पूरब से आई हवा, करती ये ऐलान।
बदरा जल ले आ रहे, रखने उसका मान।।
नीर भरे बादल चले, जा बरसेंगे गाँव।
हवा निगोड़ी ले गई, टिकने दिए न पाँव।।
चुपके-चुपके कह गई, पवन प्रेम की बात।
बादल संग कल आ रही, बूँदों की बारात।।
बूँद चल पड़ी वेग से, ज्यों ही सुनी पुकार।
माँ धरती की गोद में, मिलता ज्यादा प्यार।।
तपती धरती ने सुना, ज्यों बादल-संदेश।
ली करवट औ खिल गई अब बदले परिवेश।।
आसमान आँगन बना, बादल खेलें खेल।
काले, भूरे व सफेद, रखते अद्भुत मेल।।
सावन सूखा क्यों गया, कुदरत खोले राज।
व्यथा बाँचने के लिए, यह उसका अंदाज।।
तन से ज्यादा भीगते, अबकी उसके नैन।
सरहद से लौटा नहीं, मन उसका बेचैन।।
झूले कंगन चूडिय़ाँ, व मेंहँदी के हाथ।
वो उमंग खुशियाँ नहीं, गर ना सावन साथ।।
रिमझिम बूँदें मेह की, जैसे माँ का प्यार।
बारिश मूसलधार तो, लगे पिता की मार।।
कैसा तिलिस्म रच रही, टँगी तार पर बूँद।
आह्लादित हो देखती, चिडिय़ा आँखें मूँद।।
बरसों बिछुड़े प्रेम की, बारिश लाई आस।
उमड़-घुमड़ यादें सभी, चलकर आईं पास।।
पूरब से आई हवा, करती ये ऐलान।
बदरा जल ले आ रहे, रखने उसका मान।।
नीर- भरे बादल चले, जा बरसेंगे गाँव।
हवा निगोड़ी ले गई, टिकने दिए न पाँव।।
चुपके-चुपके कह गई, पवन प्रेम की बात।
बादल सँग कल आ रही, बूँदों की बारात।।
बड़े वेग से चल पड़ी, जैसे सुनी पुकार।
माँ धरती की गोद में, मिलता ज्यादा प्यार।।
जल गगरी बादल लिये, जाएँ अब किस ठाँव।
ना पंछी के गीत हैं, ना पेड़ों की छाँव।।
झूला बेटी झूलती, करती यही पुकार।
बरसो बादल झूमकर, हों सपने साकार।।
आसमान के घाट पर, लगता मेला आज।
पुलकित बादल कर रहे, वर्षा का आगाज़।।
मोर-पपीहे ने किया, नृत्य-गान आगाज़।
इन्द्र देवता भेजते, बादल ,बिजली साज।।
बारिश ने आकर लिखे, प्रेम-प्रीत संदेश।
मन की खिड़की भीजती, टप-टप टपकें केश।।
पपीहरा जब बाग में, देता मीठी टेर।
उमड़-घुमड़कर मेघ भी, नहीं लगाते देर।।
सिंधारा औ कौथली, लेकर आती तीज।
बहू-बेटियाँ खुश हुईं, आँखें जाती भीज।।
सूरज -चंदा सो रहे, बादल पहरेदार।
सावन रुत में है सजा, बूँदों का दरबार।।
मनमोहक हैं राखियाँ, सावन में चहुँओर।
भ्रात-बहन के भाव में, अद्भुत प्रेम हिलोर।।
रेशम -धागे में बुना, भ्रात-बहन का प्यार।
निश्छल, निर्मल प्यार का, राखी है त्योहार।।
राखी -बन्धन तो लगे, ऐसा निश्चल नेह।
इस दिन बरसे प्यार का, रिमझिम-रिमझिम मेह।।
1 comment:
Excellent
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