सच्चा मोती साबूदाना
- जवाब
मिला साहब, साबूदाना
है, अभी
व्रत त्योहारों’
का सीजन है इसलिए बाहर रख दिया। यह सुनते ही मित्र को याद आई की उन्हें भी घर के
लिए साबूदाना खरीदना है। संवाद आगे जारी रहा-
भारत में साबूदाना मुख्यत: "टपिओका" (Manihot esculenta) नाम
के कंद से प्राप्त होने वाले स्टार्च से बनाया जाता है। टपिओका को कसावा भी कहते
हैं। बल्कि शायद यह कहना बेहतर होगा कि कसावा के पौधे से टपिओका उत्पन्न होता है।
यह दक्षिण अमरीकी मूल का है और पश्चिम द्वीप समूहों के अतिरिक्त भारत तथा अन्य
देशों में भी बहुतायत से पैदा किया जाता है। वास्तव में टपिओका करोड़ों लोगों के
लिए भोजन का प्राथमिक स्रोत है क्योंकि इसके पौधे अनुपजाऊ भूमि में तथा अल्प वर्षा
वाले जगहों में भी आसानी से पनपते हैं। अभी अभी सुनने में आया है कि तंजानिया में
टपिओका की फसल कीटग्रस्त हो गयी थी परन्तु इसे अपवाद ही माना जाना चाहिए। टपिओका
ही एक ऐसा खाद्य पदार्थ है जिसकी प्रति इकाई भूमि में उत्पादकता सबसे अधिक है और इस मायने में यह विश्व में गरीबों के लिए वरदान है।
माइक्रोसॉफ्ट कारपोरेशन के भूतपूर्व अध्यक्ष बिल गेट्स ने भी कुपोषण को दूर करने में टपिओका के महत्व को
रेखांकित किया है। इसके पोषक तत्वों में
अभिवृद्धि के लिए और अधिक सक्रियता से शोध किये जाने की आवश्यकता पर भी बल दिया
है। इस हेतु उन्होंने अपने न्यासों के माध्यम से एक बड़ी राशि भी उपलब्ध कराने की
पेशकस की है।
भारत में टपिओका का प्रदार्पण 19 वीं सदी
के उत्तरार्ध में हुआ था और इसकी सबसे अधिक खेती केरल, तामिलनाडू
और आन्ध्र प्रदेश में होती है। जैसा पूर्व में कहा जा चुका है, यह केरल
में भी कई लोगों के दैनिक भोजन का एक प्रमुख हिस्सा है। इसे यों ही उबाल कर भी
खाया जा सकता है या फिर सब्जियों के अतिरिक्त पकवान आदि भी बनाए जा सकते हैं। एक
प्रकार से यह आलू का विकल्प है। मछली की करी के साथ टपिओका का बहुत चलन है। टपिओका
के चिप्स बड़े स्वादिष्ट होते हैं और इसके आटे से पापड़ भी बनता है। इसमें प्रोटीन
का अभाव है परन्तु कार्बोहाड्रेट्स की भरमार है। दूसरे पौष्टिक तत्व भी समुचित
मात्रा में पाए जाते हैं।
- पी.
एन. सुब्रमणियन
हमारे मोहल्ले के शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में एक बड़ी दुकान
किराने की भी है,
पहले माले में। जैसे कई दुकानदारों की आदत होती है, उनके भी
बहुत सारे सामान बाहर की ओर बरामदे में सजे रखे थे। उसी के बगल में एक एटीएम भी
लगी है। हमारे एक मित्र एक दूसरे मित्र के साथ पैसे निकालने गए थे। वापसी में
किराने की दुकान के सामने से गुजरना हुआ। मशीन से निकली पर्ची पर ध्यान था इस कारण
सामने रखे बोरे से भिड़ गए। बोरे पर लिखा था 'सच्चा मोती’ दुकानदार को कोसते हुए उन्होंने पूछ लिया
- क्या
रखा है यार इसमें,
अन्दर क्यों नहीं रख लेते

सबसे अच्छा वाला कौनसा होता है।
जवाब मिला यही है।
- क्या
भाव लगा रहे हो
-
250 ग्राम के 15 रुपये
- बहुत
महंगा लगा रहे हो
- साब
ए वन है।
- ठीक
है फिर दे दो 250
ग्राम।
दोनों मित्र नीचे आकर एक दूसरी दुकान के सामने रखी बेंच
पर बैठ गए। उस दिन चर्चा साबूदाने पर केन्द्रित रही। जिस मित्र ने खरीदा था, उनका कहना
था कि इसका पेड़ अपने यहाँ तो नहीं होता। दूसरे ने कहा यह पेड़ पर नहीं होता, बनाया
जाता है। नहीं यार यह पेड़ का बीज है। बहस यों ही चलती रही।
उष्ण कटिबंधीय
प्रदेशों में खास कर दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में ताड़ जैसे कई पेड़ हैं जिनके
तने का गूदा गरीबों
का भोज्य पदार्थ होता है। इनमें 'सागू पाम' (Metro&ylon Palms) के
तनों के गूदे से प्राप्त होने वाला स्टार्च (श्वेतसार) साबूदाना बनाने के लिए
प्रयुक्त होता है। एक और सागो पाम है जो cycads Palms के अंतर्गत वर्गीकृत है परन्तु इस
पौधे का हर हिस्सा जहरीला होता है। यह घर के अन्दर या बागीचे में अलंकरण के लिए
रखा जाने वाला 'सैकस' है।

टपिओका के पौधे तैयार करने हेतु तने के ही कई टुकड़े कर
दिए जाते हैं और मिट्टी में निश्चित दूरी पर रोप दिया जाता है। इसकी कुछ
प्रजातियों में हानिकारक तत्व भी होते हैं परन्तु सफाई की प्रक्रिया से उन्हें दूर
कर लिया जाता है।

तकनीकी रूप में साबूदाना किसी भी स्टार्च युक्त पेड़
पौधों के गूदे से बनाया जा सकता है। चूंकि टपिओका में स्टार्च की भारी मात्रा होती
है, उसे
साबूदाने के उत्पादन के लिए उपयुक्त पाया गया। भारत में इसका उत्पादन 1940 के दशक
में ही प्रारंभ हो चला था। यह पहले तो कुटीर उद्योग था परन्तु अब तामिलनाडू का एक
महत्त्वपूर्ण लघु उद्योग है। संक्षेप में कहा जाए तो पहले कंद के छिलके की मोटी
परत को उतारकर धो लिया जाता है। धुलने के बाद उन्हें कुचला जाता है। निचोड़कर
इकठ्ठा हुए गाढ़े द्रव को छलनियों में डालकर छोटी छोटी मोतियों सा आकार दिया जाता
है। धूप में सुखा लिया जाता है या एक अलग प्रक्रिया के तहत भाप में पकाते हुए एक
और गरम कक्ष से गुजारा जाता है। सूखने पर साबूदाना तैयार।
संपर्क: 23, यशोदा
परिसर, कोलार
रोड, भोपाल
(म.प्र.)
मोबाइल- 09303106753, Email-
palikara@gmail.com
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