एक छात्रा की मुहिम
अभी भी समय है सँभल जाएँ
-जाहिद खान
16 साल की स्वीडिश पर्यावरण
एक्टिविस्ट ग्रेटा अर्नमैन थनबर्ग का नाम आजकल पूरी दुनिया में चर्चा में है। वजह पर्यावरण
को लेकर उसकी विश्वव्यापी मुहिम है। अच्छी बात यह है कि जलवायु परिवर्तन और उसके
दुष्प्रभावों के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए ग्रेटा ने जो आंदोलन छेड़ रखा
है, उसे अब व्यापक जनसमर्थन मिल रहा है। पर्यावरण बचाने
के इस आंदोलन में लोग जुड़ते जा रहे हैं। खास तौर से यह आंदोलन बच्चों और नौजवानों
को खूब आकर्षित कर रहा है।
बीते 20 सितंबर को शुक्रवार के दिन
दुनिया भर में लाखों स्कूली बच्चों ने जलवायु -संकट की चुनौतियों से निपटने के कदम
उठाने का आह्वान करते हुए प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में उनके साथ बड़े लोग भी
शामिल हुए। ग्रेटा की इस मुहिम का असर दुनिया भर में इतना हुआ है कि अमेरिका में न्यूयार्क
के स्कूलों ने अपने यहाँ के 11 लाख बच्चों को खुद ही शुक्रवार की छुट्टी दे दी
ताकि वे ‘वैश्विक जलवायु हड़ताल’ में शामिल हो सकें। ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न शहर
में करीब 1 लाख लोग इस मुहिम से जुड़े। भारत में भी कई बड़े शहरों के अलावा राजधानी
दिल्ली में स्कूली बच्चों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर
लोगों का ध्यान इस समस्या की ओर दिलाया।

ग्रेटाथनबर्ग का यह आंदोलन बच्चों में
इतना कामयाब रहा कि आज आलम यह है कि पर्यावरण बचाने के इस महान आंदोलन में लाखों
विद्यार्थी शामिल हो गए हैं। इसी साल 15 मार्च के दिन, दुनिया के कई शहरों में विद्यार्थियों ने एक साथ
पर्यावरण सम्बन्धीप्रदर्शनों में भाग लिया और भविष्य में भी प्रत्येक शुक्रवार को
ऐसा करने का फैसला किया है। अपने इस अभियान को उसने ‘फ्राइडेज़फॉरफ्यूचर’ (भविष्य
के लिए शुक्रवार) नाम दिया है। शुक्रवार के दिन बच्चे स्कूल जाने की बजाय सड़कों पर
उतरकर अपना विरोध दर्ज करते हैं ताकि दुनिया भर के नेताओं, नीति निर्माताओं का ध्यान पर्यावरणीय संकट की तरफ जाए, वे इसके प्रति संजीदा हों और पर्यावरण बचाने के लिए
अपने-अपने यहां व्यापक कदम उठाएँ। ज़ाहिर है, यह एक ऐसी मुहिम है जिसका सभी को समर्थन करना चाहिए; क्योंकि
यदि दुनिया नहीं बचेगी,
तो लोग भी नहीं बचेंगे।
अपनी इस मुहिम से ग्रेटा ने जो सवाल उठाए हैं और वे जिस अंदाज़ में बात करती हैं, उसका लोगों पर काफी असर होता है। वे अपने भाषणों में
बड़ी-बड़ी बातें नहीं कहतीं, छोटी-छोटी बातों और
मिसालों से उन्हें समझाती हैं। मसलन “हमारे पास कोई प्लेनेट-बी यानी दूसरा ग्रह
नहीं है, जहाँ जाकर इंसान बस जाएँ। लिहाज़ा हमें हर हाल में
धरती को बचाना होगा।’’

इस मुहिम का असर आहिस्ता-आहिस्ता ही
सही, दिखने लगा है। आम लोगों से लेकर सियासी लीडर तक
ग्रेटा की इन चिंताओं में शरीक होने लगे हैं। ग्रेटा से ही प्रभावित होकर दुनिया
भर के तकरीबन 2000 स्थानों पर पर्यावरण को बचाने के लिए प्रदर्शन हो रहे हैं। अपना
कामकाज छोड़कर, लोग सड़कों पर निकल रहे
हैं। ब्रिटेन में पिछले दिनों लाखों लोगों ने ग्रेटाथनबर्ग के साथ सड़कों पर इस माँग
के साथ प्रदर्शन किया कि देश में जलवायु आपात काल लगाया जाए। इस प्रदर्शन का नतीजा
यह रहा कि ब्रिटेन की संसद को देश में जलवायु आपात काल घोषित करने का फैसला करना
पड़ा। ब्रिटेन ऐसा अनूठा और ऐतिहासिक कदम उठाने वाला पहला देश बन गया।
ग्रेटा अपनी बात लोगों तक पहुँचाने के
लिए सिर्फ उनके बीच ही नहीं जाती,
बल्कि ट्विटर जैसे सोशल
मीडिया का भी जमकर इस्तेमाल करती है। उसे मालूम है कि आज का युवा अपना सबसे ज़्यादा
वक्त इस माध्यम पर बिताता है।
ग्रेटा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
को भी एक वीडियो संदेश भेजा था। इसमें गुज़ारिश की थी कि वे पर्यावरण बचाने और जलवायु
परिवर्तन के संकटों से उबरने के लिए अपने देश में गंभीर कदम उठाएँ।

ग्लोबलवार्मिंग के प्रति जागरूकता
फैलाने के लिए ग्रेटाथनबर्ग को इतनी कम उम्र में ही कई सम्मानों और पुरस्कारों से
नवाज़ा जा चुका है। एमनेस्टी इंटरनेशनल के ‘एम्बेसडर ऑफ कॉन्शिएंसअवॉर्ड, 2019’ के अलावा दुनिया की प्रतिष्ठित टाइम मैगज़ीन ने
ग्रेटा को साल 2018 के 25 सबसे प्रभावशाली किशोरों की सूची में शामिल किया। यही
नहीं, तीन नॉर्वेजियन सांसदों ने पिछले दिनों ग्रेटा को
नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया था।
इस समय पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन
के गंभीर संकट से जूझ रही है। यूएन की एक रिपोर्ट बतलाती है कि दुनिया भर के 10
में से 9 लोग ज़हरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। हर साल 70 लाख मौतें वायु
प्रदूषण की वजह से होती हैं। इनमें से 40 लाख एशिया के होते हैं। जलवायु परिवर्तन
की वजह से होने वाले खराब मौसम की वजह से हमारे देश में हर साल 3660 लोगों की मौत
हो जाती है। लैंसेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के चलते 153 अरब कामकाजी
घंटे बर्बाद हुए हैं जिसके चलते उत्पादकता में भी भारी कमी आई है और पूरी दुनिया
को 326 अरब डॉलर का नुकसान पहुँचा है। इसमें 160 अरब डॉलर का नुकसान तो सिर्फ भारत
को ही हुआ है।

No comments:
Post a Comment