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Dec 6, 2020

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जयंती- 3 दिसम्बर

शुचिता का सफ़रनामा


-विजय जोशी (पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल)


निर्मल मन जन सो मोहि पावा                         मोहि कपट ,छलछिद्र न भावा 

     स्वाधीनता के उपरांत हमारे प्रजातंत्र में मूल्य कैसे गिरे इसका साक्षात उदाहरण है हमारी राजनीतिजिसमें नीति तो हो गई तिरोहित और शेष रह गई येन केन प्रकारेण किसी भी तरह राज करने का लोभ तथा लालसा। यही कारण है कि आज़ादी के दौर का सबसे पवित्र शब्द नेता आज स्वार्थ तथा मौकापरस्ती का प्रतीक हो गया। यह तो हुई पहली बात।

    दूसरी यह कि अपनी धरती की सौंधी महक से उपजे तथा जमीन से जुड़े सज्जनसरलनिःस्वार्थ नेताओं को हमने वह सम्मान नहीं दिया जिसके वे अधिकारी थे। केवल कुछ आभिजात्यपूर्ण परिवारों का बंधक होकर रह गया हमारा प्रजातंत्रजो हमारी कृतघ्नता का सूचक है। तो आइए आज इन पलों में हम चिंतन करें राजनैतिक शुचिता की प्रतीक आत्मा देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के तीन प्रसंग से अपने पापों के प्रक्षालन हेतु।

1 बुद्धिमान : राजेंद्र बाबू बचपन से ही कितने ज़हीन थे इसका साक्षात प्रमाण प्रसंग- जब कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में न केवल उन्हें प्रथम स्थान प्राप्त हुआ बल्कि 30 रु./ माह का वज़ीफा भी, जो उन दिनों बहुत अधिक था। कालांतर में प्रेसीडेंसी कालेज में परीक्षा के दौरान जब उन्होंने 10 में से केवल 5 प्रश्नों के उत्तर देने की बाध्यता से परे जाकर सब प्रश्नों के उत्तर देते हुए परीक्षक से कोई भी 5 के आकलन की सुविधा प्रदान की तो खुद परीक्षक ने उनकी उत्तर पुस्तिका पर लिखा कि परीक्षार्थी परीक्षक से अधिक बुद्धिमान हैजो आज भी रेकार्ड में सुरक्षित है। 

2 .   राष्ट्रधर्म : राजनैतिक शुचिता तथा कर्तव्य परायणता से परिपूर्ण। 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति समारोह के मुख्य अतिथि स्वरूप परेड की सलामी लेते हैं। वर्ष 1950 में समारोह की पूर्व रात्रि उनकी बहन भगवती देवी का निधन हो गया। उन कठिन पलों को किसी से भी न साझा करते हुए वे सुबह परेड में उपस्थित थे तथा समारोह समाप्ति के पश्चात् ही अंतिम क्रिया में सम्मिलित हुए। है क्या इतिहास में ऐसा कोई दूसरा उदाहरण।

3 गाँधी जी, आज़ादी के बाद स्वीकारी गई धर्मरहित राजनीति के पक्षधर नहीं थे। राजेंद्र बाबू भी गाँधी के समान ही निर्मलनिःस्वार्थधर्म विश्वासी व्यक्ति थे। उनके काल में जब सोमनाथ का जीर्णोद्धार हुआ तथा उन्हें लोकार्पण हेतु के. एम. मुंशी द्वारा आमंत्रित किया गया तो तत्कालीन राजनैतिक नेतृत्व की मनाही के बावजूद वे उस धार्मिक कम तथा सांस्कृतिक अधिक, समारोह में सम्मिलित हुए। यह बात दूसरी है कि इसकी उन्हें बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। खतरे में पड़ी दूसरी पारी के राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के बारे में तो कहा जाता है कि सबसे बड़ा योगदान मौलाना आज़ाद का था। और तो और पद त्याग के बाद उन्हें देश का प्रथम पुरुष रह चुकने के बाद भी दिल्ली में एक अदना सा मकान तक मुहैया नहीं किया गया। नतीजतन उन्हें पटना लौटना पड़ा और वहाँ भी दिल्ली दरबार की सरकारी आवास न प्रदान करने के निर्देश के कारण सदाकत आश्रम में जीवन के अंतिम पल बेहद कठिन परिस्थितियों में गुजारने पड़े। उनके निधन पर दिल्ली से किसी की भी भागीदारी तक न केवल प्रतिबंधित की गई बल्कि उनके परम मित्र तत्कालीन राज्यपाल राजस्थान डॉ. सम्पूर्णानंद तक को अंतिम क्रिया में जाने से रोक दिया गयाराजधानी में उनके लिए समाधि स्थल तो बहुत दूर की बात है।

