट्रोलियम या प्राकृतिक गैस से बनाया जाता है। जो जलाने
पर हाइड्रोक्लोरिकएसिड, सल्फर डाइऑक्साइड, डाइऑक्सिन, फ्यूरेन और भारी धातुओं जैसे खतरनाक
रसायन छोड़ता है, जिस कारण सांस संबंधी बीमारियां, चक्कर आना और खाँसी आने लगती है। साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता भी घटने
लगती है। डाइऑक्सिन के लंबे समय तक संपर्क में रहने से कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता
है, इससे ओजोन परत को भी नुकसान पहुँचता है। पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक
हाइड्रोकार्बन, पॉलीक्लोराइनेटेड बाइ फिनाइल हार्मोन में
बाधा डालते हैं। प्लास्टिक के इन दुष्प्रभावों को देखते हुए करीब 40 देशों में प्लास्टिक की थैलियाँ प्रतिबंधित हैं। चीन ने भी प्लास्टिक की
थैलियों पर प्रतिबंध लगाया था। प्रतिबंध के चार साल बाद
ही फेंके गए प्लास्टिक थैलों की संख्या 40 बिलियन तक कम हो
गई।
जिस प्रकार इंसानों और वन्यजीवों तथा पक्षियों की दुनिया है, उसी प्रकार एक दुनिया समुद्र और नदियों में पाई जाती है, जिसमें मछली, कछुए आदि जलीय जीव रहते हैं। इसके अलावा कई औषधियों की प्रजातियाँ भी समुद्र के अंदर पाई जाती हैं लेकिन वन्यजीव भोजन समझकर या भूल से इस प्लास्टिक का सेवन कर रहे हैं अथवा समुद्र में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक भोजन और सांस के साथ इनके पेट में पहुँच रहा है। जिस कारण लाखों जलीय जीवों की मौत हो चुकी हैं, जबकि कई तो रोजाना चोटिल भी होते हैं। कुछ महीने पहले फिलीपींस में एक विशालकाय मृत व्हेल के पेट से करीब 40 किलोग्राम प्लास्टिक निकली थी। माइक्रोप्लास्टिक पक्षियों के लिए भी मौत का सामान सिद्ध हो रहा है। इसे प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है कि प्लास्टिक ने किस तरह जलीय जीवों के जीवन को प्रभावित कर दिया है।
सिंगलयूज प्लास्टिक का लाइफ इंसान के
जीवन में केवल 10 से 20 मिनट की होती है। इसके बाद ये
प्लास्टिक जीव जंतुओं और पर्यावरण के लिए मौत का सामान बन
जाता है। तो वहीं अब भोजन में ही मिलकर इंसानों के पेट में भी पहुँचने लगा है,
जिससे मानव जगत के उत्थान और सुविधा के लिए बनाया गया प्लास्टिक
इंसान द्वारा इंसान और पृथ्वी के खिलाफ खड़ा किया गया एक हथियार बन गया है, जो धीरे-धीरे पृथ्वी में ज़हर घोल रहा है। इसलिए प्लास्टिक पर पूर्ण रूप से
प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए और लोगों को ये समझना होगा कि प्लास्टिक के भी कई अन्य
विकल्प हैं, लेकिन ये हम पर निर्भर करता है कि सहूलियत के
लिए हम मौत की सामग्री (प्लास्टिक) चुनते हैं या जीवन के लिए पर्यावरण के अनुकूल
कोई अन्य साधन।
प्लास्टिक में पैक भोजन शरीर और
पर्यावरण के लिए ज़हर
विज्ञान ने इंसान के जीवन को काफी
आसान बना दिया है। नई-नई तकनीकों के आविष्कार ने पहले की अपेक्षा हर कार्य में
तेजी ला दी है, जिससे इंसान जटिल से जटिल
कार्यों को आसानी से कर लेता है। ये कई मायनों में विकास की दृष्टि से काफी
लाभदायक भी है, लेकिन विज्ञान और हर
आविष्कार के दो पहलू होते हैं,
लाभ और हानि। बेशक
आविष्कारों ने इंसानों के लिए काफी चीज़ों को सरल कर दिया है और कई आविष्कार तो मानव-जगत् के
लिए वरदान साबित हुए हैं,
लेकिन इनमें से कई
आविष्कारों के आवश्यकता से अधिक उपयोग ने मानव के जीवन और पृथ्वी पर नकारात्मक
प्रभाव डाला है, जिससे पृथ्वी के साथ ही
इंसान का अस्तित्व विनाश की ओर तेजी से बढ़ रहा है। इसमें एक आविष्कार प्लास्टिक
है। जिसका लाभ तो हर कोई लंबे समय से उठा रहा है, लेकिन किसी ने सोचा नहीं था कि ये अकल्पनीय आविष्कार
एक दिन अभिशाप बना जाएगा और धरती,
हवा, पानी और अंतरिक्ष तक में इंसानों के साथ ही
जीव-जंतुओं की सांसों और भोजन में ज़हर घोलने का कार्य करेगा। ये विडंबना ही है कि
प्लास्टिक के नुकसान के बारे में पता होने के बावजूद भी हमने इससे परहेज नहीं किया
और भोजन रखने, पैक करने आदि में इसको
उपयोग करने लगे। नतीजन, हानिकारक प्लास्टिक को
हमारे शरीर के अंदर पहुँचने का एक और माध्यम मिल गया। जिसे फूडपैकेजिंग और ऑनलाइन
फूड डिलीवरी ने और बढ़ा दिया है। इससे पर्यावरण को भारी क्षति पहुँच रही है।
विज्ञान और आविष्कार ने लोगों को इतना आलसी बना दिया कि अब हर प्रकार का पंसदीदा भोजन घर तक भेजा जाने लगा है। भोजन की ऑनलाइन डिलीवरी करने वाली कई ऑनलाइन कंपनियाँ खुल गई हैं, जो लोगों को आकर्षित करने के लिए समय-समय पर विशेष ऑफर तक देती हैं। हालाकि इसमे कोई समस्या नहीं है और सुविधा पाना तथा रोजगार करना सभी का अधिकार है, लेकिन समस्या तब खड़ी होती है, जब गरमागरम खाने को प्लास्टिक की थैलियों और डिब्बों के पैक किया जाता है, तो वहीं रोटियों को एल्युमिनियमफॉयल में पैक किया जाता है। इससे गरम चीज के सम्पर्क में आते ही प्लास्टिक के डिब्बे में लगा कैमिकल हमारे शरीर में घुल जाता है और धीरे-धीरे शरीर को नुकसान पहुँचाता है। उसी प्रकार एल्युमिनियम धीमे जहर का काम करता है। प्लास्टिक की थैलियों या प्लास्टिक के डिब्बे में खाना खाने से प्लास्टिक के साथ ही हमारे शरीर में कई हानिकारक कैमिकल पहुँच जाते हैं, इसमें सबसे खतरनाक ‘एंडोक्रिनडिस्ट्रक्टिंग’ केमिकल होता है, जो कि एक प्रकार का जहर है, जो हार्मोंस को असंतुलित कर देता है। इससे हार्मोंस काम करने की क्षमता खो देते हैं। ये धीमे जहर की तरह ही काम करता है और लंबे समय तक प्लास्टिक के बर्तनो में खाना खाने से कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। साथ ही अन्य बीमारियाँ होने की संभावना भी बनी रहती है, जिससे इंसान की मौत भी हो सकती है। वहीं माइक्रोवेव में भी प्लास्टिक के डिब्बे में खाना गर्म करने पर केमिकल खाने में मिल जाता है। कई रिसर्च में सामने आया है कि प्लास्टिक फूडकंटेनर्स के केमिकल्स से ब्रेस्ट कैंसर होने का खतरा रहता है। इससे पुरुषों में स्पर्मकाउंट घटने की संभावना बढ़ जाती है। गर्भवती महिलाओ और बच्चों के लिए भी यह नुकसानदेह है। प्लास्टिक बोतल में पानी जमाने या लंबे समय तक प्लास्टिक की बोतल में पानी पीने से भी कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। एक ही प्लास्टिक बोतल का बार बार उपयोग करना भी कैंसर का कारण बन सकता है।
