बोझ
-डॉ. शिवजी श्रीवास्तव
इकतारे पर एक बिलकुल नए फिल्मी गीत की
धुन सुनकर मैं चौंका, मैं ही क्या शायद गली में और भी लोग चौंके
होंगे ; क्योंकि अब तक सब लोग वही एक पुरानी धुन……‘‘इक
परदेसी मेरा दिल ले गया’’ सुनने के अभ्यस्त हो चुके थे। शम्भू फेरी वाला पिछले बीस
वर्षों से वही एक धुन बजाता चला आ रहा है। इन बीस वर्षों में बहुत कुछ बदल गया पर
नहीं बदली थी तो उसके इकतारे की धुन। जब हम लोग छोटे थे तब उसके इकतारे की धुन
सुनकर पागलों की तरह घर से बाहर की ओर दौड़ पड़ते थे, सारी गली
के बच्चे शम्भू को घेरे हुए उसके साथ-साथ चलते, उससे गाने की
धुन सीखते और घर आकर जिद करके इकतारा खरीद लेते, और वही धुन
बजाने का प्रयास करते,लाख कोशिशों के बाद भी हम बच्चों से वह
धुन नहीं निकलती। दो-चार दिनों में इकतारा भी टूट जाता, लोग
शम्भू के प्रति गुस्से का प्रदर्शन करते पर चार छह दिनों बाद गली में फिर से वही
धुन गूँजने लगती और हम सारे बच्चे फिर पागलों की तरह उसके पीछे दौड़ पड़ते।
अम्मा अकसर खीझ उठतीं और शम्भू को खरी-खोटी
सुनातीं कि क्यो वह बार- बार आकर उनका खर्च बढ़ाता है, शम्भू
हँसता रहता फिर बरामदे में बैठ जाता और पानी पीने को माँगता। अम्मा उसे डाँटती भी
जातीं और मुझसे पानी भी लाने को कहतीं,, मैं पानी लाता तो
अम्मा मुझे भी झिड़कतीं-‘‘खाली पानी ले आया, उसके पेट में
लगेगा कि नहीं बेचारा सुबह से घूम रहा है…’’ और तुरन्त ही अम्मा उसे कुछ खाने को
देतीं , फिर शम्भू घण्टों बैठा अम्मा के साथ दुनिया जहान की
बातें करता रहता। अजीब रिश्ता था अम्मा और शम्भू का। गली भर में केवल अम्मा ही
शम्भू को डाँटतीं और शम्भू भी गली भर में केवल अम्मा से ही अपने सुख -दुःख की बातें करता था …पर…पर ये तो सब बहुत पुरानी बातें हैं।
इन बीस सालों में बहुत कुछ बदल गया, हम किशोर से युवा होने लगे, शम्भू के चेहरे पर भी झुर्रियाँ पड़ गईं पर नहीं बदली तो उसके गाने की
धुन। अब घर घर में टी-वी- आ गया था उन्माद पैदा करने वाली धुनें आ गई
थीं…छोटे-छोटे बच्चे भी नई धुनों पर थिरकने लगे थे अतः शम्भू की इक परदेसी की धुन
किसी को पसंद नहीं आती,फिर भी इकतारे का आकर्षण बच्चों को
खींचता था, वे शम्भू से नई-नइ धुनें बजाने का आग्रह करते तो
उसके चेहरे पर एक खिसियाहट आ जाती। वह चुपचाप आगे बढ़ जाता। धीरे-धीरे बच्चों की
भीड़ उससे दूर हटती गई, अब वह यदा कदा ही गली में दिखाई पड़ता।
पहले वह अम्मा के पास आकर अपना दुखड़ा रो लेता था,पर अब अम्मा
उसे देखते ही घृणा से मुँह फेरकर कहतीं…
‘‘हत्यारा कहीं का’’…और शम्भू भी जब
हमारे घर के सामने से निकलता, तो उसका इकतारा खामोश हो जाता…; इसीलिए आज अचानक इकतारे की धुन सुनकर मैं चौंक गया बाहर झाँककर
देखा-बारह-तेरह वर्ष की एक लड़की इकतारे पर एक नई धुन बजा रही है , शम्भू अपने सर में एक डलिया में इकतारे रखे उसके साथ चल रहा है। गली के
बच्चे उस लड़की को घेरे हुए हैं और लड़की इकतारे पर एक से एक नई धुनें निकाल रही
है…उसके इकतारे बिकते जा रहे हैं। लड़की को पहले नहीं देखा था, पर अचानक ही समझ गया…ओह!, तो ये वही लड़की है जिसके
