हे इन्द्र देव
- यशवंत कोठारी
बारिश हो रही हैं, बादल गरज रहें हैं। मौसम मस्त-मस्त हैं। ऐसे में इंद्र को याद करना मानव स्वभाव है। वर्षा का राजा इंद्र हैं। हम लोग सम वृष्टि चाहते हैं, अनावृष्टि या अति वृष्टि से सब बचना चाहते हैं। इंद्र ही इस बात को तय करते हैं। भारतीय पौराणिक साहित्य में इंद्र का वर्णन बार- बार आता हैं। इंद्र का लोक इंद्रलोक कहलाता हैं, इसका स्थान अमरावती माना गया हैं, इंद्र के आवास का नाम वैजयंत माना गया हैं, इंद्र के बाग का नाम नंदन माना गया हैं, नंदन में कल्पवृक्ष
हैं ,जो सभी कामनाओं को पूरा करता हैं। इंद्र के हाथी का नाम ऐरावत हैं, इंद्र के घोड़े को उच्चैश्रवा
कहा
गया
हैं।
इंद्र
की
रानी
का
नाम
शची
है।
तथा
पुत्र का नाम जयंत बताया गया है।
इंद्र वर्षा के देवता हैं ;लेकिन अन्य देवताओं की तरह उनकी पूजा- अर्चना नहीं की जाती हैं। इंद्र शूरवीर नहीं थे ,उनकों रावण पुत्र मेघनाद ने हराकर कैद कर लिया था बाद में देवताओं ने छुड़ाया। इसी प्रकार द्वापर में कृष्ण ने गोवेर्धन पर्वत को उँगली पर उठाकर इंद्र का मान- मर्दन कर दिया था।
एक कथा के अनुसार अर्जुन इंद्र के पुत्र थे। इसी प्रकार अहल्या की कथा में भी इंद्र खलनायक बन कर आते हैं और शीलहरण करते हैं। बलि को भी इंद्र का ही पुत्र बताया गया हैं।
दुश्चरित्र होने के कारण ही इंद्र की पूजा नहीं की जाती है। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार इंद्र के पिता प्रजापति व माता निष्टिग्री हैं।
इंद्र देवताओं के राजा थे, मगर घमंडी थे। युद्ध में लडऩे के लिए उन्होंने दधिचि की हड्डियों से वज्र बनवाया था।
इंद्रपूरी में इंद्र ने कई यज्ञ किये थे।
पृथ्वी पर कोई तपस्या करता तो इंद्र का आसन डोलने लग जाता था। वे अपने सिंहासन की रक्षा में जुट जाते थे। अपना राज बचने के लिए इंद्र पृथ्वी पर तपस्या करने वाले का तप भंग करने के लिए अप्सराओं को भेजते थे, ये अप्सराएँ तप भंग कर आती थी।
उर्वशी, मेनका, तिलोत्तमा आदि इंद्र की खास अप्सराएँ थीं, जो तप भंग करने पृथ्वी लोक में भेजी जाती थी। इंद्र खुद भी जाकर कुछ गड़बड़ कर देते थे। एक बार राजा सगर के यज्ञ के घोड़े को कपिल मुनि के आश्रम में बाँध दिया , सगर के 60 हज़ार पुत्र मर गए, जिनको स्वर्ग दिलाने के लिए भगीरथ गंगा को पृथ्वी पर लाए।
अहल्या प्रकरण में चंद्रमा ने इंद्र का साथ दिया था, ऋषि गौतम ने इंद्र व चंद्रमा दोनों को शाप दिया। तब से ही चन्द्रमा पर कलंक लग गया।
शाप मुक्ति के लिए अहल्या को राम का इंतजार करना पड़ा। तथा इंद्र ने राम- विवाह को हज़ार आँखों से देखा।
इंद्र ने एक बार देवताओं के गुरु बृहस्पति का भी अपमान कर दिया था।
तो वर्षा के देवता इंद्र ऐसे थे।
फिर भी इंद्र वर्षा को सही समय पर सही मात्रा में बरसावें इस की प्रार्थना हम सब करते हैं। सैकड़ो झरने, हजारो नदियाँ, नाले सब लवालब भर जाते है। और सर्वत्र पानी ही पानी हो जाता है। समुद्र की प्यास को बुझाने चल पड़ती है सैकड़ो नदियाँ, और समुद्र है कि फिर भी प्यासा ही रह जाता है ।वह प्यासा ही अगली वर्षा का इन्तजार करने लगता है।
धरती
पर
बिछ
गई
है
एक
हरी
चादर
वर्षा
की
बूँदे
सूर्य
की
किरणों
के
कारण
हीरे
सी
चमक
रही
है।
वीर
बहूटियों
से
धरती
अटी
पड़ी
है।
चारो
तरफ
वर्षा
की
झड़ी
लगी
है।
धरती
और
समुद्र
की
प्यास
बुझाने
वर्षा
फिर
आएगी।
इन्द्र
भगवान
की
कृपा
रहेगी।
कृष्ण
गोवर्धन
पर्वत को तर्जनी पर उठा लेंगे और वृन्दावन ही नहीं सम्पूर्ण विश्व को आनन्द देंगे।
सम्पर्क: 86, लक्ष्मी नगर, ब्रह्मपुरी जयपुर- 302002 मो- 09414461207, email : ykkothari3@gmail.com
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