शक्ति की देवी
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अनंत सिद्धियाँ देती हैं मां
नवदुर्गा और दस महाविधाओं में काली ही प्रथम प्रमुख हैं।
भगवान शिव की शक्तियों में उग्र और सौम्य, दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दस
महाविधाएँ अनंत सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं। दसवें स्थान पर कमला वैष्णवी
शक्ति हैं, जो
प्राकृतिक संपत्तियों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी हैं। देवता, मानव, दानव सभी
इनकी कृपा के बिना पंगु हैं, इसलिए आगम-निगम दोनों में इनकी उपासना समान
रूप से वर्णित है। सभी देवता, राक्षस, मनुष्य, गंधर्व इनकी कृपा-प्रसाद के लिए
लालायित रहते हैं।
कैसे बनी माँ
पार्वती नवदुर्गा
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार दुर्गा अपने पूर्व जन्म में
प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं। जब दुर्गा का नाम सती था। इनका
विवाह भगवान शंकर से हुआ था। एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन
किया। इस यज्ञ में सभी देवताओं को भाग लेने हेतु आमंत्रण भेजा, किन्तु
भगवान शंकर को आमंत्रण नहीं भेजा।
सती के अपने पिता का यज्ञ देखने और वहाँ जाकर परिवार के
सदस्यों से मिलने का आग्रह करते देख भगवान शंकर ने उन्हें वहाँ जाने की अनुमति दे
दी। सती ने पिता के घर पहुंच कर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम से बातचीत नहीं
कर रहा है। उन्होंने देखा कि वहाँ भगवान शंकर के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ
है। पिता दक्ष ने भी भगवान के प्रति अपमानजनक वचन कहे। यह सब देख कर सती का मन
ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा। वह अपने पति का अपमान न सह सकीं और उन्होंने
अपने आपको यज्ञ में जला कर भस्म कर लिया। अगले जन्म में सती ने नव दुर्गा का रूप
धारण कर जन्म लिया। जब देव और दानव युद्ध में देवतागण परास्त हो गये तो उन्होंने
आदि शक्ति का आह्वान किया और एक-एक करके
उपरोक्त नौ दुर्गाओं ने युद्ध भूमि में उतरकर अपनी रणनीति से धरती और स्वर्ग लोक
में छाए हुए दानवों का संहार किया। इनकी इस अपार शक्ति को स्थायी रूप देने के लिए
देवताओं ने धरती पर चैत्र और आश्विन मास में नवरात्रों में इन्हीं देवियों की
पूजा-अर्चना करने का प्रावधान किया। वैदिक युग की यही परम्परा आज भी बरकरार है।
साल में रबी और खरीफ की फसलें कट जाने के बाद अन्न का पहला भोग नवरात्रों में
इन्हीं देवियों के नाम से अर्पित किया जाता है। आदिशक्ति दुर्गा के इन नौ स्वरूपों
को प्रतिपदा से लेकर नवमी तक देवी के मण्डपों में क्रमवार पूजा जाता है।
माँ दुर्गा का प्रथम स्वरूप शैलपुत्री
माँ दुर्गा अपने
प्रथम स्वरूप में शैलपुत्री के रूप में जानी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय के यहाँ
जन्म लेने से भगवती को शैलपुत्री कहा गया। भगवती का वाहन वृषभ है, उनके
दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल का पुष्प है। इस स्वरूप का पूजन प्रथम
दिन किया जाता है।
माँ दुर्गा का
द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी
भगवती दुर्गा की नौ शक्तियों का दूसरा स्वरूप
ब्रह्मचारिणी का है। ब्रह्म का अर्थ है, तपस्या, तप का आचरण करने वाली भगवती, जिस कारण
उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया, वेदस्तत्वंतपो ब्रह्म, वेद, तत्व और
ताप [ब्रह्म] अर्थ है ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त
भव्य है, इनके
दाहिने हाथ में जप की माला एवं बायें हाथ में कमण्डल रहता है।
माँ दुर्गा का
तृतीय स्वरूप चन्द्रघंटा
भगवती दुर्गा अपनी तीसरे स्वरूप में चन्द्रघंटा नाम से
जानी जाती हैं। नवरात्र के तीसरे दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन किया जाता है। इनका
रूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है, इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचन्द्र