    अब सोचिये ऐसा कोई दूसरा उदाहरण देखने को मिल पाया हमें तथा हमारी आगत पीढ़ी को आज़ादी के उपरांत। कहाँ गए ऐसे लोग जिनका अपने प्राणों को देश पर उत्सर्ग करने के बावजूद इतिहास में कहीं नाम तक नहीं है। 

वक़्त की रेत पर कदमों के निशाँ मिलते हैं           जो लोग चले जाते हैं वो लोग कहाँ मिलते हैं 

सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास)भोपाल-462023मो. 09826042641, Email- v.joshi415@gmail.com

25 comments:

कृष्ण प्रकाश त्रिपाठी said...

सही लिखा है. हमें यह भी सोचना चाहिए कि यैसा क्यों हुआ कि स्वेत वस्त्र और टोपी पद लोलुपता एवं स्वार्थ तथा लोभ का पर्याय बन गई. यह तब तक चलता रहेगा जब तक हमारी पाठशाला मे पढ़ाई लिखाई होती रहेगी तथा उसे शिक्षा का मंदिर नहीं बनाया jayega. पढ़ाई लिखाई और शिक्षा मे बड़ा अंतर है.

Unknown said...

सही हैं भाई साहब, आज राजनीति स्वार्थी हो गई हैं, जनता द्वारा चुने गए राजनीतिज्ञ केवल वोट की राजनीति करते हैं, एवं चुने जाने के बाद जनता का ही शोषण करते हैं, आपके प्रेरणादायक लेख के लिए आपको साधुवाद।
संदीप जोशी , इंदौर

VB Singh said...

🙏🙏🙏 शत-प्रतिशत सत्य। ऐसा कटु सत्य प्रकाश में लाने का अप्रिय कार्य (कुछ लोगों हेतु) श्री विजय जोशी जी जैसा व्यक्ति ही कर सकता है जो स्वयं में बेदाग़ हो। संविधान सभा के पहले अध्यक्ष राजेन्द्र बाबू ही थे परन्तु साज़िशन उन्हें व लौहपुरुष सरदार पटेल को किसी भी श्रेय से दूर कर दिया गया जिसके वह पूर्ण अधिकारी थे। वर्तमान केन्द्र सरकार ने गुजरात के केवड़िया में सरदार पटेल की विशालकाय प्रतिमा एवं स्मारक स्थापित कर उनके साथ हुए अन्याय को कुछ सीमा तक दूर किया है।सरदार पटेल का तो इस सीमा तक चरित्र हनन किया गया था कि मुझे उक्त स्मारक में जाकर पता चला कि सरदार पटेल ने इंग्लैण्ड से बार-एट-लॉ की डिग्री हासिल की थी और वह एक कुशल व लोकप्रिय वकील थे। परन्तु राजेन्द्र बाबू के साथ अभी भी न्याय नही हो पाया है।काश राजेन्द्र बाबू और सरदार पटेल दलित या अल्पसंख्यक समुदाय से होते तो सभी राजनीतिक पार्टियाँ उनके नाम का लाभ वोट बैंक के रूप में उठाती और कम से कम इसी बहाने दोनों महान विभूतियों को न्याय मिल पाता।

VB Singh said...

साहसिक एवं विचारोत्तेजक लेख लिखने हेतु श्री विजय देशी जी को धन्यवाद एवं साधुवाद।

मधुलिका शर्मा said...

डा. राजेंद्र प्रसाद एक महान व्यक्ति, सच्चे देशभक्त और सेवा ,सादगी और त्याग की प्रतिमूर्ति थे।
कालांतर में एक ही परिवार के महिमामंदन की और स्वार्थी राजनीति में ऐसे कई महान विभूतियों को जानबूझकर विस्मृत कर दिया गया।
आपके आलेख ऐसे कई महान व्यक्तियों के जीवन से जुड़ी यादें ताजा कर देते हैं
हार्दिक अभिनन्दन 🙏🙏

वर्तुल सिंह said...

दिलचस्प जानकारी। 💐

विजय जोशी said...

माननीय, बिल्कुल सही कहा आपने. सही शिक्षा की ही तो समस्या है. इतिहास भी प्रायोजित. बालक करे तो क्या करे. यदि आप अपने नाम का उल्लेख भी करते तो हार्दिक प्रसन्नता होती. सादर धन्यवाद

देवेन्द्र जोशी said...

