जंगल बसाए जा सकते हैं
-डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन
औद्योगिक विकास और उपभोक्ता माँग के
कारण बढ़ता वैश्विक तापमान दुनिया भर में तबाही मचा रहा है। विश्व में तापमान बढ़ता
जा रहा है, दक्षिण चीन और पूर्वोत्तर
भारत में बाढ़ कहर बरपा रही है,
बे-मौसम बारिश हो रही है, और विडंबना देखिए कि बारिश के मौसम में देर से और
मामूली बारिश हो रही है। इस तरह के जलवायु परिवर्तन को थामने का एक उपाय है तापमान
वृद्धि के लिए ज़िम्मेदार ग्रीन हाउस गैसों, खासकर कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर को कम करना। बढ़ते वैश्विक
तापमान को सीमित करने के प्रयास में दुनिया के कई देश एकजुट हुए हैं। कोशिश यह है
कि साल 2050 तक तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक न हो।
कार्बन डाईऑक्साइड कम करने का एक
प्रमुख तरीका है पेड़-पौधों की संख्या और वन क्षेत्र बढ़ाना। पेड़-पौधे हवा से कार्बन
डाइऑक्साइड सोखते हैं, और सूर्य के प्रकाश और पानी
का उपयोग कर (हमारे लिए) भोजन और ऑक्सीजन बनाते हैं। पेड़ों से प्राप्त लकड़ी का
उपयोग हम इमारतें और फर्नीचर बनाने में करते हैं। संस्कृत में कल्पतरु की कल्पना
की गई है - इच्छा पूरी करने वाला पेड़।

खाद्य एवं कृषि संगठन (FOA) के अनुसार ‘वन’ का मतलब है कम से कम
0.5 हैक्टर में फैला ऐसा भू-क्षेत्र जिसके कम से कम 10 प्रतिशत हिस्से में पेड़ हों, और जिस पर कृषि सम्बंधी गतिविधि या मानव बसाहट ना हो।
इस परिभाषा की मदद से स्विस और फ्रांसिसीपर्यावरणविदों के समूह ने 4.4 अरब हैक्टर
में छाए वृक्षाच्छादन का विश्लेषण किया जो मौजूदा जलवायु में संभव है। उन्होंने
पाया कि यदि मौजूदा पेड़ और कृषि सम्बन्धित क्षेत्र और शहरी क्षेत्रों को हटा दें
तो भी 0.9 अरब हैक्टर से अधिक भूमि वृक्षारोपण के लिए उपलब्ध है। नवीनतम तरीकों से
किया गया यह अध्ययन साइंस पत्रिका के 5 जुलाई के अंक में प्रकाशित हुआ है।
यानी विश्व स्तर पर वनीकरण करके जलवायु परिवर्तन धीमा करने की संभावना मौजूद है।
शोधकर्ताओं के अनुसार 50 प्रतिशत से अधिक वनीकरण की संभावना 6 देशों - रूस, ब्राज़ील, चीन, यूएसए, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में है। हालाँकि अभी यह स्पष्ट
नहीं है कि यह भूमि निजी है या सार्वजनिक, लेकिन उन्होंने इस बात की पुष्टि की है कि 1 अरब हैक्टर में
वनीकरण (10 प्रतिशत से अधिक वनाच्छादन के साथ) संभव है।
खुशी की बात यह है कि कई देशों के कुछ
समूह और सरकारों ने वृक्षारोपण की ओर रुख किया है। इनमें खास तौर से फिलीपाइन्स और
भारत की कई राज्य सरकारें (फॉरेस्टसर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट और डाउन
टू अर्थ के विश्लेषण के अनुसार) शामिल हैं।
भारत का भू-क्षेत्र 32,87,569 वर्ग किलोमीटर है, जिसका 21.54 प्रतिशत हिस्सा वन क्षेत्र है। वर्ष 2015
से 2018 के बीच भारत के वन क्षेत्र में लगभग 6778 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है।
सबसे अधिक वन क्षेत्र मध्यप्रदेश में है, इसके बाद छत्तीसगढ़, उड़ीसा और अरुणाचल प्रदेश आते हैं। दूसरी ओर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में सबसे कम वन क्षेत्र है। आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक,
केरल और उड़ीसा ने अपने
वनों में वृक्षाच्छादन को थोड़ा बढ़ाया है (10 प्रतिशत से कम)। कुछ निजी समूह जैसे
लुधियाना का गुरु नानक सेक्रेडफॉरेस्ट, रायपुर के मध्य स्थित दी मिडिल ऑफ द टाउन फॉरेस्ट, शुभेन्दु शर्मा का अफॉरेस्ट समूह उल्लेखनीय
गैर-सरकारी पहल हैं। आप भी इस तरह के कुछ और समूह के बारे में जानते ही होंगे। (और, हम शतायु सालुमरदातिमक्का को कैसे भूल सकते हैं
जिन्होंने लगभग 385 बरगद और 8000 अन्य वृक्ष लगाए, या उत्तराखंड के चिपको आंदोलन से जुड़े सुंदरलाल बहुगुणा
को?)।
लेकिन वनीकरण की सबसे उम्दा मिसाल है
फिलीपाइन्स। फिलीपाइन्स 7100 द्वीपों का समूह है जिसका कुल भू-क्षेत्र लगभग तीन
लाख वर्ग किलोमीटर है और आबादी लगभग 10 करोड़ 40 लाख। 1900 में फिलीपाइन्स में लगभग
65 प्रतिशत वन क्षेत्र था। इसके बाद बड़े पैमाने पर लगातार हुई कटाई से 1987 में यह
वन क्षेत्र घटकर सिर्फ 21 प्रतिशत रह गया। तब वहाँ की सरकार स्वयं वनीकरण करने के
लिए प्रतिबद्ध हुई। नतीजतन वर्ष 2010 में वन क्षेत्र बढ़कर 26 प्रतिशत हो गया। और
अब वहाँ की सरकार ने एक और उल्लेखनीय कार्यक्रम चलाया है, जिसमें
प्राथमिक, हाईस्कूल और कॉलेज के
प्रत्येक छात्र को उत्तीर्ण होने के पहले 10 पेड़ लगाना अनिवार्य है। कहाँ और
कौन-से पौधे लगाने हैं, इसके बारे में छात्रों का
मार्गदर्शन किया जाता है। (और जानने के लिए देखें –(news.ml.com.ph> of Manila Bulletin,
July 16, 2019)। इस प्रस्ताव के प्रवर्तक गैरीएलेजैनो का इस बात पर ज़ोर
था कि शिक्षा प्रणाली युवाओं में प्राकृतिक संसाधनों के नैतिक और किफायती उपयोग के
प्रति जागरूकता पैदा करने का माध्यम बननी चाहिए ताकि सामाजिक रूप से ज़िम्मेदार और
जागरूक नागरिकों का निर्माण हो सके।
यह हमारे भारतीय छात्रों के लिए एक
बेहतरीन मिसाल है। मैंने सिफारिश की है कि इस मॉडल को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019
में जोड़ा जाए, ताकि हमारे युवा
फिलीपाइन्स के इस प्रयोग से सीखें और अपनाएँ।
No comments:
Post a Comment