-
रामकुमार आत्रेय
चिड़िया
पिछले दो दिनों से शीतल को परेशान किए जा रही
थी। वह घास का एक-एक तिनका चोंच में लातीं और उसे छत पर लटकते पंखे पर जमा कर
घोंसला बनाने लगी। इस प्रयास में कुछ तिनके फर्श पर गिर जाते जो बुरे लगते। शीतल
को उन्हें बार-बार बुहारना पड़ता। चिड़िया को भी बार-बार उड़ाना पड़ता सो अलग। वैसे भी वह
नहीं चाहती थी कि चिड़िया पंखे पर घोंसला
बनाए। कमरे में पोंछा लगाने के बाद ठंडे मौसम में भी पंखा चलाना पड़ता था,
ताकि फर्श जल्दी से सूख जाए। पंखा
चलाने पर चिड़िया और उसके अण्डों का फर्श
पर गिरना लाजमी था। चिड़िया थी कि मान ही
नही रही थी।
आज दोपहर बाद जब पति-पत्नी लौटे तो यह देखकर हैरान रह गए कि
घोंसला पूरा बन चुका है।
चिड़िया घोंसले में बैठ अपने में डूबी आराम किए जा रही
थी,
मानो माँ बनने वाली हो। सुहावना सपना
देख रह हो। शीतल के पति ने कमरे के बाहर पड़ी छड़ी उठाई और उसकी सहायता से चिड़िया को भगाने लगे। एक बार तो छड़ी से डराने पर भी चिड़िया
घोंसले से नहीं उड़ी। चुपचाप दूर खड़ी
शीतल और छड़ी थामे उसके पति को देखती रही। दूसरी बार जब पति ने जोर से चीखते हुए
छड़ी घोंसले की ओर बढ़ाई, तब चिड़िया सहमी-सी उड़ी और रोशनदान में बैठकर निरीह
नजरों से अपने घोंसले को देखने लगी।
इससे पहले कि पति
छड़ी से घोंसले को नीचे गिरा देता, शीतल ने उसे टोका 'प्लीज, घोंसला मत गिराओ।’
'घोंसला नहीं गिराऊँगा,
तो पंखा कैसे चलेगा। तब चिड़िया पंखे के
परों से चोट खाकर भी मर सकती है। यह बहुत ज़िद्दी है,
घोंसला गिराए बिना नहीं मानेगी।’
पति ने अपना हाथ रोक
दिया।
शीतल ने कहा,
“चिड़िया जिद्दी अवश्य
है,
लेकिन इसकी ज़िद एक भले काम के लिए है।
घर बनाना एक भला काम ही तो है। भले काम के लिए की गई ज़िद्द का हमें सम्मान करना
चाहिए। जब तक चिड़िया के बच्चे बड़े नही
होंगे,
पंखा नहीं चलाएँगे।’शीतल ने पति को प्यार से समझाया।
पति का ऊपर को उठा
हाथ,
यह सब सुन कर स्वत:
ही नीचे को हो गया।
सम्पर्क:
864 ए/12,
आजाद नगर,
कुरुक्षेत्र-
136119 हरियाणा, मो. 094162 72588
No comments:
Post a Comment