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Dec 18, 2017

एक शर्त भी जीत न पाया

एक शर्त भी जीत न पाया 
-हरि जोशी
मैं शर्त लगाने का कभी पक्षधर भी नहीं रहा अत: मैंने कभी शर्तें नहीं लगायी किन्तु कुसमय मेरा परिचय एक बीमा एजेंट से हो गया। उसने मुझे अपनी शातिर बातों के जाल में ऐसा फँसाया कि मैं शर्तें लगाने पर मजबूर हो गया।
अब मैं उसे प्रतिमाह कुछ राशि का चेक दे देता हूँ और वह उससे ख़ुश होकर जुआ खेलता रहता है। मैं यही समझ नहीं पा रहा हूँ कि उसने मेरा बीमा किया या मुझे बीमार किया। पहले उसने मुझे डराया कि मेरे घर में चोरी हो सकती है। इसीलिए सारे सामान का बीमा कर लो। मैं उसी बात से आशंकित हो गया, संभव है रात के अँधेरे में किसी दिन सेंधमारी करने वह ख़ुद आ धमके या किसी को भेज दे?
एक दिन कहा मेरे घर में आग लग सकती है। घर सुरक्षित रहे इसके लिए बीमा करा लो। मुझे शंका हुई कि किसी दिन पेट्रोल में कपड़ा डुबाकर तीली सुलगाकर मेरे घर में स्वयं ही न फेंक दे?
मैं बहुत नियमित रहकर अपना जीवन जीता हूँ पर वह उस दिन कह रहा था- क्या पता आप कल बीमार पड़ जायें? - स्वास्थ्य का बीमा करा लो। इसीलिए कई दिन तक मैंने उसकी चाय भी नहीं पी। चाय पिलाकर वह अपनी शंका को साकार कर सकता था। कह सकता था देखो आज ही बीमार हो गया। एक दिन कहने लगा मेरी कार का एक्सीडेंट हो सकता है। बीमा करा लो। मैंने पूछा - क्या बीमा कराने से एक्सीडेंट नहीं होगा? अगले दिन से मैं किसी और से बचता न बचता उससे बचने लगा।
एक दिन उसने अपने अधीनस्थ को भेज दिया। अधीनस्थ तो यहाँ तक कहने लगा मेरी मौत हो सकती है। बीमा करा लेना ठीक रहेगा। याने मैं कई साल मासिक किस्त भरता रहूँ जिसका मज़ा एजेंट उठाता रहे? और मर जाऊँ तो बाद में मिली धनराशि का आनंद कोई और उठाये?
अब जब मैं चौहत्तर  साल की उम्र तक सुरक्षित हूँ तो वही बीमा कंपनी का एजेंट मेरे बच्चों ही नहीं नाती पोतों के बारे में मुझे चिन्तित करने लगा है। कहता है पोते पोतियों के स्वास्थ्य से निश्चिन्त रहना हो तो मासिक किस्त भरते रहो।
देश में रहकर इस तरह जुआ खेलते-खेलते प्रतिमाह अपनी जेब खाली करता रहता हूँ। जब कभी विदेश जाता हूँ तो वही प्राणी आशंका से ग्रस्त कर देता है कि मुझे बाहर कुछ भी कभी हो सकता है और इस तरह भयभीत कर वह एकमुश्त बड़ी राशि मुझसे ले लेता है। मैं हर बार पैसे  लगाता हूँ और वही हर बार जीतता जाता है। लाखों रुपये फूँक चुका हूँ पर आज तक एक बार भी मैं नहीं जीता। एजेंट्स का लक्ष्य एक ही होता है कि वह और उसकी कंपनी शर्तें जीतती रहे। सामने वाला किसी अनहोनी से डरकर बस पैसा देकर हारता रहे। कितनी बार अमेरिका की यात्रा पर गया? हर बार यात्रा बीमा कराया किन्तु बदले में एक पैसा नहीं मिला। एक बार अमेरिका में रहकर एक डॉक्टर से अपना इलाज भी इसी आशा से अधिक पैसे देकर कराया कि भारत  जाकर सारा पैसा मिल ही जायेगा। बीमा जो कराया  है?
किन्तु यहाँ आकर जब क्लेम फॉर्म भरा तो उसन साफ कह दिया आपको अस्पताल में दाखिल होना ज़रूरी था? यदि दाखिल हुए होते तो पैसा मिल जाता? याने मैं पहले अपनी टांग तुड़वाता, अस्पताल में दाखिल होता, तब ही कुछ बात बन सकती थी? बाहर इलाज कराने का पैसा नही मिलता। इस तरह मैं कई बार जुआ खेलता रहा और हर बार हारता रहा।
एक बार मुझे आभास होने लगा था कि अब मैं शर्त जीत सकता हूँ। हुआ यह कि एक वर्ष पूर्व ही श्रीमतीजी के स्वास्थ्य का बीमा कराया था। उनका आँखों में मोतियबिंद का ऑपरेशन कराना पड़ा। मैंने सोचा इब तक लाखों रुपये बीमा में दे चुका हूँ। यह खर्च तो मात्र कुछ हजार का है, शायद बीमा कंपनी दे देगी?
मैंने एजेंट को तदाशय की जानकारी दी और घर बुलाया। वह नहीं आया। जो बीमा एजेंट स्वयं ही बीमा करने के लिए दिन में दो चक्कर लगाता था, शर्त के हारने के डर से नहीं आया। जब जब टेलीफोन किया, हमेशा दूरभाष, बंद मिला।
