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Dec 18, 2017
उदंती.com दिसम्बर 2017
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दिसम्बर 2017
दूसरों पर किए गए व्यंग्य पर हम हँसते हैं पर अपने ऊपर किए गए व्यंग्य पर रोना तक भूल जाते हैं।
- रामचंद्र शुक्ल
व्यंग्य विशेष
अनकही: चर्चा डिज़िटल इंडिया की...
– डॉ. रत्ना वर्मा
शोक सभा में आम सभा का टच
-गिरीश पंकज
एक शर्त भी जीत न पाया
-हरि जोशी
मिलना नहीं, मिलना केमिस्ट्री का
-विनोद साव
एआई का मारा मैं बेचारा
-रवि रतलामी
बटन दबा सिटी बजा
-डॉ. सुरेन्द्र वर्मा
निंबू मिर्ची की जमाना
-बी. एल. आच्छा
'
अगले जनम मोहे मास्टर न कीजो'
-डॉ. गीता गुप्त
प्रेरकः रोज़ एक मेंढक खाइए
मेरे संपादक! मेरे प्रकाशक!!
-यशवंत कोठारी
बाबा के कटोरे में -
जवाहर चौधरी
गिरीश पंकज से साक्षात्कार-‘व्यंग्य के माध्यम से समाज के शत्रुओं से जूझता हूँ ’
-अनामीशरण बबल
लोकगीत: कपड़ा लै गए चोर
,
नागों की फिरे जमात
-रामचरन गुप्त
आ बैल...
- सुशील यादव
कविताएँ: मेरा नगर
,
मेरा देश बचाना बाबा
-
विजय जोशी
1 comment:
प्रियंका गुप्ता
04 February
बहुत रोचक और सार्थक अंक है...मेरी बधाई और शुभकामनाएँ...|
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बहुत रोचक और सार्थक अंक है...मेरी बधाई और शुभकामनाएँ...|
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