चतुराई, बुद्धिमानी, और
ज्ञान में क्या अंतर है?
चतुराई, बुद्धिमानी और ज्ञानः
ये तीनों एक जैसे ही प्रतीत होनेवाले शब्द हैं लेकिन इनमें सूक्ष्म अंतर है। इसका
पता कैसे चलता है?
घर में दो-तीन छोटे बच्चे हों तो एक
साधारण सा प्रयोग किया जा सकता है। एक डिब्बे में कुछ टॉफ़ी या कैंडी भरकर किचन
में ऊपर की शेल्फ़ में रख दिया जाए जहां बच्चों की पहुंच न हो। फिर उनसे पूछा जाए
कि वे टॉफ़ी कैसे निकालेंगे।
सबसे पहले तो वे यह कहेंगे कि कोई
कुर्सी रखकर किचन के प्लेटफ़ॉर्म पर चढ़कर टॉफ़ी निकाली जा सकती है। यह चतुराई है।
फिर उनसे कहिए कि वे कुर्सी का
इस्तेमाल नहीं कर सकते। उन्हें किसी दूसरे ऑप्शन के बारे में सोचने के लिए कहिए।
निश्चित ही वे कई तरह के उपाय खोजेंगे। उनके उपाय की सराहना कीजिए लेकिन वह ऑप्शन
भी हटा लीजिए। क्या और कोई ऑप्शन बचे हैं? आप यह जानकर हैरान हो जाएँगे कि
बच्चे टॉफ़ी पाने के लिए कितनी तरकीबें लगा सकते हैं। यह बुद्धिमानी है।
और ज्ञान? इसे अब
आसानी से समझाया जा सकता है। भले ही आपके पास हर तरह का उपाय करके टॉफ़ी पाने के
पर्याप्त उपाय हों लेकिन विनम्रता से टॉफ़ी माँग लेने की समझदारी ही ज्ञान है।
चतुर व्यक्ति यह जानता है कि किसी
परिस्तिथि से कैसे बाहर निकला जाए जबकि ज्ञानी व्यक्ति यह जानता है कि उस परिस्थिति
में पड़ने से कैसे बचा जाए।
चतुर व्यक्ति समस्याओं के समाधान
खोजते हैं। बुद्धिमान व्यक्ति उन समस्याओं को समझते हैं। ज्ञानी व्यक्ति हमें यह
बता सकते हैं कि जिसे हम समस्या मानकर चल रहे हैं वह वास्तविकता में समस्या है भी
या नहीं।
चतुर व्यक्ति प्रतिक्रिया करते हैं।
बुद्धिमान व्यक्ति कार्रवाई के लिए स्वयं को पहले से ही तैयार रखते हैं। ज्ञानी
व्यक्ति यह जानते हैं कि भूतकाल या वर्तमान की किन घटनाओं के भविष्य में क्या-क्या
परिणाम हो सकते हैं।
बच्चे जन्म से ही चतुर होते हैं। बड़े
होते-होते उनमें चतुराई का स्थान बुद्धिमानी ले सकती है। ज्ञान उम्र और अनुभवों से
आता है।
चतुराई एक उपहार है। अधिकतर
व्यक्तियों को यह उपहार जन्मते ही मिल जाता है।
विभिन्न विषयों की जानकारी होने से
बुद्धिमानी उपजती है। यह सूचनाओं और तथ्यों की प्रोसेसिंग है।
ज्ञान बढ़ती उम्र के साथ परिपक्वता
बढ़ने से आता है क्योंकि इस दौरान हम अपने और दूसरों के अनुभव से सीखते हैं।
कोई चीज कैसे होती है, यह जानना
चतुराई है। कोई चीज क्यों होती है, यह जानना बुद्धिमानी है।
वह जब हमारे या किसी अन्य के साथ घटित होती है तब ज्ञान प्राप्त होता है।
यदि आप यह पूछें कि हम बच्चों को इन
तीनों में भेद बताने के लिए किस तरह सिखा सकते हैं तो…उनमें
भाषा, गणित, विज्ञान और तथ्य आदि
विषयों की समझ विकसित करें और नए-नए अनुभवों से सीखने दें।
और इसका सूत्र क्या है? ज्ञान =
बुद्धिमता + अनुभव
इसी बात को लेखक श्रीनाथ नल्लूरी ने
यह दृष्टांत देकर समझाया हैः
रामायण में बाली के वध के प्रसंग से
सभी परिचित हैं। राम के परामर्श से सुग्रीव बाली को युद्ध के लिए ललकारता है। वे
दोनों जब युद्ध कर रहे होते हैं ,तब राम एक पेड़ के पीछे से तीर चलाकर बाली
का वध कर देते हैं।
हम जानते हैं कि राम बहुत कुशल
धनुर्धर थे और युद्ध-कौशल में बाली से कहीं अधिक निपुण और सक्षम
थे। रामकथा हमें यह भी बताती है कि सुग्रीव ने राम को बाली की शक्तियों का बखान
करते हुए एक वृक्ष में बाली द्वारा छोड़े गए तीर से बने छेद को दिखाया। राम ने उसी
छेद को निशाना मानकर तीर छोड़ा जो उस वृक्ष के पीछे खड़े सात अन्य वृक्षों को भेद
गया।
यह विद्या या कौशल का उदाहरण है।
लेकिन राम यह जानते थे कि बाली को एक
विशेष वरदान प्राप्त था। बाली से लड़नेवाले की आधी शक्ति बाली में चली जाती थी और
बाली उससे बलशाली हो जाता था;इसीलिए राम ने सुग्रीव को भेजा ताकि वह बाली
को उसकी गुफा से बाहर लेकर आए। फिर उन्होंने एक पेड़ की ओट से तीर का प्रहार कर
बाली का वध कर दिया।
यह बुद्धिमानी है।
बुद्धिमानी इस बात में है कि आप अपनी
कला, विद्या
या कौशल का किस प्रकार उपयोग करके वांछित परिणाम प्राप्त कर सकते हैं।
विषयों या तथ्यों की जानकारियां होने
की तुलना आग फैलाने वाले साधनों जैसे तेल, लकड़ी, मोम से
की जा सकती है। बुद्धिमानी वह छोटी सी माचिस की तीली है जो इनमें आग भड़का सकती है।
राम बहुत विवेकवान व्यक्ति थे। वे
जानते थे कि बाली सुग्रीव से कहीं अधिक बलवान और उपयोगी सिद्ध होता। वे यदि चाहते तो
बाली के साथ मिलकर सुग्रीव को परास्त कर सकते थे।
बाली बहुत घमंडी, उग्र और अत्याचारी
था। राम चाहते तो बाली और सुग्रीव के बीच संधि भी करा सकते थे; लेकिन राम ने ऐसा नहीं किया। वे सत्य के साथ खड़े रहे। उन्होंने
नीतिपूर्वक कमज़ोर का साथ दिया। उन्होंने उस पक्ष का साथ दिया जिसके साथ अन्याय
हुआ था। अपने कौशल और बुद्धिमता का प्रयोग करके उन्होंने सुग्रीव को उनका सम्मान
और साम्राज्य वापस दिलाया।
यह ज्ञान है।
सही-गलत, उचित-अनुचित,
धर्म-अधर्म में भेद का बोध होना और उसे महत्तर उद्देश्य के लिए
चतुराई और बुद्धिमता के साथ उपयोग करना ही ज्ञान है। (हिन्दी ज़ेन से)
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