संस्कृत के प्रति गहरी आस्था
अगस्त अंक में संस्कृत भाषा के महत्व को दर्शाता आलेख, भाई
लोकेन्द्र के गहन अध्ययन व संस्कृत के प्रति गहरी आस्था का परिचायक है। सच है
संस्कृत से ही अधिकांश भारतीय ही नहीं कई विदेशी भाषाएं भी विकसित हुई हैं। आज
संस्कृत को पीछे करने में अंग्रेजियत भरी राजनीति काम कर रही है।
अनामिका की रचना बेटी होना कभी न खलता.. सुन्दर कविता है
जिसमें उम्मीदों भरी संभावनाएं हैं परंतु काश ऐसा कभी हो। वहीं वीरांगना के नाम को
सार्थक करने वाली कैप्टन सहगल के विषय में इतनी उपयोगी जानकारी देने के लिये श्री
यादव का हार्दिक अभिनन्दन।
-गिरिजा कुलश्रेष्ठ,
girija.kulshreshth@gmail.com
कुशलता से किया गया सामग्री चयन
उदंती अगस्त 2012 का अंक पढ़ा। सामग्री का चयन बहुत
कुशलता से किया गया है। साहित्य की लगभग सभी विधाएं इसमें हैं और वह भी समसामयिक
विषयों पर। फ्रेडशिप डे की पुरजोर वकालत सभी तार्किकता के साथ प्रस्तुत की गई है।
बेहतर होता कि नए-नए आयातित समस्त 'डे’ की एक सूची भी दी जाती तो स्वत: यह स्पष्ट
हो जाता कि बाजारवाद और दिखावटीपन का अनुपात इन सब में कितना अधिक है। अफसोस तो इस
बात का है कि ऐसे डे को हम भारतीय पृष्ठ भूमि से नहीं जोड़ सकते। यदि हम
कृष्ण-सुदामा की दोस्ती की मिसाल देते हैं तो सेक्यूलर वादिता को क्लेश होता है।
फिल्मों में और चुटकुलों में राखी बांधने की अवधारणा का
मजाक उड़ाया जाता है। लड़के लड़की फ्रेडशिप डे तो मनाएँगे पर क्या इसे राखी डे का
रूप भी दे सकते हैं?
-ब्रजेन्द्र श्रीवास्तव,
brijshrivastava@rediffmail.com
बेटी होना कभी न खलता...
अगस्त अंक में यदि बागडोर होती शासन की मेरे हाथों में
के अंतर्गत प्रकाशित रचना बेटी होना कभी न खलता... पढ़कर यही कहना चाहूँगी कि- यही
तो मुश्किल है, अपने
शासन से आप खल-जनों को कैसे दूर रखेंगी। वे तो बिना काज दाहिने-बायें आ खड़े होंगे? सबसे पहले
तो उनसे निबटना है।
-प्रतिभा सक्सेना, Pratibha.Saksena@gmail.com
अनामिका जी की उपरोक्त रचना पर इमरान अंसारी ने उन्हें
बहुत सारी शुभकामनाएं दी हैं, तो कैलाश शर्मा ने काश ऐसा होता करते
हुए इसे एक सुंदर रचना कहा है, वहीं संजय
भास्कर ने अति सुंदर कहते हुए प्रशन्सा की है।
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