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Dec 14, 2013

उदंती.com - दिसम्बर 2013


उदंती.com -  दिसम्बर 2013




अब तो मज़हब कोई 
ऐसा चलाया जाए,
जिसमें इंसान को 
इंसान बनाया जाए।
                 - नीरज










अनकही:  एक मानवीय फैसला - डॉ. रत्ना वर्मा
चिंतन:   तलाश अपनी जड़ों की... - अनुपम मिश्र
धरोहर:  ककनमठ खजुराहो के कंदारिया...- लोकेन्द्र सिंह
सेहत:    केला अनूठा फल...- डॉ. ओ. पी. वर्मा
विज्ञान:  सरकार से दरकरार, करें विज्ञान प्रसार - सुभाष लखेड़ा
हाइकु:   हरसिंगार - नलिनीकान्त
जीव-जगत: क्यों गाते हैं पक्षी - डॉ. अरविन्द गुप्ते
समाज:ब्रजवासी महिलाएँ-कब तक...  - देवेन्द्र प्रकाश मिश्र
ग़ज़लें:  1. कतार में 2. कश्तियाँ काग़ज की - आशीष दशोत्तर
कालजयी कहानियाँ: एक छोटा सा मज़ाक - अन्तोन चेख़व
व्यंग्य: चूहों से पंगे लेना संगीन अपराध - अविनाश वाचस्पति
चार लघुकथाएँ: 1.माँ, 2.युग परिवर्तन, 3.मासूम अपराध, 4.प्रथम स्वेटर  - ऋता शेखरमधु
दो कविताएँ: बेनाम रिश्ते, उँगलियों की फितरत - रेखा मैत्र
अनुभूति: तुलसी का बिरवा - स्मृति जोशी
शोध: सोशल नेटवर्किंग पर समय बिताने का झटका
प्रेरक: आख़री सफ़र
आपके पत्र/मेल बॉक्स


आवरण चित्र: पूर्वा खिचरियाबी.ई. इलेक्ट्रानिक्स एंड टेलीकम्यूनिकेशन
सम्पर्क: नरसिंह विहारसड़क-5, कातुलबोडदुर्ग - (छ.ग.)

5 comments:

डॉ. जेन्नी शबनम said...

रत्ना जी,
वेब पत्रिका उदंती का दिसम्बर अंक पढ़ा. खूबसूरत साज सज्जा के साथ पठनीय सामग्रियों का चयन उत्कृष्टता को बनाए हुए है. सामयिक विषय पर आपका लेख पढना अच्छा लगा. निरंतर अग्रसर रहते हुए पत्रिका अपना कलेवर यूँ ही बनाये रखे, हार्दिक शुभकामनाएँ!
- जेन्नी शबनम

सहज साहित्य said...

डॉ अरविन्द गुप्ते का लेख,पक्षी क्यों गाते हैं, बहुत सारी जानकारी समेटे हुए है। अनुपम मिश्र जी का लेख-तलाश अपनी जड़ों की' समस्याओं की पूरी पड़ताल करने वाला है । रेखा मैत्र की कविताएँ और चेखव की कहानी मर्मस्पर्शी हैं। सचमुच उदन्ती गागर में सागर है । छोटे से कलेवर में सारी सामग्री स्तरीय और रोचक !

Kamlanikhurpa@gmail.com said...

वेब पत्रिका के सफल सम्पादन के लिए बधाई और मंगल कामनाएं ... रचनाओं का चयन प्रशंसनीय है |

Anupama Tripathi said...

विविधता लिए उत्कृष्ट लिंक्स ...कवितायें बहुत पसंद आयीं .मेहनत से तैयार किया गया सुंदर अंक ।

Unknown said...

Poorva khichariya ki photography lajavab hai