यह सही है कि आज हमें ऐसे व्यक्तित्व की बहुत आवश्यकता है। लेकिन यह तभी संभव है जब सभी स्वयं को बदलने का प्रयास करेंगे। केवल पूर्व महापुरुषों को याद करने से अधिक जरूरी है कि हम भी उनका अनुसरण करें। आजकल के नेताओं को कोसने से भी अधिक लाभ नहीं होगा क्योंकि यह नकारात्मकता फैलाता है। सामाजिक बदलाव स्वयं वह निकटतम लोगों को बदलने से ही संभव है।

Unknown said...

जवाहरलाल नेहरू के समय से शुरू हुआ चाटुकारिता का युग अभी जारी है, आज की पीढ़ी को आदरणीय डॉ राजेंद्र प्रसाद जी की प्रतिभा का परिचय शायद ना हो, समकालीन नेहरू युगीन इतिहासकारों ने केवल एक ही परिवार के बारे में जनता को बताया है, सुविधा पूर्वक बाकी लोगों को मुख्यधारा से हटा दिया था।
फिर भी वर्तमान शासन आने के बाद जिस तरह सरदार पटेल के बारे में लोगों को बताया जा रहा है और उनकी प्रतिमा लगाने के बाद से लोगों में बहुत जागरूकता आई है, इसके बाद डॉ राजेंद्र प्रसाद जी के बारे में भी अच्छी जानकारियां और उपलब्ध हो।
प्रयत्न पूर्वक यह तय किया गया था कि केवल एक ही परिवार के सिवाय अन्य किसी भी समकालीन नेतृत्व का गुणगान नहीं किया जाए।
देर से ही सही वर्तमान में उनके साथ सही न्याय किया जाएगा, आप जैसे साहसी लोगों की कलम चलेगी तो जरूर आशा है कि जनता तक सही जानकारियां पहुंचे।
मुझे तो बहुत उम्मीद है इसी उम्मीद के साथ.....
अजीत संघवी मुंबई
601, Satsang chs
S.V. Road.
Malad ( Mumbai)
Mo.9967211555

विजय जोशी said...

प्रिय संदीप, अटल सत्य है यह. बागड़ ही खेत खा गई. पर अपने वोट से भी तो हम ही चुन रहे हैं साल दर साल. क्या होगा नई पीढ़ी का. मनोयोग से पढ़कर हौसला बढ़ाते हो. सो हार्दिक धन्यवाद.

विजय जोशी said...

आदरणीय सिंह साहब, आपने सदैव मनोयोग से पढ़कर हौसला बढ़ाते हुए प्रेरणा दी है. हमारी नई पीढ़ी सही इतिहास से वाकिफ ही कहां है. उन्हें केवल प्रायोजित इतिहास ही पढ़ने को मिला है. गुजरात वालों ने तो सरदार पटेल को स्थापित कर दिया, पर बिहार नेतृत्व तो घर भरने मेें ही लगा रहा. चारा तो क्या पूरा प्रदेश ही खा लिया. खैर.
आपकी सद्भावना का ही परिणाम है कि कुछ लिख पाने का विनम्र प्रयास जारी है. यही स्नेह सदा बनाये रखियेगा. सादर साभार. हार्दिक धन्यवाद

विजय जोशी said...

मधु बहन, सही कहा है आपने. दुर्भाग्य देश का. पर जब जागे तभी सवेरा बशर्ते जागने की चाहत हो. समस्या तो सही समझ की है जनता में और सबसे अधिक सोचने की बात यही है. हम तो चलते रहें अकेले टैगोर की तर्ज पर. शेष शुभ. सस्नेह

विजय जोशी said...

आदरणीय वर्तुलजी, इतनी व्यस्तता के बावजूद हर लेख पढ़कर हौसला अफज़ाई करते हैं यह बात मुझे बहुत सुख देती है. यही प्रेम बनाये रखियेगा. हार्दिक आभार

विजय जोशी said...

आदरणीय जोशी जी, सही बात है. हम बदलेंगे जग बदलेगा. इकाई से दहाई, दहाई से सैकड़ा और आगे. देश भर में चरित्र का संकट तो हम सब भोग ही रहे हैं. आपकी बात पूरी तरह सत्य है. आप मेरे वरिष्ठ हैं हर मामले में मूल्य से लेकर आचरण तक में. आभार सतही शब्द होगा अनुभूति व्याप्त है अंतस में. सादर

विजय जोशी said...

