रिमझिम बरसे ला मेघ रे
- डॉ. जेन्नी शबनम
बरसात का मौसम, सावन-भादो का महीना और ऐसे में बारिश। चारों तरफ हरियाली, बागों में बहार, मन में उमंग जाने क्या है इस मौसम में। रिमझिम बरसात… अहा! मन भीगने को करता है। बरसात के मौसम में उत्तर भारत में कजरी गाने की परंपरा रही है-
सावन ऐ सखी सगरो सुहावन
रिमझिम बरसे ला मेघ रे
सबके बलमउआ त आबे ला घरवा
हमरो बलम परदेस रे
सावन के महीने में कई-कई दिन लगातार बारिश हो, सूर्य कई दिनों तक नहीं दिखे, तो इसे कहते हैं झपसी (मूसलाधार वर्षा) लगना। शहरी जीवन में तो ऐसे मौसम में लोग चाय के साथ पकौड़ी खाना, लिट्टी चोखा खाना, लॉन्ग ड्राइव पर जाना, पसंदीदा पुस्तक पढ़ना या गीत सुनना आदि पसंद करते हैं। ग्रामीण परिवेश में यह सब बदल जाता है। यूँ अब पहले की तरह गाँव नहीं रहे;अतः काफी कुछ शहरों का देखा-देखी होने लगा है। पहले चूल्हे में लकड़ी ही ईंधन के रूप में प्रयुक्त होती थी;अतः बरसात में मेघौनी (झड़ी) लगते ही जरना (लकड़ी) एकत्र कर लिया जाता है। बूँदा-बाँदी में भी खेती के सारे काम होते हैं; क्योंकि इसमें नियत समय पर ही सब कुछ करना है। पशु-पक्षी की देखभाल, उनके चारे का इंतज़ाम आदि सब पहले से कर लेना होता है। बाज़ार -हाट का काम और खेती का काम भीगते हुए ही करना होता है।गाँव में कभी भी कोई असुविधा महसूस नहीं होती है। जब जो है उसमें ही जीवन को भरपूर जिया जाता है।
यूँ तो परम्पराएँ गाँव हो या शहर दोनों जगह के लिए बनी हुई हैं ;लेकिन कुछ परम्पराएँ गाँवों तक सिमट गई हैं। गाँवों में जब मूसलाधार बारिश हो और पानी बरसते हुए कई दिन निकल जाएँ, तो एक तरह का टोटका किया जाता है, जिससे बारिश बंद हो और उबेर (बारिश बंद होकर सूरज निकलना) हो जाए।
सीतामढ़ी ज़िले में झपसी लगाने पर एक अनोखी परम्परा है। कपड़े के दो पुतले (गुड्डा-गुड़िया) बनाते हैं, एक भाहो (छोटे भाई की पत्नी) और एक भसुर (पति का बड़ा भाई)। फिर दोनों को छप्पर (छत) पर एक साथ रख देते हैं। फिर अक्षत और फूल चढ़ाकर पूजा की जाती है। मान्यता है -चूँकि भाहो और भसुर का सम्बन्ध ऐसा है; जिसमें दूरी अनिवार्य है। इसलिए भाहो-भसुर का एक साथ होना और पानी में भींगना बहुत बड़ा पाप और अन्याय है। अतः भगवान इस अन्याय को देखें और पानी बरसाना बंद करें। इस गुड्डा-गुड़िया को बनाकर वही लड़की पूजा करती है जिसको एक भाई होता है।
इससे मिलती -जुलती ही छपरा जिले की परंपरा है। इस टोटका में कपड़े से कन्या और दूल्हा (पति और पत्नी) बनाते हैं। फिर दूल्हे के कंधा पर एक गमछा (तौलिया) रख दिया जाता है जिसके एक छोर में खिचड़ी का सामान बाँध दिया जाता है। एक छोटी ईंट रखकर उस पर एक दीया जला देते हैं और उससे सटाकर कन्या व दूल्हा को खड़ा कर दिया जाता है। कन्या और दूल्हा भगवान से कहते हैं कि हमें परदेस जाना है, दिन रात पानी बरस रहा है, चारो तरफ अन्हरिया (अँधेरा) है; हे भगवान! उबेर कीजिए, जिससे हम लोग खाना बना कर खाएँ और फिर परदेस जाएँ; ताकि कमा सकें। मान्यता है कि जिस बच्ची का जन्म ननिहाल में होता है वही यह गुड्डा-गुड़िया बनाती है और पूजा करती है।
अब इन टोटकों से क्या होता ,यह तो नहीं पता ; लेकिन सुना है कि टोटका करने के बाद पानी बरसना बंद होकर उबेर हो जाता है; भले थोड़ी देर के लिए ही सही। टोटका कहें या मान्यता या मन बहलाव का साधन, गाँव के लोग हर परिस्थिति का सामना अपने-अपने तरीके से करते हैं। प्रकृति के हर नियम के साथ तालमेल मिला कर जीते हैं। अब यह सब होता है या नहीं यह तो मालूम नहीं। लेकिन है बड़ा अनूठा और दिलचस्प टोटका।
E-mail- jenny.shabnam@gmail.com
1 comment:
मेरे लेख को स्थान देने के लिए हृदय से आभार रत्ना जी। सदैव की तरह यह अंक रोचक और मनभावन है। शुभकामनाएँ।
Post a Comment