मरने की कामना शम्भू किया करता था…जिसके कारण अम्मा उसे हत्यारा कहा करतीं…-मेरे
सामने अतीत के पृष्ठ खुलने लगे।
...जब यह लड़की पैदा हुई थी… नहीं ये तो बहुत बाद की बात है…मेरा बचपन
शम्भू के जीवन की एक एक घटना का साक्षी है।आज भी शम्भू के हर्ष-विषाद के एक एक
क्षण मेरी स्मृतियों में अंकित हैं …शम्भू की शादी हुई थी ,तब
वह अपनी पत्नी को लेकर हमारे घर आया था,अम्मा का आशीर्वाद
लेने । अम्मा ने उसे मुँह दिखाई में साड़ी-ब्लाउज,रुपये और
मिठाई दी थी, मैंने भी घूँघट की ओट से झाँकती हुई शम्भू की
बहू को देखने का असफल प्रयास किया था …पूरा चेहरा तो नहीं देख पाया था, पर घूँघट की ओट से झाँकती उसकी बड़ी -बड़ी आँखों को मैं कभी नहीं भूल
पाया।उस दिन शम्भू ने मुझे मुफ़्त में एक इकतारा दिया था और देर तक बैठकर इकतारे पर
गाने की धुन बजाना सिखाता रहा था।उसके बाद एक-एक कर शम्भू के तीन लड़के हुए... हर
बार शम्भू ने मुझे मुफ़्त में इकतारा दिया था ओर वह खुश होकर सारी गली में नाचता
फिरा था।
मैं शम्भू से अकसर पूछने लगा था-‘‘शम्भू तेरी
बहू के लड़का कब होगा…’’-अम्मा मुझे डाँटतीं पर शम्भू मुस्करा देता और कहता कि भैया
अबकी से मैं तुम्हें दस इकतारे दूँगा। और एक दिन शम्भू ने मुझे आश्वासन दिया कि
बहुत जल्दी मुझे दस इकतारे मिलने वाले हैं… सारी गली को मालूम हो गया था कि शम्भू
की बहू के लड़का होने वाला है…पर हुई लड़की… -शम्भू के चेहरे पर मुर्दनी- सी छा
गई…वह बहुत उदास हो गया था,उससे अधिक उदास हुआ था मै;क्योंकि मेरे दस इकतारे जो मारे गए थे।
शम्भू कई दिनों तक गली में नहीं आया, और जब
आया भी तो कई दिनों तक उसके इकतारे से उदासी भरी धुन निेकलती रही। अम्मा
टोकतीं-‘‘अरे शम्भू! इतना उदास क्यों रहता है? लड़की तो
लक्ष्मी होती है लक्ष्मी...’’
शम्भू फीकी हँसी हँस देता-मैं उदास
कहाँ हूँ अम्मा... फिर क्षण भर रुककर कहता... पर एक बात तो है अम्मा, लड़के बड़े
होकर सहारा बनते हैं, काम-काज में हाथ बँटाते हैं.. बुढ़ापे
की लकड़ी होते हैं, पर लड़की तो बस बोझ होती है बोझ…
अम्मा झिड़कतीं -‘‘कैसी बात करता है रे, आज के
जमाने में लड़के-लड़की सब बराबर होते हैं…लड़कियों में जितनी माया-ममता होती है उतनी
लड़कों में नहीं होती। आजकल लड़कियाँ भी पढ़-लिखकर कितना आगे बढ़ रहीं है।’’
शम्भू ठण्डी साँस भरकर कहता-‘‘...तो
भी अम्मा होती तो कर्जा ही हैं…’’ इतना कहकर इकतारे पर उदासी भरी धुन छेड़कर आगे बढ़
जाता।
अब शम्भू गली में बहुत कम दिखता, लोग
बताते कि वह खूब नशा करता है और अपनी बीबी से मारपीट करता है । रोज-रोज की किचकिच
से तंग आकर एक दिन उसकी बीबी ने कुएँ में कूदकर अपनी जान दे दी, तब लड़की बरस भर की भी नहीं थी। उसी दिन से अम्मा ने उसे हत्यारा कहना
शुरू कर दिया था। अम्मा मानती थीं कि इसकी बीवी अपने आप कुएँ में नहीं कूदी होगी ,
इसी ने ढकेल दिया होगा।
बहुत दिनों बाद शम्भू अपने लड़कों को लेकर आया, तो अम्मा
क्रोध से बोलीं-‘‘हत्यारे, बिटिया को कहाँ छोड़ आया, ?
उसकी माँ को तो मार ही दिया क्या उसे भी मार डाला?’’
उस दिन शम्भू ने अम्मा का लिहाज नहीं किया तीखे
स्वर में बोला-‘‘मरती भी तो नहीं ससुरी, मरे तो छुट्टी मिले।’’
‘‘तेरा दिमाग चल गया है, जो ऐसी बात कर रहा है-’’अम्मा के क्रोध का पारा चढ़ रहा था-‘‘आखिर किसके
घर लड़कियाँ पैदा नहीं होतीं…सब लड़कियों को मार ही देते हैं क्या?’’
शम्भू चुप हो गया फिर सर झुकाकर
बोला-‘‘मेरे खानदान में किसी को लड़की नहीं है, पता नहीं मेरे घर में ये
करमजली…’’अम्मा बात काटती हुई बोलीं-‘‘ओफ़्फ़ो…बहुत बोझ लग रही हो लड़की, तो मुझे दे दे मैं पाल लूँगी, माँ को तो मार ही
डाला, बच्ची को मत मारना।’’
‘‘ मैं हत्यारा नहीं हूँ अम्मा, पर कुछ भी कहो, लड़की होती तो बोझ ही है, खिला-पिलाकर,पाल-पोसकर बड़ा करो फिर दूसरे घर भेज दो, अरे वही खर्चा लड़कों पर करो तो बड़े होकर कुछ काम तो आएँगे।’’…इतना कहते
कहते शम्भू ने जोर से इकतारे का तार खींचा,तार खट की आवाज के
साथ टूट गया…और शायद अम्मा और शम्भू के बीच का रागात्मक तार भी उसी दिन टूट गया।
धीरे-धीरे शम्भू ने गली में आना छोड़ दिया, और अगर आता भी
होगा , तो हमारे घर नहीं आता था। हम लोग भी शम्भू को लगभग
भूल ही गए थे।
…पर आज वर्षों बाद शम्भू को बिटिया के साथ देखकर मैं चौंक गया, मैंने अम्मा से कहा-‘‘ अम्मा, शम्भू अपनी बिटिया के
साथ गली में आया है…इतना अच्छा इकतारा वही बजा रही है।’’ अम्मा बोलीं-‘‘ बुलाना तो
जरा शम्भू को।’’
शम्भू आया तो अम्मा के पैरों पर गिरकर
फफक-फफककर रो पड़ा, जब कुछ शान्त हुआ, तो
अम्मा ने धीरे से कहा-‘‘ये वही लड़की है न शम्भू…और तेरे लड़के कहाँ हैं…?’’
‘‘हाँ ,अम्मा यही
है मेरी लक्ष्मी,...’’ कहते कहते उसकी
रुलाई फूट पड़ी-‘‘सच अम्मा,आप सही ही कहती थीं लड़कियों में
बड़ी माया -ममता होती है…लड़कों की जात बड़ी नालायक होती है…एकदम मतलबी…मैंने लड़कों को पढ़ाया-लिखाया,काबिल बनाया…जब हाथ
बँटाने का समय आया , तो ससुरे मेरी सारी जमा-पूँजी लेकर भाग
गए,सुना है दिल्ली में टैक्सी चलाते हैं,मुझे टी-बी- हो गई थी पर उन लोगो ने कोई खबर नहीं ली…तब इसी लड़की ने जिसे
मैं पानी पी-पीकर कोसता था…मुझे नई जिन्दगी दी।’’
एक क्षण को वह रुका,आँसू
पोंछे,फिर बोला-‘‘पता नहीं अम्मा, इसने
इतना अच्छा इकतारा बजाना कैसे सीख लिया, जब मैं बहुत ही
बीमार हो गया तो यह वहीं सड़क के किनारे बैठकर इकतारा बजाकर बेचती थी,इसकी नई धुनों के कारण खूब बिक्री बढ़ी।अम्मा ये इकतारा बनाती भी थी,बेचती भी थी…मेरी सेवा भी करती थी।इस नन्ही-सी जान
ने बहुत मेहनत की ,तभी मैजिन्दा बच पाया। मैं बेकार लड़कों के
पीछे पागल था अम्मा ! मुझे आपकी बातें रह-रह के याद आतीं थीं।सच कहूँ अम्मा आज मैं आपसे ही मिलने आया था ;पर हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि कैसे मुँह दिखाऊँ--।आपने अच्छा किया ,जो मुझे बुला लिया।मेरे मन का बोझ हल्का हो गया।’’
इतना कहते-कहते वह फिर रो पड़ा अम्मा ने उसे
स्नेह से फटकारा-‘‘अब काहे को रोता है रे, इतनी गुणी लड़की है तेरी…’’
बाहर खड़ी उसकी लड़की मुस्कराई और उसने इकतारे पर
एक मस्ती भरी धुन छेड़ दी, वातावरण का सारा विषाद उसमें धुल गया और
गली के सारे बच्चे उल्लास में भरकर नाचने लगे।
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