शोकसभा में आमसभा का टच
– गिरीश पंकज
भैया जी की बोलने या कहें कि धाराप्रवाह बकरने की कला अद्भुत है।
जब मूड में आते हैं तो फिर याद नहीं रहता कि शोकसभा में बोल रहे हैं या आमसभा
में। माइक मिला नहीं कि शुरू हो गए सुपरफास्ट ट्रेन की तरह। उस दिन भी यही हुआ। एक
शोक सभा में उन्हें बोलने का मौका मिला और वे चुनावी आमसभा समझ कर जो शुरू हुए कि
फिर समझ ही नहीं पाए कि शोकसभा में हैं या कहीं और।
एक नेता का निधन हो गया था। उनके लिए शोक सभा आयोजित की गई थी इसलिए भैयाजी को
भी बुलवा लिया गया था। न बुलाते तो वे और उनके चमचे ही चढ़ बैठते कि देश के इत्ते
बड़े मोहल्ला छाप नेता को नहीं बुलाया। मजबूरी में लोग बुला ही लेते हैं। हालाकि सबको ये पता है कि अगर एक बार माइक मैया
जी के हाथों में आया तो हो गया काम। न जाने कितने मिनट बोलेंगे और क्या-क्या
बोलेंगे, वे खुद ही नहीं जानते। इसलिए
जब भैया जी का भाषण नाकाबिलेबर्दाश्त होने लगता है तो लोग तरह-तरह की जुगत बिठाने
लगते है कि कैसे उनकी बोलती बंद कराए। कोई जा कर धीरे से लाइट गोल कर देता है,
फिर भी वे बोलते रहते हैं। माइक वाले को इशारा करके साउंड गायब कर दिया
जाता है, फिर भी ‘ वीर तुम बड़े चलो ’ की तर्ज पर में बोलते ही जाते हैं कई बार फुल
बेशर्मी अपनाते हुए संचालक आकर कहता है कि आपका समय हो गया है, लेकिन भैया जी का दिल है कि मानता नहीं। कहते
हैं, ‘बस, अभी ख़त्म करता हूँ’ और उसके बाद नए
सिरे से शुरू हो जाते हैं. टोकाटाकी के बावजूद आधा घंटे तो आराम से निकाल लेते
हैं।
उस दिन भी यही हुआ। शोकसभा में आयोजक उनको बुला कर फँस गए. जब उनके चमचे आयोजक के पास बार-बार भैया जी
के नाम की पर्ची भिजवाने लगे और बाकायदा देख लेने की धमकी तक देने लगे तो आयोजक को
उनका नाम लेना ही पड़ा। भैया जी लपक कर मंच पर
आए और कहने लगे, ‘खुशी की बात है
कि आज इस शुभअवसर पर हम लोग यहाँ एकत्र हुए हैं। भगवान ऐसे अवसर हमें प्रदान करते
रहे। बोलो भारत माता की जय।’ किसी ने
भी जय नहीं कहा। केवल चमचों ने ही
स्वर-से-स्वर मिलाया क्योंकि चमचा-धर्म भी एक बड़ा युगीन धर्म है।
एक चमचा मुँह लगा था और समझदार भी था। वह आगे बढ़ा और भैया जी के कान में
फुफुसाया, ‘भैया जी, रामलाल जी के निधन की शोकसभा है। उन पर कुछ
बोलना है।’
भैयाजी ने ध्यान से सुना और स्टार्ट हो गए, ‘रामलाल जी नहीं रहे।
लेकिन मैंने जो खुशी की बात कही है, उसके भाव को समझें।
आज स्वर्ग लोक खुश होगा कि उनके यहां रामलाल जैसे व्यक्ति की आत्मा पहुंची
है। इसलिए स्वर्ग की खुशी की बात है।’
फिर इतना बोल कर भैयाजी
बहक गए। ‘आज देश की हालत किसी से
छिपी नहीं है. महँगाई आसमान छू रही है, घोटाले-पर-घोटाले हो रहे हैं। देश कहाँ जा रहा है, हम देख रहे हैं। ऐसा इसलिए हुआ है कि हम मंत्री नहीं हैं।
पहले थे, पर हमे तरीके हटा दिया
गया। साजिश की गई। अपनों ने की। लेकिन मैं बता दूँ कि वो क्या कहते हैं न, सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं। हम
होंगे कामयाब एक दिन। मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास. बोलिए भारत माता की जय।’
किसी ने जय नहीं कहा, केवल चमचे
हुँकारा भरते रहे। चमचे ने फिर कान में कहा, ‘रामलाल के बारे में कुछ बोलिए। उनका निधन हो गया है।’
भैया जी बोले, ‘रामलाल और हम लोग
एक साथ पले बढ़े, राजनीति में
आए। एक साथ फेल होते थे। एक साथ नकल मारते
थे फिर पास हो जाते थे। कभी रामलाल मेरा पत्ता काट देते थे, कभी मैं उनका पत्ता काट देता था। राजनीति में सब चलता है लेकिन रामलाल ने कभी बुरा नहीं