है इसी कारण से इन्हें चन्द्रघंटादेवी कहा जाता है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के
समान चमकीला हैं,
इनके दस हाथ हैं, इनके दस हाथों में खड्ग आदि शस्त्र, बाण आदि
अस्त्र विभूषित हैं। इनका वाहन सिंह है, इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उद्धृत रहने की
होती है इनके घंटे सी भयानक चंडध्वनि से अत्याचारी दानव, दैत्य, राक्षस
सदैव प्रकम्पित रहते हैं।
माँ दुर्गा का
चतुर्थ स्वरूप कूष्माण्डा
भगवती दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है।
अपनी मंद हंसी द्वारा अण्ड अर्थात् ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें
कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारों ओर
अंधकार ही अंधकार परिव्याप्त था तब इन्हीं देवी ने ब्रह्माण्ड की रचना की थी। अत:
यही सृष्टि की आदि स्वरूपा आदि शक्ति हैं। इनके पूर्व ब्रह्माण्ड का अस्तित्व था
ही नहीं। इनकी आठ भुजाएँ हैं। अत: ये अष्टभुजा देवी के नाम से विख्यात हैं। इनके
सात हाथ में क्रमश: कमण्डल, धनुष बाण, कमल, पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा
गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका
वाहन सिंह है।
माँ दुर्गा का
पाँचवाँ स्वरूप स्कन्दमाता
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माँ दुर्गा का
छठा स्वरूप कात्यायनी
माँ दुर्गा अपने
छठे स्वरूप में कात्यायनी के नाम से जानी जाती है। महॢष कात्यायन के यहाँ पुत्री
के रूप में उत्पन्न हुई आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्ल सप्तमी, अष्टमी
तथा नवमी तक तीन दिन उन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का
वध किया था। इनका स्वरूप अत्यंत ही भव्य एवं दिव्य है। इनका वर्ण स्वर्ण के समान
चमकीला, और
भास्वर है। इनकी चार भुजाएँ हैं। माता जी का दाहिनी तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा
में है तथा नीचे वाला वरमुद्रा में, बाई तरफ के ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प
सुशोभित है। इनका वाहन सिंह है।
माँ दुर्गा का
सातवाँ स्वरूप कालरात्रि
माँ दुर्गा अपने
सातवें स्वरूप में कालरात्रि के नाम से जानी जाती है। इनके शरीर का रंग घने अंधकार
की तरह एकदम काला है, सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली
माला है। इनके तीन नेत्र है, ये तीनों नेत्र ब्रह्माण्ड के सदृश्य गोल है, इनसे
विद्युत के समान चमकीली किरणें नि:सृत होती रहती हैं। इनकी नासिका के श्वास
-प्रश्वास से अग्नि की भंयकर ज्वालाएँ निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ है। ऊपर
उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती है। दाहिनी तरफ का नीचे
वाला हाथ अभय मुद्रा में है बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे
हाथ में खड्ग है। माँ का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है लेकिन ये सदैव शुभ फल
ही देने वाली है। इसी कारण इनका नाम शुभकरी भी है।
माँ दुर्गा का
आठ वाँ स्वरूप महागौरी
माँ दुर्गा अपने
आठवें स्वरूप में महागौरी के नाम से जानी जाती है। भगवती महागौरी वृषभ के पीठ पर
विराजमान हैं, जिनके
मस्तक पर चन्द्र का मुकुट है। मणिकान्तिमणि के समान कान्ति वाली अपनी चार भुजाओं
में शंख, चक्र, धनुष और
बाण धारण किए हुए हैं, जिनके कानों में रत्न जडि़त कुण्डल झिलमिलाते हैं, ऐसी भगवती
महागौरी हैं।
माँ दुर्गा का
नौवाँ स्वरूप सिद्धिदात्री
माँ दुर्गा अपने
नौवें स्वरूप में सिद्धिदात्री के नाम से जानी जाती है। जिनकी चार भुजाएँ हैं।
उनका आसन कमल है। दाहिने और नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा, बाई ओर से
नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है, यह भगवती
का स्वरूप है, इस
स्वरूप की ही हम आराधना करते हैं। (विनायक वास्तु टाइम्स से)
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