बड़े-बड़े सट्टेबाज भी एकाध बार तो हारने के लिए तैयार रहते हैं, पर वह एक बार भी तैयार नहीं हुआ। हारकर मैंने उसे एक सुमधुर पत्र लिखा कि आपको अंदरूनी ख़ुशी तो हुई होगी कि पहली बार मैं शर्त जीत गया हूँ। पहली बार आपकी अपेक्षा पूरी हुई है। आशा है शल्य चिकित्सा का व्यय मुझे मिल जाएगा। इस बार उसका उत्तर ही नहीं आया।
जब बार-बार टेलीफोन और पत्र लिखे तो कई दिन बाद कुछ लाल-पीले प्रपत्रों सहित उसका उत्तर आया। प्रपत्रों में छुपे हुए दसियों प्रश्न थे। जैसे ऑपरेशन कराने का निर्णय मेरा था या डॉक्टर का? क्या ऑपरेशन कराना बहुत जरूरी था? एक प्रश्न यह भी था कि मैं प्रमाण दूँ कि आपरेशन आँख का ही हुआ है। फिर दायीं आँख का हुआ या बायीं आँख का? कितने दिन रोगी अस्पताल में भर्ती रहा। डॉक्टरों ने कितनी फीस ली, कौन-कौन सी दवाइयाँ लेनी पड़ीं और दवाइयों पर कितना खर्च आया? अस्पताल में रहने पर कितना व्यय हुआ आदि आदि।
मैंने सारे प्रपत्र पूरे होशो-हवास से भरे, माँगे गए सारे प्रमाण पत्र संलग्न किये, और रजिस्टर्ड डाक से एजेंट को भेज दिये। एक दो महीने तक कोई उत्तर नहीं आया। जब मैंने झुँझलाकर शिकायत की तो उत्तर मिला वे सभी कागज मिल चुके हैं और आगामी कार्यवाही के लिए मुख्यालय भेज दिये गए हैं।
मैंने एजेंट से कहा मासिक राशि के चेक तो मैं आपको देता रहा अब पैसा किससे माँगू?
उसने उत्तर दिया मैं तो पैसे एकत्र करने वाला नौकर हूँ, पैसे देना न देना, कंपनी का काम है।
क्या तुम पागल हो गए हो, शर्त तो मैंने जीती है, मुझे पैसे आप दो।
वह बोला- मैं नहीं कंपनी वाले पागल हैं।
कौन कंपनी वाले?
मुँबई में जो मुख्यालय है उसकी कंपनी वाले।
मैं उनकी टाँग तोडऩे हथौड़ा लिए उनके ऑफिस पहुँचा।
ऑफिस के लोग बोले जो कुछ निर्णय लेना है इस कम्प्यूटर को लेना है। और यह कोई निर्णय ही नहीं ले रहा है?
अब क्या मैं कम्प्यूटर की टाँग तोड़ता? यदि तोड़ भी देता तो मुझे क्या मिल जाता?
इस तरह मैं एक भी शर्त जीत नहीं पाया।
लेखक परिचय- डॉ. हरि जोशी,  जन्म-17 नवंबर, 1943, खूदिया (सिराली), जिला- हरदा (मध्य प्रदेश)
शिक्षा- एम.टेक.,पीएच.डी. (मेकेनिकल इन्जीनियरिंग),सम्प्रति- सेवा निवृत्त प्राध्यापक (मेकेनिकल इन्जी.)शासकीय इन्जीनियरिंग कॉलेज, उज्जैन (म.प्र.), हिन्दी की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र/पत्रिकाओं में साहित्यिक रचनाएँ प्रकाशित। अमेरिका की इंटरनेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ पोएट्री में 10 अंग्रेजी कविताएँ संग्रहित। प्रकाशित पुस्तकें- तीन कविता संग्रह- पंखुरियाँ, यंत्रयुग, हरि जोशी। पन्द्रह व्यंग्य संग्रह- अखाड़ों का देश, रिहर्सलजारी हैव्यंग्य के रंग, भेड की नियति, आशा है,सानंद हैं, पैसे को कैसे लुढका लें, आदमी अठन्नी  रह गया, सारी बातें कांटे की, किस्से रईसों नवाबों के, मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनाएँ, इक्यावन श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ, नेता निर्माण उद्योग, अमेरिका ऐसा भी है, हमने खाये, तू भी खा, My Sweet Seventeen, published from Outskirts Press Publication Colorado (US)  नौ व्यंग्य उपन्यास- पगडंडियाँ, महागुरु, वर्दी, टोपी टाइम्स, तकनीकी शिक्षा के मालघुसपैठिय, दादी देसी-पोता बिदेसी, व्यंग्य के त्रिदेव, भारत का राग- अमेरिका के रंग, दो प्रकाशनाधीन उपन्यास- पन्हैयानार्तन, नारी चिंगारी। सम्मान- व्यंग्यश्री (हिंदी भवन, दिल्ली), गोयनका सारस्वत सम्मान (मुंबई), अट्टहास शिखर सम्मान (लखनऊ), वागीश्वरी सम्मान (भोपाल), अंग्रेज़ी कविता के लिए अमेरिका का एडिटर्स चॉइस अवार्ड। सम्पर्क: 3/32 छत्रसाल नगर, फेज़-2, जे.के.रोड, भोपाल- 462022 (म.प्र.), फोन-0755-2689541, मो. 098264-26232,  Email – harijoshi2001@yahoo.com

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