उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Jul 12, 2018

आम आदमी का कर्ज...

आम आदमी का कर्ज...

डॉ. रत्ना वर्मा
मनुष्य का यह स्वभाव होता है कि वह अपना, अपने परिवार का जीवन सुखमय बनाने का हर संभव प्रयास करता है। जीवन यापन के सबके अपने- अपने तरीके होते हैं। एक समय था जब भारत में मनुष्य के जीवन यापन का तरीका उनकी जाति तय कर देती थी, परंतु आज काबिलियत मायने रखती है, शिक्षा उन्हें जीने के नए नए तरीके बताती है। बेहतर जिंदगी जीने के लिए वह हर उपाय करता है। इन्हीं में से आज का सबसे प्रचलित तरीका है कर्ज लेना। मकान बनवाना हो, गाड़ी खरीदनी हो, खेती करना हो, नया व्यवसाय करना हो या फिर पढ़ाई करनी हो। सबके लिए यहाँ कर्ज का प्रावधान है।
लेकिन क्या कर्ज लेना उतना ही आसान है? वर्तमान हालात में सवाल उठना स्वाभाविक है- जब विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे उद्योगपति बैंक से हजारों करोड़ों का कर्ज लेकर फरार हो जाते हैं और विदेशों में ऐशो-आराम की जिंदगी बसर करते हुए जैसे हमारा मुँह चिढ़ाते हैं। लो क्या कर लोगे कैसे वसूलोगे करोड़ों अरबो के कर्ज...
जबकि देखा तो यही गया है कि आम आदमी बैंक से कर्ज  लेता है तो बैंक का कजऱ् चुकाते-चुकाते उसकी जि़ंदगी का एक बहुत बड़ा हिस्सा निकल जाता है। अगर आपसे किस्त चुकाने में कुछ दिनों की देर हो जाती है  तो बैंक, वसूली करने आपके घर तक चला आता है। एक आम आदमी के लिए कर्ज लेना बहुत आसान भी नहीं होता- कोई नौकरीपेशा जब बैंक से कर्ज लेता है तो उसे अपने तीन महीने के वेतन का पेपर दिखाना होता हैदो साल का फॉर्म-16 माँगा जाता है और कम से कम 6 महीने की बैंक स्टेटमेंट  माँगी जाती है। और जो नौकरीपेशा नहीं होते उनसे तो गारंटी के रूप में न जाने क्या- क्या माँग लिया जाता है। इसीलिए कर्ज लेने वाला हमेशा भयभीत रहता है कि वह इस कर्ज को वह उतारेगा कैसे? और नहीं उतार पाया तो? देखा तो यही गया है कि यदि जीते जी वह कर्ज नहीं चुका पाता तो उसके बाद उसके बच्चे वह कर्ज चुकाते हैं।
भारत ऐसा देश है जहाँ दूध का कर्ज चुकाने की बात कही जाती है। लेकिन आज इसी देश में एक तरफ कुछ ऐसे अमीरजादे हैं जो कर्ज लेकर अय्याशी करते हैं...और उसे वापस भी नहीं करते। जबकि दूसरी तरफ यही वह देश है जहाँ हर 40 मिनट में एक किसान इसलिए आत्महत्या कर रहा है क्योंकि वह फसल के लिए लिया गया कर्ज चुका पाने में असमर्थ है। आँकड़ें बताते हैं  कि 2016 में देशभर के करीब 47 लाख किसानों ने कुल 12 लाख 60 हज़ार करोड़ रुपये का कर्ज लिया था। इन किसानों में से 60% ने खाद, बीज और कीटनाशकों के लिए, 23% किसानों ने खेती के उपकरणों के लिए, जबकि 17% किसानों ने खेती के अन्य कामों के लिए बैंकों से कर्ज लिया था। लेकिन जब वर्षा के जल पर निर्भर यही किसान फसल बर्बाद होने की वजह से  बैंक के कुछ हज़ार रुपये नहीं चुका पाते, तो बैंक उनके घर पर वसूली के लिए अधिकारी भेज देता है, उनके ट्रैक्टर, ट्राली उठवा लेता है।
 प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या नीरव मोदी और माल्या जैसे लोगों के कागज़ात भी उतनी ही गंभीरता के साथ जाँच किए जाते हैं जिस तरह हमारे पेपर की जाँच होती है? क्या लोन देते वक़त बैंक इनसे भी उतने ही पन्नों पर हस्ताक्षर करवाते है... जितने हमको करने पड़ते हैं? क्या उनके आधार और पैनकार्ड लिंक्ड होते हैं, क्या उन्होंने अपना इनकम टैस्स सही समय पर भरा है? उनके लिए सब छूट है। क्योंकि बैंकों के नियम- कायदे ऐसे लचीले हैं कि वह नामी गिरामी लोगों को विदेशों में व्यापार करने के लिए यूँ ही लोन दे देती है... और अपने देशवासियों को एक गाड़ी खरीदने, एक घर बनवाने, या फिर खेती के लिए बीज खरीदने के लिए हजारो-हजार नियमों की खानापूर्ति करनी पड़ती है।
ऐसे समय में जब बदलाव की बयार बह रही है, (कम से कम कहा तो यही जा रहा है) क्या मध्यम वर्ग के जीवन को सरल सुखमय और सुकून से भरा बनाने के लिए कुछ बदलाव नहीं किए जाने चाहिए? सरकार का काम क्या सिर्फ अब इतना ही रह गया है कि वह कुर्सी पाने के लिए वह सब उपाय (साम-दाम-दंड-भेद) करेगी, लेकिन जब जिंदगी सँवारने की बात आयेगी तो कदम पीछे हटा लेगी!
बड़ी विडम्बना तो यह है कि ये भगोड़े अमीरजादे जो नुकसान हमारे देश में कर गए हैं उसकी भी भरपाई हमारी सरकार हम आम इंसानों से ही टैक्स के रूप में वसूल कर करती है। यानी करे कोई और भरे कोई। लोकतन्त्र को खोखला करने वाली इन दीमकों का निदान बहुत ज़रूरी है। इन दीमकों पर जब संकट आता है, तो हमारे यन्त्र के चपरासी से लेकर बड़े नेता तक इनको बचाने में आगे आ जाते हैं। जब तक इनकी काली करतूतें जगजाहिर हों तब तक वे किसी सुरक्षित माँद में छुप जाते हैं। सामान्य जन को लूटने की जो छूट इनको मिली हुई है, यह लोकतन्त्र के लिए प्राणलेवा है। इस लूटपाट करने वालों पर प्रशासन कब शिकंजा कसेगा? क्या देश को अरबों रुपये  की चोट पहुँचाना, खा-पीकर डकार भी न लेना देशप्रेम है? अगर नहीं तो आर्थिक अराजकता फैलाने वालों को देशद्रोही क्यों नहीं घोषित किया जाता? ऐसे आर्थिक अपराधियों की सही जगह पंचसितारा होटल नहीं बल्कि कारागार है। स्वच्छ प्रशासन का एक ही मन्त्र  है- इस तरह के लोगों पर नकेल कसी जाए, अगर ऐसा नहीं किया गया तो लूट का यह कैंसर रोग बढ़ता ही जाएगा।  

No comments: