दहशत
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आरती स्मित
‘शिप्रा!
मैं मौसी से मिलने अस्पताल जा रही हूँ।’
‘ठीक है’
‘...और सुनो, रमेश नाना आएँ तो उन्हें यह पैकेट दे देना।’
‘हाँ, ठीक’
‘अरे!
एक बार आकर देख तो लो,
मैं किस पैकेट की बात कर रही हूँ...
गेम खेलने बैठी है, तो इसे कुछ सूझता ही नहीं,
जाने कब समझेगी!..
शिप्रा...’
‘ओ, आई मम्मी’
शिप्रा कमरे से निकल,
सीढ़ियाँ फलाँगती नीचे माँ के पास जा
पहुँची। रेणु हाथ में पैकेट लिए बेचैनी में दरवाजे के पास चहलकदमी कर रही थी,
बेटी को देखा तो स्थिर हुई।
‘दरवाज़ा ठीक से बंद कर लो। घंटी बजे तो
पहले लेंस से देख लेना फिर खोलना। बिला वजह बाहर मत निकलना। मार्च में ही इतनी तेज़
धूप है मानो लू चल रही है...’
बेटी को हिदायत देती,
अपने आप में बुदबुदाती रेणु मुख्य दरवाज़े
से बाहर निकली। गार्ड ने सलाम ठोका।
‘भैया, डाकिया याकूरियरवाला आए तो कह देना,
मैं बाहर हूँ,
आप लेकर रख लेना।’
‘जी मैडम!’
बाहर सड़क पर थोड़ी
प्रतीक्षा के बाद ही रिक्शा मिल गया तो चैन की साँस लेती हुई रेणु उस पर बैठ राम
मनोहर लोहिया अस्पताल की तरफ चल पड़ी। शिप्रा को अकेले छोड़कर जाने को उसका जी न
होता। उसने वादा किया था कि परीक्षा के बाद वह शिप्रा के साथ साइंस सिटी,
तारामंडल और वाटर पार्क जाएगी, पर अचानक दीदी की बीमारी के कारण योजना धरी की धरी रह गई।
पंकज को भी ऑफिस से छुट्टी कहाँ मिल पाती है कि वो बेटी के साथ समय गुज़ारे। विनोद
नगर की सोसाइटी वैसे तो अच्छी है, पर फिर भी... शिप्रा है तो छोटी बच्ची ही। रेणु अपनी सोच में खोई-
खोई अस्पताल के 4
न.
गेट पर पहुँच गई। रिक्शेवाले की आवाज़ से
तंद्रा टूटी,
हाँ भैया,
बाएँ ले लो...
बस, यही रोक दो... पैसे चुकाकर वह अंदर की तरफ़ बढ़ी और उदास- हताश चेहरों की भीड़ में शामिल हो गई।
शिप्रा माँ के कहे
अनुसार दरवाज़े की लॉक लगा, मोबाइल बगल में रख, गेम खेलने में तल्लीन हो गई। इधर दरवाज़े पर घंटी लगातार बजती
ही जा रही थी,
अनायास उसका ध्यान बजती घंटी पर गया तो
तल्लीनता भंग हुई। रमेश नाना होंगे!
बुदबुदाती हुई वह झटपट सीढ़ियाँ उतरने
लगी। दरवाज़े पर लगे लेंस से देखा, तसल्ली की, फिर दरवाज़ा खोल दिया।
डॉ.
रमेश छियासठ वर्षीय सेवा निवृत्त
एसोशिएट प्रोफेसर थे, पिछले वर्ष ही सेवा-मुक्त हुए। बड़े गीतकार भी थे, रेणु और राकेश से उनकी गहरी आत्मीयता थी। दोनों उन्हें अपना
अभिभावक मानते,
नौ वर्षीया शिप्रा उन्हें नानाजी कहती,
वे भी उससे लाड़ जताते।
नानाजी,
मम्मी ने आपके लिए यह पैकेट दिया है।
अरे,
दरवाज़े से ही लौटा दोगी?
अंदर तो आने दो!
आइए...
झेंपती हुई शिप्रा बोली। वह चाहती थी,
नानाजी जल्दी से जाएँ तो वह गेम आगे
बढ़ाए,
पर कह न सकी।
घर पर कोई नहीं है?
नहीं
मम्मी मौसी से मिलने
गई है,
पापा ऑफिस
और कामवाली बाई?
वो तो सुबह आकर चली
गई। शिप्रा ने लापरवाही से जवाब दिया।
तुम्हें अकेले में
डर नहीं लगता?
नहीं!
.... रात थोड़े ही न है। फिर मम्मी ने कहा
है कि जल्दी आ जाएगी।
नानाजी,
मम्मी ने पैकेट जल्दी पँहुचाने के लिए कहा है।
अच्छा,
एक गिलास पानी तो पिला दो।
फ्रिज़ से पानी की
बोतल निकालती हुई शिप्रा पीछे साया- सा महसूस कर अचानक हड़बड़ा गई, बोतल हाथ से छूट गई, पीछे उससे बिलकुल सटकर डॉ.
