मौलिकता का अहसास
उदंती के वेब संस्करण के माध्यम से पिछले कुछ अंकों पर नज़र डालने का मौका मिला। प्रकाशन
सामग्री व गेटअप, मुद्रण आदि सभी
दृष्टिकोणों से पत्रिका ने प्रभावित किया। अनकही, लोकपर्व,
कलाकार, परम्परा, प्रेरक,
पूजापर्व जैसे स्तंभों के अंतर्गत प्रकाशित रचनाएँ मौलिकता का अहसास
कराती हैं। सभी अंकों पर संपादक की पकड़ और मेहनत साफ झलकती है। पत्रिका के उज्ज्वल
भविष्य के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ।
बसंत साहू की कला को नमन
उदंती के
अक्टूबर नवम्बर अंक में प्रकाशित बसंत साहू के सभी चित्र बहुत ही सुंदर हैं! इस अनूठे कलाकार के साहस तथा उनकी लगन को नमन!
उनके साथ हुए हादसे के बारे में पढ़कर जितना दु:ख हुआ उतनी ही प्रसन्नता उनके
द्वारा बनाए गये चित्रों को देखकर हुई! दुख व कठिनाइयों- भरे दुर्गम रास्ते में
आगे क़दम बढ़ाकर अपनी मंजि़ल तक पहुँचने का नाम ही असली मायनों में 'जीना’कहलाता है... इसका जीता-जागता प्रमाण बसंत साहू
हैं! उनका परिचय कराने व उनके बनाए चित्रों को साझा करने का आभार!
इसी अंक में विजयादशमी पर कृष्ण
कुमार यादव का लेख 'जहाँ होती रावण की
पूजा’ में इतनी उपयोगी तथा रोचक जानकारी देने के लिए
धन्यवाद। हिमांशु जी की सभी कविताएँ बहुत ही सुंदर संदेश लिये हुए दिल में उतर गईं!
काश! ऐसा हर कोई सोच ले तो किसी की देहरी पर, किसी के दिल में
कभी अँधेरे टिक न पाएँगे! हर दिल में बस उजियारा ही उजियारा होगा!
पूरा जीवन दर्शन
दीपावली पर
हिमांशुजी की चार कविताएँ जिसमें-
उम्र भर रहते नहीं हैं,
संग में सबके उजाले।
दूर उजालों की बस्ती है,
पथ में भी अंधियार बहुत है।
अँधियारे से आगे देखो सूरज है
उजियार बहुत है।
नहीं गगन छू पाए तो क्या मन का ही
विस्तार बहुत है।
आदमी है आदमी तब,
जब अंधेरों से लड़े।
सब एक से बढ़कर एक। ये भाव,
ये पंक्तियाँ अपने में पूरा जीवन दर्शन समाए हुए हैं। बस जरुरत है
तो इसे समझ कर इसको अमल में लाने की....
-मंजु मिश्रा
अलग तरह की पत्रिका
पत्रिका प्राप्त
हुई बहुत ही अच्छी है। हमारे छत्तीसगढ़ के त्योहार के विषय में आपने बहुत अच्छी
जानकारी दी है। यह अपने आप में अलग तरह की पत्रिका हैं। आपने मेरे भावों को बहुत
ही सुंदर ढंग से अपने लोगो तक पहुँचाया है। इसके लिए धन्यवाद एवं शुभकामनाएँ । आप
इसी तरह अपने लेखन कार्य को आगे बढ़ाते रहें ताकि समाज को सही दिशा मिले।
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