आदरणीय अजीत जी, बिल्कुल सही कहा आपने. पर कम से कम अब अक्ल आनी आरंभ हो गई है. यह काम गुजराती समुदाय ने कर दिया सरदार पटेल को स्थापित कर. अब प्राथमिक जिम्मेदारी बनती है बिहार निवासियों की अपने गौरव को स्थापित करने की. इतिहास प्रायोजित रहा है अब तक. शायद अब गलतियां दुरुस्त करने की आहट सुनाई देनी शुरू हो गई है. आपकी सद्भावना के तहत गुम हो गए नायकों जैसे जयप्रकाश नारायण, लोहिया को पढ़कर कोशिश करुंगा बस शर्त केवल यह है कि आप कृष्ण बनकर उत्साह बढ़ाते रखियेगा. सादर. हार्दिक आभार

Hemant Borkar said...

आदरणीय साहेब आपके लेख में वास्तविकता लिखी है। अप्रतीम

विजय जोशी said...

हेमंत भाई, आप बहुत नेक इंसान हैं. हार्दिक धन्यवाद

देवेन्द्र जोशी said...

आप बदलाव का प्रयास कर रहे हैं। शायद यह कभी अंकुरित हो कर फल देने लगे।आपके अथक प्रयास के लिए साधुवाद!

Sorabh Khurana said...

आदरणीय महोदय, यह पढ़कर काफी अच्छा लगा, कि एक परीक्षार्थी परीक्षक से अधिक बुद्धिमान हो सकता हैं, और वो भी विद्या ग्रहण करते समय...दिलचस्प लेख।

विजय जोशी said...

प्रिय सौरभ, आप भी ऐसे ही विद्वान व्यक्ति हैं. सो हार्दिक बधाई. सस्नेह

Sudershan Ratnakar said...

इतिहास के गर्त में छुपी जानकारी देता ,विचारोत्तेजक ,आज की पीढ़ी को प्रेरणा देता आलेख।

विजय जोशी said...

मुझे ज्ञात है कि आप सुधी पाठक हैं. आपकी सदाशयता तथा सद्भावना के लिए हार्दिक आभार. सादर

Mandwee Singh said...

शीर्षक ने मन को पहले नैन-नैन कर डाला।क्योंकि बहुत बेबाकी से शुचिता का सफ़रनामा वही लिख सकता है जिसमें स्वयं कृष्ण बसते हों।आज की कलम व्यवसाय की जय बोलने लगी है,ऐसे में आपकी लेखनी की पैनी धार बहुत सरलता औऱ रोचकता के साथ मन के द्वार खोल देती है।हृदय उत्साह से भर उठता है,देशहित में समर्पित ऐसे मनीषियों की इतनी सारगर्भित जानकारी आप जैसा देशभक्त ही कर सकता है।इतिहास के पन्नों में जिन्हें छुपाने का स्वार्थपूर्ण षड़यंत्र किया गया और स्वयं के महिमामंडन से साहित्य और शिक्षा के कंगूरे सँवारे गए इसका पर्दाफ़ाश यदि अभी नहीं किया गया तो फिर कभी नहीं हो पायेगा।
आपका यह साहसिक कार्य किसी महायज्ञ से कम नहीं है।हृदय अभिभूत है । आपके आलेखों में आपका चरित्र बोलता है।सदा सर्वदा की तरह हमारा सौभाग्य .....आपकी लेखनी से लाभान्वित हो रहे हैं। निरन्तर ऐसे ही प्रेरक और उत्साह वर्धक लेखों की प्रतीक्षा में----/माण्डवी सिंह भोपाल।
💐💐💐💐कलम आज उनकी जय बोल
💐💐💐💐💐💐☺️

विजय जोशी said...

सद्भावना पूरित आशीर्वाद के लिये हार्दिक हार्दिक आभार. सादर

विजय जोशी said...

आपके स्नेहपूरित शब्दों के लिये क्या कहूं कैसे कहूं क्या क्या कहूं. एक सीमा के आगे शब्द भी असहाय हो जाते हैं. वही स्थिति इन पलों में मेरी है. बस यही आप जैसा सहज सरल व्यक्तित्व ही मेरी शक्ति है.
लिखना मात्र एक औपचारिकता है अपने अंतस की आत्मशुद्धि का प्रयोजन.
आपकी सद्भावना मन को शांति और शुद्धि दोनों प्रदान करती है. सादर