रमेश खड़े थे। वो झुके और शिप्रा को
गोद में उठा लिया। गाल, नाक, आँख, माथा... होंठ पर चुंबन की लगातार बारिश से हतप्रभ,
घबड़ाई-
सी शिप्रा जितना छटपटाती,
पकड़ उतनी ही मजबूत होती जाती।
उन्होंने पहले भी उसे दुलारा था, मगर इस तरह नहीं। सोफे पर लिटाई गई वह चीखना चाहती थी,
मम्मी को बुलाना चाहती थी पर जगह से
हिलडुल न सकी। नानाजी की उँगलियाँ साँपिन- सी उसके बदन पर यहाँ -वहाँ रेगती रहीं, होंठ जगह-जगह निशान छोड़ते रहे।
हजारों चींटियों के एक साथ शरीर पर छोड़े जाने की पीड़ा से गुजरती वह कब
बेहोश हो गई,
पता नहीं। नानाजी के बुदबुदाते स्वर
समुद्र में उठनेवाले शोर की तरह रह-रहकर सुनाई देते रहे, शब्द अस्फुट, चेतना विच्छिन्न।
चेतना लौटी तो फ्रॉक
शरीर से अलग था। दर्द बदन में घाव बनकर टीस रहा था। हाथ-पैर बेजान से पड़े रहे,
सिर अब तक घूम रहा था। वह सोचने की
कोशिश करने लगी,
नानाजी ने आज उसे छुआ तो उसे डर क्यों
लगा?
उन्होंने उसे ऐसे क्यों किस किया?
गंदे तरीके से!
वह आगे कुछ याद करने की कोशिश करती पर
नाज़ुक दिमाग दबाव सहने को तैयार न हुआ। वह चीख-चीखकर रोने लगी और रोती -रोती ऊपर कमरे से मोबाइल लाने सीढ़ियों
की ओर बढ़ी। पैर उठ नहीं रहे थे, कटे वृक्ष की तरह शरीर झूलता रहा। वह फिर अचेत होकर वहीं गिर
पड़ी।
शिप्रा!....शिप्रा!!
.... शिप्रा!!!
कभी घंटी बजाती,
कभी दरवाज़े को हाथ से थपथपाती रेणु गुस्से से लाल-पीली होने लगी,
आज इसका गेम खेलना न
भुलाया तो मैं.... उसने फिर घंटी दबाई।
शिप्रा की आँख खुली,
पहले तो उसे सब सपना -सा लगा, मगर एकबारगी शरीर सिहर उठा, माँ की आवाज़ सुन गिरती-पड़ती दरवाज़े की ओर भागी। दरवाजा,
जो कसकर सटा पड़ा था,
अचानक भड़ाक से खुल गया। शिप्रा माँ से
लिपटकर ज़ोर-ज़ोर से रोना चाहती थी, पर गुस्से में खौलती रेणु को बेटी का आँसू से पिघला चेहरा न दिखा,
आवेश में उसने झन्नाटेदार थप्पड़ उसके
गाल पर जड़ दिया। रमेश रेणु के पास खड़े मुस्कुरा रहे थे। थरथराती शिप्रा के
पाँवों में जाने कहाँ से ऊर्जा आई, वह पलटी और बेतहाशा अपने कमरे की तरफ भागी। रेणु चिल्लाती रही,
पर उसने कोई जवाब न दिया। घड़ी ने 5
का घंटा बजा दिया। शाम ढलने लगी। दरवाज़ा
बंद कर तकिये में मुँह घुसाए वह कितनी देर सुबकती रही,
पता नहीं।
एक बार फिर नीचे दरवाजा खुलने की आवाज़ हुई,
शायद नानाजी गए ....
शायद पापा आए!
वह पापा से कहेगी सब कुछ!
मम्मी गंदी है,
उससे बिना कुछ पूछे उसे थप्पड़ मारा,
वह कभी बात नहीं करेगी। ....
नानाजी की शक्ल भी नहीं देखेगी,
कभी नहीं!
कहीं फिर उसके पास आ गए तो?
उनके करीब होने
की कल्पना-मात्र से वह सिहर उठी और रोने लगी,
पहले मुँह दबाकर,
फिर ज़ोर-ज़ोर से।
शिप्रा....
शिप्रा....!!
पापा की आवाज़ सुनकर शिप्रा की आँख
खुली। रोते -रोते वह कब सो गई थी, उसे पता नहीं चला।
रात के दस बज रहे हैं,
तुम्हें डिनर के लिए बुलाने आना पड़ेगा?
दरवाजे को धक्का देते हुए पापा बोले,
और ये दरवाजा बंद करके क्या हो रहा है?
मम्मी बता रही थी,
तुमने नानाजी को देखा, पर बिना हलो किए दौड़कर कमरे में भाग आई। मम्मी के पुकारने पर
भी नहीं रुकी,
..... सब मेरे ही लाड़-
प्यार का नतीजा है।
पापा की रूखी बोली
से वह मासूम इस क़दर सहम गई कि उसने अपने होंठ भींच लिए,
टुकुर-टुकुर पापा का चेहरा निहारती रही,
न बोल फूटे,
न आँसू झड़े। जड़ हो गई वह।
सुबह के नौ बज गए। रेणु जल्दी -जल्दी काम निबटाने में लगी रही ताकि
पति के साथ ही गाड़ी से अस्पताल जा सके।
जल्दी करो रेणु!