कई कंपनियाँमाइक्रोवेवसेफ और बीपीए-फ्री
प्लास्टिक प्रोडक्ट बनाती हैं,
लेकिन ये भी सुरक्षित
नहीं है और इनमे खाना खाने से बीमारी का खतरा बना रहता है, क्योंकि कंपनियों का ये केवल मार्केटिंग का एक तरीका
है। आजकल एक नया ट्रेंड भी चला है जिसमें फलों, ड्राइफ्रूट आदि को प्लास्टिक में रैप किया जाता है। इसकी एक
प्रक्रिया में सामान को पतली पन्नी में डाला जाता है और उसे हीट देकर फल आदि से
चिपका दिया जाता है, इससे पैकिंग के अंदर गैस
नहीं रहती है और सामान काफी दिनों तक चलता है, लेकिन इससे सेहतमंद इन फलों में कैमिकल के रूप में
प्लास्टिक का जहर छूट जाता है। कई शोध में तो एल्युनिनियम के नुकसान के बारे में
भी चेताया गया है। दरअसल एल्युनिनियम के इस्तेमाल से इनटेकअल्जाइमर हो सकता है।
रोजाना एल्युमिनियम का उपयोग करने से ब्रेन सेल्स की विकास दर घट जाती है। लेकिन
ऑनलाइन भोजन में सिंगलयूज प्लास्टिक की थैलियाँ और प्लास्टिक के डिब्बों का उपयोग
किया जाता है। इस भोजन को खाने से हमारा पेट तो भरता है, लेकिन प्लास्टिक के सम्पर्क में आने के बाद खाने में
मिला केमिकल हमें धीरे-धीरे बीमारी दे जाता है। वहीं इस सिंगलयूज प्लास्टिक को
कूड़ेदान या खुले में फेंका जाता है।
सिंगलयूज होने के कारण इसे रिसाइकिल
भी नहीं किया जाता सकता। जिससे ये जहाँ- तहाँ फैल रहा है। बरसात और हवा से
नदियों और नालों में चले जाता है और वहाँ से समुद्र में। वैसे भी दुनिया भर का
प्लास्टिक वेस्ट पहले ही समुद्र के एक बहुत बड़े हिस्से में फेंका जाता है, जिससे जलीय जीवन प्रभावित हो रहा है। प्लास्टिक की इस
बढ़ती समस्या को देखते हुए दुनिया के सभी देशों ने अपने अपने स्तर पर प्लास्टिक के
खिलाफ जंग छेड़ दी है। कई संगठन और लोग भी अपने-अपने स्तर पर कार्य कर रहे हैं।
भारत भी सिंगलयूज़ प्लास्टिक के खिलाफ दो अक्टूबर को बड़ा निर्णय लेने जा रहा है और
सिंगलयूज प्लास्टिक पर पूरी तरह प्रतिबंध
लगा सकता है । जो कि काबिले-तारीफ है, लेकिन देखना ये होगा कि ये निर्णय धरातल पर कितना
लागू किया जाता है। हालाकि प्लास्टिक पर रोक के लिए जनता को भी जागरूक होना होगा
और प्लास्टिक का उपयोग अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए खुद ही बंद करना होगा, क्योंकि शरीर से बड़ी कोई संपत्ति नहीं। वहीं फूड
कंपनियों को भी प्लास्टिक के बजाए मोटे कागज में खाने के सामान को पैक करने की पहल
करनी चाहिए। ( इंडिया वॉटरपोर्टल से )
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