माना। हम लोग एक -दूसरे के खून के प्यासे रहते थे, लेकिन पक्के दोस्त थे। आज वे मर गए हैं लेकिन हमें उनके
रास्ते पर चलना है।’ इतना बोलने के
बाद भैयाजी फिर सनक गए, शुरू हो गए,
'आज शहर की हालत क्या है, किसी से छिपी नहीं है। गाँधी ने क्या कहा था, पाप से घृणा करो, पापी से नहीं। नेताजी ने कहा, था, स्वराज्य हमारा
जन्म सिद्ध अधिकार है। तिलक जी ने नारा दिया था, तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा। आज हम कहाँ
खड़े है? अमरीका को देख लो,
पाकिस्तान को ही देख ले,
सिंगापुर को देख लो न.. एक बार सब मिल कर बोले ‘भारत माता की जय।’
इस बार भी किसी ने जय नहीं कहा। चमचे सुर-से- सुर मिलाते रहे और माथा ठोंकते
रहे कि आज ये फिर हम लोगों की फजीहत करवा
रहे हैं। चमचा कान में फुसुसाया, ‘रामलाल के बारे
में बोलना है।’
भैयाजी बोले, ‘रामलाल बड़े महान
आदमी थे। मर गए बेचारे। पता नहीं कैसे मर गए। हम लोग साथ साथ पीते-खाते थे। पीते
मतलब कुछ और मत समझ लेना भाई। ज़माना खराब है।
खैर, कोई बात नहीं। इस ज़माने को हम देख रहे हैं। हर हाथ में मोबाइल है. चहरे पार स्माइल है। ज़िंदगी के रंग
कई रे साथी रे। एक दिन सबको मरना है। सजन
रे झूठ तुम बोलो, खुदा के पास जाना
है। मौत गाँधी को आई। भगत सिंघ भी शायद
हार्ट अटैक से चल बसे। देखते-ही देखते कितने लोग मर गए। लेकिन मैं अभी नहीं
मरूँगा। बोलिए भारत माता की जय।’
भैया जी की ऊल-जलूल बाते सुन कर शोक सभा गुस्से से भर चुकी थी। एक ने दूसरे से कहा, ‘तुम कहो, तो इसे छुटभैये
को यही निबटा कर इसकी भी शोकसभा कर लेते हैं? ससुरा अंट -शंट बके जा रहा है।’ तभी एक व्यक्ति उठा और माइक बंद हो गया। फिर भी भैया जी
बोले चले जा रहे थे। सभा की लाइट भी गोल कर दी गई। फिर भी भैयाजी रुके नहीं,
तब आयोजक ने कहा, ‘शोकसभा खत्म हो चुकी
है। आप अब अपना स्थान ग्रहण कर लें।’
भैया जी ने खोपड़ी हिलाई और शुरू रहे। लोग उठ कर टहलने लगे। जम्हाई लेने लगे।
आपस में बातें करने लगे। लेकिन भैया जी असरहीन रहे। जब चमचे ने कहा, 'समय ख़त्म हो चुका है, अब दूसरी सभा में जाना है तब भैया जी ने
भाषण रोका और जोर से हुँकारा लगा, ‘बोलिए, भारत माता की जय।’
इस बार सबने राहत की साँस ली और दुहराया, ‘भारत माता की जय।’
उसके बाद से लोगों ने कान पकड़ कर कसम खाई कि अब कभी इनको नहीं बुलाना।
लेखक परिचय: गिरीश पंकज विगत चालीस वर्षो से व्यंग्य लिख रहे है। उनके
आठ उपन्यास और सोलह व्यंग्य संग्रह,
समेत बासठ पुस्तकें
प्रकाशित हो चुकी है। पंद्रह छात्रों ने इनके व्यंग्य साहित्य पर शोध कार्य भी
किया है। व्यंग्य साहित्य लेखन के लिए उन्हें अनेक सम्मान प्राप्त हो चुके है, जिनकी सूची बहुत लम्बी है- कुछ प्रमुख हैं-
मिठलबरा की आत्मकथा (उपन्यास) के लिए रत्न भारती सम्मान- भोपाल, माफिया (उपन्यास) के लिए लीलारानी स्मृति सम्मान (पंजाब), श्रीलाल शुक्ल (परिकल्पना) व्यंग्य सम्मान, लखनऊ और अब व्यंग्यश्री
सम्मान जो आगामी 13 फरवरी, 2018 को दिल्ली
के हिंदी भवन सभागार में प्रदान किया
जाएगा। साहित्य और पत्रकारिता में निरंतर
सक्रिय, गिरीश पंकज अनेक
देशों का भ्रमण कर चुके हैं तथा कुछ महत्वपूर्ण दैनिको में चीफ रिपोर्टर और
सम्पादक रहने के बाद ' सद्भावना दर्पण ' नामक त्रैमासिक अनुवाद
पत्रिका का सम्पादन-प्रकाशन कर रहे है। सम्पर्क: सेक़्टर- 3, एचआईजी-2, घर नंबर-2, दीनदयाल उपाध्याय नगर, रायपुर- 492010, मोबाइल- 09425212720, 877 0969574, Email- girishpankaj1@gmail.com,
1-http://sadbhawanadarpan.blogspot.com, 2-http://girishpankajkevyangya.blogspot.com,
3-http://girish-pankaj.blogspot.com
No comments:
Post a Comment