मुझे देर हो रही है!
हाँ, अभी आई!
शिप्रा -ओ शिप्रा ! नौ बज रहे हैं, उठना नहीं है क्या? रेणु ने सीढ़ी से ज़रा नाराजगी भरे स्वर में आवाज़ लगाई। बार-बार पुकारने के बाद भी जब कोई जवाब
नहीं मिला तो बड़बड़ाती हुई उसके कमरे में घुसी। शिप्रा बेहोशी की हालत में कुछ
बड़बड़ा रही थी,
रेणु ने सिर पर हाथ रखा तो चौंक पड़ी,
उसका बदन बुखार से जल रहा था। आँखें
बंद थी,
बदन रह-रहकर सिहर रहा था। बेटी की यह हालत देख
रेणु सारी नाराजगी भूल गई। घबड़ा कर पति को आवाज़ लगाई। डॉक्टर बुलाए गए,
दवा के साथ कुछ नसीहतें भी मामी-
पापा को दी गई। क्या,
ये शिप्रा सुन नहीं पाई। डॉ.
को विदा कर और दवा लेकर थोड़ी देर बाद
पापा फिर कमरे में आए। मम्मी तब तक सिराहने बैठी उसका सिर सहलाती रही,
मगर उनका ध्यान कहीं और था,
शायद कुछ सोच रही थी,
शायद मौसी के बारे में...
शायद उसके बारे में!
इसे इस हालत में छोड़कर जाना ठीक नहीं। पापा
बोले।
मेरा दिल भी इसे छोड़कर जाने का नहीं हो रहा,
क्या आप अस्पताल जा सकेंगे?
मैं पहले ही ऑलरेडी लेट हो चुका हूँ। पापा ने
विवशता ज़ाहिर की। फिर कुछ सोचते हुए बोले रमेश अंकल को थोड़ी देर के लिए क्यों
नहीं बुला लेती! शिप्रा को कंपनी मिल जाएगी और तुम भी निश्चिंत होकर जा सकोगी।
अरे हाँ, यही ठीक रहेगा। चैन की सांस लेती हुई रेणु बोली।
अर्धचेतन
अवस्था में पड़ी, बुखार से तपती शिप्रा अचानक चीखने लगी,
नहीं, मुझे किसी और के साथ नहीं रहना।
लेकिन,
इस हाल में हम तुम्हें अकेले छोड़ भी
तो नहीं सकते!
मुझे अकेले भी नहीं रहना,
उनके साथ भी नहीं-
नहीं, नहीं! नहीं कभी नहीं!!
शिप्रा!
ऐसे ज़िद नहीं करते बेटा!
मम्मी मौसी से मिलकर जल्दी आ जाएगी,
फिर नानाजी तो तुम्हें बहुत प्यार करते
हैं॥
इसलिए तो नहीं रहना!
कमजोर शिप्रा पूरी ताक़त
से चीख पड़ी। उसका शरीर थरथराने लगा। रेणु को जैसे लकवा मार गया...
गूँगी मूरत-सी वह वहीं दरवाज़े के पास धप्प से बैठ
गई। पापा का मुँह खुला का खुला रह गया!
कहानी के समापन के
साथ ही इंटर कॉलेज का सभागार तालियों की गडगड़ाहट से गूँज उठा। सोलह वर्षीया
स्वाति को यौन शोषण पर इतनी यथार्थपरक कहानी के लिए मंच पर ही बधाइयाँ मिलने
लगीं। कहानी -
पाठ के अंदाज़ ने कइयों की आँखें नम की
तो कई हमउम्र,
सिसकियाँ भरने लगीं थीं। सुप्रिया
टुकटुक बेटी को देखती रही, जिसके तन पर तो उसे कोई जख्म
नहीं दिखा था पर उसके बाल मन पर इतना गहरा ज़ख्म पिछले सात वर्षों से अंदर
ही अंदर नासूर बनता रहा, रिस-रिसकर स्याही बनाता
रहा और उसे ख़बर तक न हुई। वही ज़ख्म आज कहानी बनकर फूट पड़ा। वह अज़नबी
आँखों से बेटी को देखती रही, उसके अंतस् में उतरने का साहस अब उसमें न रहा। बच्ची की ज़िद
को छोटी घटना समझकर वो दम्पती जिसे भूल
चुके थे,
उसी ने उसकी लाडो को इतना परिपक्व बना
दिया कि....
।
तालियों की गडगड़ाहट में उसे नन्ही स्वाति की
वही चीख सुनाई देती रही- इसलिए तो नहीं रहना! ए- ब्लॉक के खन्ना अंकल का चेहरा स्वाति के चेहरे पर धीरे-धीरे उगने लगा था।
सम्पर्क: डी 136,तृतीय तल,
गली न, 5, गणेश नगर पांडव नगर कॉम्प्लेक्स,
दिल्ली-110092,
मो.
08376836119
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